बर्फीली ठंड, माइनस में टेम्प्रेचेर... फिर क्यों यहां बच्चों को खुले में सुलाते हैं माता-पिता

दुनिया में कुछ ऐसे भी देश हैं, जहां माता-पिता अपने 4-6 महीने के बच्चों के भीषण ठंड में घर से बाहर खुले आसमान के नीचे सोने के लिए छोड़ देते हैं. ऐसा करने के पीछे वजह क्या है और ऐसी क्या मजबूरी होती है, जानते हैं पूरी कहानी.

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यहां कड़ाके की ठंड में बच्चों को घर से बाहर सुलाया जाता है (Photo - AI Generated) यहां कड़ाके की ठंड में बच्चों को घर से बाहर सुलाया जाता है (Photo - AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:45 PM IST

क्या कोई भी माता-पिता अपने दुधमुंहे बच्चे को शून्य से नीचे माइनस टेम्प्रेचर में खुले आसमान के नीचे सोने के लिए छोड़ सकता है? ये सुनकर ही अजीब लगता है, लेकिन ये सच है.  कुछ ऐसे देश हैं, जहां माता-पिता अपने छोटे बच्चों को बर्फीली हवा में घर से बाहर पालने में रखकर छोड़ देते हैं. जानते हैं आखिर कौन हैं ये लोग और कहां रहते हैं और ऐस करने के पीछे वजह क्या है?

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डेनमार्क, फिनलैंड, नार्वे, स्वीडन जैसे नॉर्डिक या स्केंडेनेवियन देशों कड़ाके की ठंड में घर से बाहर खुले आसमान के नीचे अकेले बाहर सोते हुए छोटे-छोटे बच्चे दिख जाएं, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है. इन जगहों पर, जब काफी ज्यादा ठंड पड़ती है और तापमान शून्य से नीचे चला जाता है. तब  माता-पिता आमतौर पर अपने छोटे बच्चों को पालने में रखकर घर से बाहर छोड़ देते हैं.   

नॉर्डिक देशों में ये एक पुराना रिवाज है
बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में ऐसा करना एक सामान्य रिवाज है. ऐसा करने के पीछे वहां के लोगों का तर्क है कि ये ठंडी ताजी हवा में रहने से बच्चों को बेहतर नींद आती है.फिनलैंड और डेनमार्क में यह प्रथा आम है. माता-पिता अपने बच्चों को बाहर सुला देते हैं जब तापमान -16 डिग्री तक गिर जाता है. 

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ऐसे शुरू हुई चर्चा
इंटरनेट पर इसकी चर्च तब शुरू हुई, जब डेनिश संगीतकार अमाली ब्रून ने इंस्टाग्राम पर अपनी एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें वह अपने चार महीने के बेटे को कड़ाके की ठंड में घर से बाहर गोद में लेकर ठहल रही थी. ब्रून ने बताया कि उनका बेटा ज्यादातर समय बाहर ही सोता है.

नॉर्डिक माता-पिता के लिए यह आम बात है कि वे सोते हुए बच्चे को बाहर छोड़ देते हैं जब वे किसी रेस्तरां में जाते हैं या कोई काम निपटाने जाते हैं. डेनमार्क में डेकेयर केंद्रों में अक्सर झपकी लेने के लिए बाहर एक आरक्षित क्षेत्र भी होता है.

एक्सपर्ट ने बताया खतरनाक हो सकता है ये रिवाज
अटलांटा, जॉर्जिया स्थित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जेनिफर शू ने इनसाइडर को बताया कि मेरी चिंता निगरानी को लेकर है. उन्होंने कहा कि अगर माता-पिता आस-पास नहीं होंगे, तो उन्हें पता नहीं चलेगा कि उनके बच्चे के साथ क्या हो रहा है.  

शू ने नॉर्डिक देशों में अपने बच्चों को बाहर सुलाने वाले माता-पिता के बारे में इनसाइडर को बताया कि यह उनका रिवाज है. जाहिर है वे इसके लिए तैयार रहते हैं. लेकिन, माता-पिता को बच्चों की निगरानी करनी चाहिए, क्योंकि अगर अत्यधिक ठंड से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने लगे तो उस पर ध्यान दिया जा सके.

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बच्चों की निगरानी जरूरी
नॉर्डिक संस्कृति में बच्चों को जितना संभव हो सके बाहर समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. शू ने बताया कि नॉर्डिक देशों में माता-पिता अपने बच्चों को अधिकतम समय तक बाहर बिताने को प्राथमिकता देते हैं. अक्सर वो इस आदर्श वाक्य का हवाला देते हैं - खराब मौसम जैसी कोई चीज नहीं होती, केवल खराब कपड़े होते हैं. 

ऐसा करने के पीछे की वजह ये है कि छोटे बच्चे साल के किसी भी समय घर के बाहर जा सकते हैं, बशर्ते वे सही कपड़े पहने हों. डेनमार्क और स्वीडन के शिक्षक भी इसी अवधारणा को लागू करते हैं. वहां के कई स्कूल फ़ॉरेस्ट स्कूल मॉडल का पालन करते हैं, जो बाहरी वातावरण को कक्षा के रूप में उपयोग करने को बढ़ावा देता है.

ठंडे वातावरण के अनुसार ढालने के लिए किया जाता है ऐसा
वहां के लोगों का मानना है कि ये पूरा इलाका एक ठंडा प्रदेश है. सालोंभर बर्फबारी जैसे हालात रहते हैं. ऐसे में बच्चों को छोटी उम्र से ही ऐसे वातावरण में ढलने के लिए तैयार किया जाता है और उन्हें हर दिन कुछ देर के लिए बाहर छोड़ दिया जाता है. 

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