सैलरी 5 गुना हो गई, लेकिन खुशी 5 गुना कम हो गई... सिंगापुर में रहने वाले भारतीय युवक का पोस्ट वायरल

सिंगापुर में काम करने वाले एक भारतीय प्रोफेशनल ने बताया कि विदेश में उनकी सैलरी तो कई गुना बढ़ गई, लेकिन खुशी और अपनापन कम हो गया. साफ-सुथरी व्यवस्था, अच्छी नौकरी और अच्छी सैलर के बावजूद अकेलापन, आजादी की कमी उन्हें परेशान करती है.

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ज्यादा सैलरी खुशियां जरूर देती है, लेकिन परिवार, दोस्त और अपनापन भी उतने ही जरूरी हैं. ( Photo: Pixabay) ज्यादा सैलरी खुशियां जरूर देती है, लेकिन परिवार, दोस्त और अपनापन भी उतने ही जरूरी हैं. ( Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:22 AM IST

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में सक्सेस का मतलब अक्सर मोटी सैलरी, विदेशी नौकरी और चमकदार लाइफस्टाइल मान लिया गया है. जैसे ही किसी को विदेश में अच्छी नौकरी मिलती है, लोग समझ लेते हैं कि अब उसकी जिंदगी पूरी तरह सेट है. लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है? सिंगापुर में रहने वाले एक भारतीय युवक की कहानी इस चमक के पीछे छुपी उस सच्चाई को दिखाती है, जिसके बारे में कम ही लोग बात करते हैं. यह कहानी है उस सफलता की, जिसमें पैसा तो है, लेकिन सुकून नहीं; सुविधाएं तो हैं, लेकिन अपनापन नहीं है. जहां वेतन बढ़ता है, पर खुशी चुपचाप कम होती चली जाती है.

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ज्यादा पैसा कमाने से ज्यादा खुशी नहीं मिलती
आजकल बहुत से इंडियंस बेहतर नौकरी और ज्यादा सैलरी के लिए विदेश जाते हैं. सोचते हैं कि वहां पहुंचते ही जिंदगी शानदार हो जाएगी. लेकिन सिंगापुर में रहने वाले एक भारतीय युवक की कहानी बताती है कि ज्यादा पैसा कमाने से ज्यादा खुशी नहीं मिलती. सिंगापुर में काम करने वाले अमन नाम के एक व्यक्ति ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया. वे पेशे से सीनियर मशीन लर्निंग इंजीनियर हैं. उन्होंने बताया कि सिंगापुर आने के बाद उनकी सैलरी तो पांच गुना बढ़ गई, लेकिन उनकी खुशी उतनी ही कम हो गई.

आजादी और अपनापन हुआ कम
अमन कहते हैं कि सिंगापुर बहुत साफ-सुथरा और वेल मैनेज्ड देश है, लेकिन यहां भारत जैसा अपनापन नहीं है. सड़क किनारे मिलने वाले छोले-कुलचे, मोमोज और लोगों की गर्मजोशी उन्हें बहुत याद आती है. उन्हें लगता है कि यहां सब कुछ बनावटी सा है. उन्होंने भारत और सिंगापुर की जिंदगी की तुलना करते हुए कहा कि भारत में उनके पास अपनी कार थी और खुलकर जीने की आजादी थी. सिंगापुर में कार रखना बहुत महंगा है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छा जरूर है, लेकिन वह आजादी का एहसास नहीं देता.

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'विकसित देश' का अकेलापन
अमन ने यह भी कहा कि यहां लोग दिल से नहीं, कैलेंडर देखकर मिलते हैं. पैसा जरूरी है, लेकिन इसके बदले घर जैसा सुकून खो जाता है. वीडियो के साथ उन्होंने लिखा कि हम वीजा, स्टांप और डॉलर की सैलरी के पीछे भागते हैं. सोचते हैं कि विदेश पहुंचते ही जिंदगी फिल्म जैसी हो जाएगी, लेकिन असल में वहां 'विकसित देश जैसा अकेलापन' भी मिलता है. 

लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
इस वीडियो पर लोगों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दीं. कुछ ने कहा कि उन्हें सिंगापुर की व्यवस्थित जिंदगी पसंद है, तो कुछ ने माना कि वहां दोस्त बनाना मुश्किल है. कई लोगों ने अमन की बात से सहमति जताई और कहा कि पैसा जरूरी है, लेकिन सब कुछ नहीं. कुछ लोगों ने व्यावहारिक नजरिया रखते हुए कहा कि जब तक मौका मिले, पैसा कमा लेना चाहिए, क्योंकि दुनिया मुफ्त में कुछ नहीं देती. अमन की कहानी यह सिखाती है कि विदेश में सफलता के साथ कुछ भावनात्मक कीमत भी चुकानी पड़ती है.

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