मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर एक गांव ऐसा है, जहां हर-गली, हर मोहल्ले में भगवान शिव हैं. देश ही नहीं विदेशों के ज्यादातर छोटे से लेकर बड़े शिव मंदिरों में जो शिवलिंग स्थापित हैं, वे एमपी के खरगोन के बकावां गांव की देन हैं.
नर्मदा किनारे बसे इस गांव में 70 से 100 परिवार ऐसे हैं, जो शिवलिंग गढ़ रहे हैं. जहां नजर दौड़ाओ, वहीं शिवलिंग नजर आते हैं. देश ही नहीं विदेशों में भी बकावा के शिवलिंग स्थापित हो रहे हैं.
यहां 2 इंच से लेकर 16 से 20 फीट तक के शिवलिंग तैयार किए जाते हैं. नर्मदा से निकलने वाला हर कंकर यहां शंकर है. शिवलिंग के पत्थरों पर प्राकृतिक रंग और आकृतियां नजर आती हैं. किसी पर ओम, किसी पर तिलक जैसी आकृतियां दिखाई देती हैं.
खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर बकावां में 4 हजार की जनसंख्या वाले गांव में 400 लोग शिवलिंग निर्माण में जुटे हुए हैं. नर्मदा नदी के कंकरों के विषय में मान्यता है कि यहां के हर एक कंकर में शंकर बसता है. यह सिर्फ मान्यता ही नहीं है बल्कि नर्मदा नदी तट के बकावां गांव के 100 परिवारों ने इस बात को सच्चाई के बहुत करीब ला दिया है. यहां के 100 परिवार आज कंकर से शंकर बनाने कार्य में पिछले 150 वर्षों से जुटे हुए हैं.
बकावां गांव के ग्रामीणजनों को इस बात का अहसास है कि वे नर्मदा नदी के सबसे अहम हिस्से में रहकर शिव उपासकों को पूजन-अर्चन के लिए भगवान शिव का आकार दे रहे हैं. माना जाता है कि देश में सर्वाधिक शिव उपासक हैं, इसलिए इस गांव में शिव भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है.
नर्मदेश्वर शिवलिंग निर्माण में जुटे 25 साल के विजय कुशवाह बताते है पीढ़ियों से शिवलिंग निर्माण का काम चल रहा है. करीब 150 सालों से ये काम हो रहा है.
देश में एकमात्र बकावां गांव है, जो शिवलिंग निर्माण का कार्य करता है. यहां के अलावा वाराणसी, मुंबई, दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरू, त्रयम्बकेश्वर, मंदसौर, नीमच, उज्जैन सहित नेपाल, अमेरिका जैसे देशों में बकावां के शिवलिंग स्थापित हैं. बेंगलुरू के श्री द्वादश ज्योर्तिलिंग देवस्थान में 12 ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं, जो बकावां के ही निर्मित हैं.
शिवलिंग निर्माण में लगे कारीगर बताते हैं कि उनके पास वाराणसी, मुंबई, उज्जैन, जयपुर आदि स्थानों से व्यापारी आते है और अपनी पसंद के शिवलिंग निर्माण भी करवाते हैं. बकावां के शिवलिंग जयपुर में बहुत लोकप्रिय हैं. जयपुर के मूर्ति बाजार स्थित राजाराम धर्मशाला में प्रदर्शनी का भी आयोजन करते है.
बकावां में निर्मित शिवलिंग की सबसे अनोखी बात यह भी है कि यहां बनने वाले शिवलिंग कोई साधारण रूप वाले नहीं होते है. यहां निर्मित शिवलिंग को ध्यान से देखे तो उन पर अनेक प्रकार के आकृति बनी हुई देखी जा सकती है जैसे ओम, स्वास्तिक, नाग, गणेश, शिवपार्वती, शिव का अर्द्वनारेश्वर रूप और मस्तक पर तिलक के समान शिवलिंग मिल जाते है.
2017 में यहां पहली बार सबसे बड़े शिवलिंग का भी निर्माण किया गया था जो कि 55 क्विंटल वजनी, 23 फीट लंबा और 7 फीट चौड़ा था. इस शिवलिंग को बनाने में करीब 8 मजदूरों को 6 माह का समय लगा था.