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भारत का वो भुतहा गांव जहां रात क्या दिन में भी जाने से डरते हैं लोग

aajtak.in
  • 06 जून 2019,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST
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श्रीलंका की सीमा पर भारत का आखिरी गांव है धनुषकोटि. यह गांव अब देश के भुतहा कहे जाने वाले जगहों में शामिल हो गया है, क्योंकि यहां अंधेरा होने के बाद घूमने पर पाबंदी है. रामेश्वरम से यहां पहुंचने का रास्ता 15 किलोमीटर लंबा है जो बेहद सुनसान, डरावना और रहस्यमयी माना जाता है. इसलिए यहां लोग दिन के उजाले में भी ग्रुप में आते हैं और शाम होने से पहले ही लौट जाते हैं.

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इस गांव में बढ़ते पर्यटन की वजह से भारतीय नौसेना ने अपनी यहां चौकी तक बना ली है और यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां आप महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते देख सकते हैं. लेकिन यह जगह भुतहा कहलाने के बाद ज्यादा चर्चित है.

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1964 में आए भीषण चक्रवात ने इस गांव को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया था. इससे पहले यहां सारी सुविधाएं मौजूद थी. लेकिन चक्रवात ने इस जगह की खूबसूरती को हमेशा के लिए खंडहर में बदल कर रख दिया. हिंदू मान्यताओं के अनुसार धनुषकोटि को बेहद पवित्र स्थान माना जाता है.

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एक तरफ इस जगह का भगवान राम से गहरा संबंध है तो दूसरी तरफ यहां प्रेत आत्माओं के रहने की भी आशंका जताई जाती है. माना जाता है कि चक्रवात की वजह से यहां कई लोग बेमौत मारे गए जिनका श्राद्ध कर्म भी नहीं हुआ. ऐसे में उन मरे हुए लोगों की आत्मा इस जगह वास करती है.

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धनुषकोटि को लेकर मान्यता है कि लंका जीतने के बाद भगवान श्रीराम ने राजपाट रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया था. उसके बाद विभीषण ने श्रीराम से लंका तक आने के लिए बने रामसेतु को तोड़ देने का आग्रह किया. इस पर भगवान राम ने उनकी बात मानते हुए अपने तीर से रामसेतु के एक छोर को तोड़ दिया जिसके बाद इस जगह का नाम धनुषकोटि पड़ गया.

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श्रीलंका सीमा पर जिस जगह यह गांव है उसे भारत का सबसे छोटा शहर भी माना जाता है. यह स्थान भारत और श्रीलंका को एक दूसरे से जोड़ता है. धनुषकोटि एकमात्र ऐसी जगह है जो पाकिस्तान जलसंधि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई की वजह से दुनिया के सबसे छोटे स्थानों में से एक गिना जाता है.

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1964 के चक्रवात से पहले धनुषकोटि उभरता हुआ पर्यटन स्थल था. यहां सामान को समुद्र से ढोने के लिए फेरी सेवाएं थी. इतना ही नहीं पयर्टकों के रुकने और घूमने के लिए रेल लाइन और रेलवे स्टेशन भी था. होटल, बाजार और पोस्ट ऑफिस तक की सुविधा थी. यहां पहले सरकार मछली पालन विभाग भी था.

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ऐसी मान्यता है कि काशी की तीर्थयात्रा तभी पूरी होती है जब लोग महोदधि और रत्नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर स्थित धनुषकोटि में स्नान करें और रामेश्वरम में जाकर पूजा की जाए.

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