मुख्यमंत्री रघुवर दास के जरिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) झारखंड में 65 प्लास सीटें जीतने की कवायद में जुटी है. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ओबीसी आरक्षण की नाव पर सवार होकर सत्ता में वापसी करना चाहती है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर जेएमएम झारखंड में भी ओबीसी के 14 फीसदी आरक्षण को 27 फीसदी करने की मांग उठाकर चुनावी माहौल बनाने में जुटी है.
ओबीसी का आरक्षण प्रतिशत छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी बढ़ाया जा चुका है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया है. छत्तीसगढ़ की सीमा झारखंड से लगती है. ऐसे में पड़ोसी राज्य के नाते वहां के राजनीतिक फैसलों का सीधा असर झारखंड में भी पड़ता है.
जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन अपनी सभाओं में ओबीसी आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग लगातार कर रहे हैं. सोरेन ने अपने मजबूत जनाधार वाले गढ़ संथाल परगना से बदलाव यात्रा की शुरुआत की है. इसके तहत प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में बड़ी रैलियां कर रहे हैं, जिनमें ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी तक करने की मांग उठायी जा रही है.
जेएमएम के महासचिव विनोद पांडेय ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि झारखंड में ओबीसी समुदाय लंबे समय से आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग कर रहा है. उनकी यह मांग जायज है, ऐसे में जेएमएम इस मुद्दे को पूरी ताकत के साथ उठा रहा है और सत्ता में आने पर इसे पूरा करेगा. उन्होंने कहा कि ओबीसी समुदाय के साथ बीजेपी ने धोखा किया है. बीजेपी ओबीसी समुदाय को उनका हक देने के बजाय गुमराह कर रही है.
बीजेपी-आजसू की ओबीसी पर नजर
ओबीसी के बड़े वोट बैंक पर बीजेपी भी पूरी तरह से मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहती है. झारखंड में बीजेपी की सहयोगी ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) भी ओबीसी आरक्षण दायरे को बढ़ाकर 27 फीसदी करने के पक्ष में है. आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कई बार यह मांग सरकार के सामने उठाई है.
बीजेपी किसी भी सूरत में ओबीसी वोटर्स पर अपनी पकड़ को कमजोर नहीं करना चाहती है. यही वजह है कि रघुवर दास सरकार ने कई माह पहले प्रदेश के उपायुक्तों को निर्देश दिया था कि ओबीसी की आबादी का आंकड़ा उपलब्ध कराया जाए. लोकसभा चुनाव के चलते यह काम नहीं हो सका. सरकार ने फिर से तमाम उपायुक्तों को रिमाइंडर भेजा है.
झारखंड में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था
बता दें कि मौजूदा समय में झारखंड में अनुसूचित जनजाति को 26 फीसदी, अनुसूचित जाति को 10 फीसदी, ओबीसी को 14 फीसदी और आर्थिक रूप से पिछड़ी सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. इस तरह से प्रदेश में कुल 60 फीसदी आरक्षण मिल रहा है.
मरांडी ने खेला था दांव
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी ने अपने कार्यकाल में प्रदेश में आरक्षण के दायरे को बढ़ाने का कदम उठाया था, लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहना सके. मरांडी ने अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 14 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था, लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण न देने की वजह से इनकार कर दिया था.
हालांकि अब जब नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण के कदम उठाए जाने के बाद 50 फीसदी का दायरा टूट गया है. इसीलिए जेएमएम अपनी खोई हुई सियासी जमीन को वापस पाने के लिए ओबीसी आरक्षण का कार्ड चल दिया है. ऐसे में देखना होगा कि झारखंड की जनता जेएमएम के इस वादे पर कितना भरोसा करती है?
कुबूल अहमद