दुनिया की नजर पेरिस पर है. और, हो भी क्यों नहीं. Ville lumière यानी सिटी ऑफ लाईट के नाम से मशहूर फ्रांस की राजधानी पेरिस दुनिया के सबसे बड़े स्पोर्टिंग इवेंट ओलंपिक 2024 की मेजबनी जो कर रहा है. पूरा शहर दुनिया भर के खिलाड़ियों, एथलीटों, खेल से प्यार करने वालों या फिर इसमें रुचि रखने वालों से पटा पड़ा है. इसके अलावा पेरिस देखने की चाहत रखने वाले दीवानों की भीड़ अलग.
वैसे तो पेरिस ओलंपिक के पास ऐसी तमाम वजह हैंं, जो इस स्पोर्टिंग इवेंट को खास बनाती हैं. मसनल, ठीक 100 साल बाद पेरिस में ओलंपिक गेम्स एक बार फिर से हो रहे हैं. इससे पहले 1924 ओलंपिक की मेजबानी भी पेरिस ने की थी. इसके अलावा पेरिस लंदन के बाद दूसरा ऐसा शहर बन गया है जिसके नाम तीन बार ओलंपिक गेम्स होस्ट करने का रिकॉर्ड दर्ज हो गया है. पेरिस इससे पहले 1900 और 1924 में ओलंपिक की मेजबानी कर चुका है. जबकि लंदन 1908, 1948 और 2012 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी कर चुका है.
इसके अलावा यह इतिहास का पहला ऐसा ओलंपिक है जिसने खेल के मैदान पर लैंगिक समानता (Gender Parity) को हासिल किया है. लैंगिक समानता (Gender Parity) का मतलब है कि दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में इस बार पुरुष और महिला खिलाड़ी समान संख्या में हिस्सा ले रहे हैं. ओलंपिक 2024 में कुल 10,500 एथलीट भाग लेने फ्रांस पहुंचे हैं, जिनमें 5,250 पुरुष और इतनी ही (5,250) महिला खिलाड़ी शामिल हैं.
इसके अवाला पेरिस में हो रहे इस महाआयोजन को इतिहास का सबसे फैमिली फ्रैंडली ओलंपिक बताया जा रहा है. कारण, इस बार ओलंपिक में एक खास नर्सरी बनाई गई है जहां पेरेंट्स ओलंपियन इस आयोजन के दौरान अपने बच्चों के साथ वक्त भी बीता सकते हैं. इसे ओलंपिक विलेज नर्सरी का नाम दिया गया है.
लिस्ट लंबी है. लेकिन ये तमाम उपलब्धियां और इंतजामात तब बौनी पड़ जाएंगे जब इनके सामने आ खड़ी होंगी ओलंपिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की मेहनत, खेल के प्रति उनका प्रेम और दुनिया के सबसे बड़े मंच पर कुछ कर गुजरने का जज्बा. वैसे तो ओलंपिक में हिस्सा ले रहा हर एथलीट खास है. एक-एक खिलाड़ी के इस मंच तक पहुंचने की अपनी एक यात्रा है. लेकिन, दुनिया के सबसे बेहतरीन एथलीटों और खिलाड़ियों के इस कुंभ में कुछ ऐसे भी नाम छनकर बाहर आ रहे हैं जिनके सफर को किसी कैनवास में कैद कर एकटक देखा जा सकता है. इनके हिस्से जो कहानियां आई हैं उसे आंखें मूंदकर लूप में सुना जा सकता है. इनके जीवन के चलचित्र को लगातार निहारा जा सकता है.
मिस्र की तलवारबाज नादा हफेज (Nada Hafez), भारत की शूटर मनु भाकर (Manu Bhakar), चीनी-चिली टेबल टेनिस खिलाड़ी झीइंग जेंग (Zhiying Zeng), महज 11 वर्षीय स्केटबोर्डर झेंग हाओहाओ (Zheng Haohao) और 65 साल के स्पेनिश घुड़सवार जुआन एंटोनियो जिमेनेज़ (Juan Antonio Jiménez) पेरिस ओलंपिक 2024 में हिस्सा ले रहे कुछ ऐसे नाम हैं जिनका सफर आपको किसी मोटिवेशनल स्पीच से कहीं अधिक इंस्पायर कर सकता है. इसके अलावा रिटायर्ड स्वीमर और सीरिया गृह युद्ध की शरणार्थी युसरा मर्दिनी (Yusra Mardini), जो कि 2016 रियो और 2020 टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा ले चुकी हैं, अब पेरिस ओलंपिक 2024 में एक नई भूमिका में नजर आ रही हैं.
नादा हफेज
26 वर्षीय नादा हफेज मिस्र की फेंसर (तलवारबाजी) हैं. नादा ने महिलाओं की इंडिविजुअल इवेंट के पहले यूएसए की खिलाड़ी को हराया. हालांकि अगले दौर में नादा कोरिया की खिलाड़ी से हार गईं. यहां तक तो सबकुछ सामान्य लग रहा था. लेकिन इसके बाद नादा के इंस्टाग्राम पर किए गए एक पोस्ट ने सबको चौंका दिया.
अंतिम 16 में हारकार बाहर हुईं नादा ने खुलासा किया वो महज ओलंपियन नहीं, बल्कि एक '7 महीने की गर्भवती ओलंपियन हैं.' दरअसल, नादा जब अपने विरोधी के खिलाफ तलवार चलाते हुए अटैक को झेल रही थीं, तब उनके पेट में 7 महीने का एक छोटा ओलंपियन भी मौजूद था. वो भी इस खेल में अपनी मां के साथ हिस्सा ले रहा था.
नादा ने अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर इसका खुलासा करते हुए लिखा, 'आपको पोडियम पर 2 खिलाड़ी दिख रहे हैं, लेकिन असल में वे तीन थे! मैं, मेरी प्रतिद्वंद्वी और अभी तक दुनिया में न आई हुई मेरी छोटी बच्ची! जीवन और खेल के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संघर्ष करना काफी कठिन था. हालांकि, ये सघर्ष करने के लायक था.
आजादी के बाद एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी मनु भाकर की ओलंपिक जर्नी और उनके वापसी की कहानी भी प्रेरणा देती है. निशानेबाज मनु भाकर पेरिस ओलंपिक में भारत की झोली में पहला मेडल डालने में कामयाब रहीं, लेकिन उनके यहां तक पहुंचने का रास्ता काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा. कहानी बीते ओलंपिक (टोक्यो ओलंपिक 2020 जिसका आयोजन कोरोना के कारण 2021 में हुआ था) से शुरू होती है. सबकी नजर मनु पर थीं और पूरा देश उनसे मेडल की उम्मीद कर रहा था. वो शानदार फार्म में भी थीं.
महज 16 साल की उम्र में कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल पर निशाना साध चुकीं मनु भाकर यह कारनामा करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय खिलाड़ी थीं. टोक्यो ओलंपिक से पहले वर्ल्डकप में 9 गोल्ड सहित 11 मेडल जीत चुकीं भाकर को भारत की ओर से टॉप दावेदार माना जा रहा था. लेकिन सिंगल्स और मिक्ड्स दोनों ही इवेंट्स में उन्हें मायूसी हाथ लगी और 2020 ओलंपिक में वो एक भी मेडल जीतने में कामयाब नहीं हो सकीं. टॉप फार्म में होने के बावजूद मेडल न जीत पाने के कारण उनकी खूब आलोचना हुई. बाद में मनु भाकर को नेशनल स्क्वॉड से भी हाथ धोना पड़ा था.
लेकिन अपनी गर्दन के पीछे बने 'स्टिल आई राइज' टैटू से मनु भाकर को एक बार फिर उठ खड़े होने की हिम्मत मिली. 'स्टिल आई राइज' एक कविता है जिसे कवियत्री और ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट माया एंजेलो ने लिखा है. इस टैटू के बारे में बीबीसी से बात करते हुए मनु भाकर ने कहा था, 'स्टिल आई राइज - केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि यह एक फेनोमिना है, अपने मुश्किल दौर में खुद को साबित करने का. ये शब्द मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. ये मेरे दृढ़ निश्चय को और बढ़ाते हैं, चाहे जितनी असफलता मिले, मुझे भरोसा है कि मैं फिर से उठ खड़ी होऊंगी.'
2021 में टोक्यो से खाली हाथ लौटने और तीन साल बाद पेरिस में दो-दो बार पोडियम तक पहुंचने वाली मनु भाकर की यात्रा गर्व से भर देने वाली तो है ही, साथ ही इस खिलाड़ी की जर्नी किसी प्रेरणा से भी कम नहीं है.
युसरा मर्दिनी
युसरा मर्दिनी एक सीरियाई शरणार्थी हैं, जिसे महज 16 साल की उम्र में अपना देश छोड़कर भागना पड़ा था. युद्ध के चलते युसरा ने अपनी बहन के साथ अगस्त 2015 में अपना देश छोड़ने का फैसला किया. दोनों बहनें पहले सीरिया से लेबनान पहुंचीं, फिर उन्होंने तुर्की तक की यात्रा प्लेन से तय कीं. यहां से वो ग्रीस जाने वाली नाव पर सवार हुईं, लेकिन करीब 40-45 मिनट की यह बोट जर्नी 3 घंटे लंबी रही. क्षमता से अधिक लोग और जर्जर होने के कारण कुछ ही देर में बोट जबाव दे गई और यहां से शुरू हुई युसरा और उनकी बहन सारा की एक और जर्नी. दोनों बहनों ने दो अन्य लोगों के साथ मिलकर 16 लोगों से भरी बोट को करीब तीन घंटे तक उफनती लहरों के बीच तैरते हुए धक्का देकर किनारे तक पहुंचाया.
तमाम मुश्किलों को झेलने के बाद मर्दिनी और उनकी बहन आखिरकार बर्लिन पहुंचीं. यहां उन्होंने शरणार्थियों के रूप में अपना जीवन फिर से शुरू किया. साथ ही युसरा ने तैराकी की कोचिंग भी फिर से शुरू कर दी. 2016 में युसरा मर्दिनी उन 10 एथलीटों की दल का हिस्सा थीं, जो रियो में पहली रिफ्यूजी ओलंपिक टीम के रूप में भाग ले रही थी. युसरा की सीरिया से बर्लिन पहुंचने की कहानी, उनके 2016 और फिर बाद में 2020 ओलंपिक में हिस्सा लेने की जर्नी कइयों के लिए एक मिसाल है.
तैराक से रिटारमेंट ले चुकी युसरा मर्दिनी के संघर्ष और सफर पर एक फिल्म भी बन चुकी है. नेटफ्लिक्स पर आई 2 घंटे 14 मिनट की फिल्म 'The Swimmers' इसी एथलीट के जीवन पर आधारित है. हालांकि, पेरिस ओलंपिक में मर्दिनी मौजूद तो हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी भूमिका में बदलाव किया है. ओलंपिक 2024 में युसरा को यूरोस्पोर्ट की रिपोर्टर के रोल में डिस्कवरी के लिए रिफ्यूजी ओलंपिक टीम को कवर करते देखा जा सकता है.
झीइंग जेंग
58 साल की उम्र में ओलंपिक डेब्यू करने वाली झीइंग जेंग चिली की टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं. चीन में जन्मी झीइंग की टेबल टेनिस जर्नी शुरू तो वहीं से हुई, लेकिन उन्होंने चिली की ओर से खेलते हुए 2024 में अपने ओलंपिक में उतरने के सपने को साकार किया. वैसे तो महज 16 साल की उम्र में जेंग का चयन चीनी राष्ट्रीय टीम में हो गया था, लेकिन ओलंपिक खेलने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका. नियमों में बदलाव के कारण जेंग ने संन्यास की घोषणा कर दी.
दरअसल, 1988 के सियोल ओलंपिक से पहले टेबल टेनिस में Two-Colour Rule को लागू कर दिया गया. इसके मतलब था कि पैडल के दोनों साइड अब काले नहीं हो सकते थे. पैडल के दोनों तरफ का रंग बदल चुका था. यह बदलाव जेंग के लिए एक चुनौती बन गई, क्योंकि वो अक्सर अपने विरोधी को कनफ्यूज करने के लिए पैडल को घुमाती थीं, लेकिन नए नियम के आ जाने के बाद जेंग को उसके अपोनेंट आसानी से प्रीडिक्ट कर लेते. उनकी ताकत ही अब कमजोरी बन गईं.
बाद में साल 1989 में चिली के एक स्कूल से जेंग को टेबल टेनिस कोच बनने का ऑफर मिला. जेंग ने एक बार फिर खेलना शुरू किया. 2004 और 2005 में जेंग ने दो नेशनल लेवल के टूर्नामेंट भी जीते. लेकिन बाद में जब उनके बेटे ने गेम की ओर रुख किया तो उन्होंने अपनी यात्रा पर एक बार फिर से ब्रेक लगा दिया. फिर 2020 में जब COVID-19 ने दुनिया को घर में बंद रहने पर मजबूर कर दिया तब जेंग ने खुद को फिट रखने के लिए एक बार फिर से टेबल टेनिस का सहारा लिया और 2024 में 58 साल की उम्र में उन्होंने अपने ओलंपिक खेलने के सपने को पूरा किया.
जुआन एंटोनियो जिमेनेज
65 वर्ष के जिमेनेज एक घुड़सवार हैं. पेरिस 2024 में जिमेनेज़ स्पेन की ओर से ओलंपिक टीम का हिस्सा हैं. हालांकि 69 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई घुड़सवार मैरी हन्ना भी पेरिस में मौजूद हैं, लेकिन वो एक ऐसी रिजर्व टीम का हिस्सा हैं जो कंपीट नहीं कर रहा है. जिसके कारण जिमेनेज ओलंपिक 2024 के सबसे अधिक उम्र के ओलंपियन बन गए हैं.
जिमेनेज इससे पहले साल 2000 में सिडनी और 2004 में एथेंस ओलंपिक में घुड़सवारी ड्रेसेज इवेंट में हिस्सा ले चुके हैं. जिमेनेज़ के नाम अब तक किसी इंडिविजुअल इवेंट में मेडल तो नहीं है, लेकिन वो एथेंस ओलंपिक में टीम ड्रेसेज इवेंट में सिल्वर मेडल जीतने वाली स्पेन टीम का हिस्सा रह चुके हैं.
झेंग हाओहाओ
महज 11 साल 11 महीने की स्केटबोर्डर झेंग हाओहाओ पेरिस पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की एथलीट हैं. झेंग हाओहाओ सिर्फ सात साल की उम्र से इस खेल को खेल और सीख रही हैं. उन्हें 6 अगस्त को इस इवेंट में कंपीट करते देखा जा सकता है.
जिस उम्र के बच्चों को मां स्कूल के लिए टिफिन पैक करके देती हैं, उस उम्र का यह बच्चा अपने कंधे पर करोड़ों लोगों की उम्मीदों का बोझ लिए पेरिस ओलंपिक 2024 में हिस्सा ले रहा है. बता दें कि स्केटबोर्डिंग को 2021 में टोक्यो ओलंपिक में एक खेल के रूप में शामिल किया गया था.
रितु राज