दुबई में खेला गया एसीसी मेन्स अंडर-19 एशिया कप 2025 का फाइनल भारतीय क्रिकेट के लिए आईना लेकर आया...और उस आईने में दिखी तस्वीर आरामदेह कतई नहीं थी.
पाकिस्तान के खिलाफ 191 रनों की करारी हार ने बेरहमी से यह सच उजागर कर दिया कि प्रतिभा, रिकॉर्ड और गौरवशाली इतिहास बड़े मुकाबले नहीं जिताते, अगर तैयारी अधूरी और मानसिकता कच्ची हो.
यह पराजय किसी एक ओवर, एक कैच या एक गलत शॉट का नतीजा नहीं थी. यह रणनीति की विफलता, दबाव में टूटती बल्लेबाजी और बड़े मंच पर लिए गए गलत फैसलों का सामूहिक परिणाम थी.
... और इसी मलबे के बीच एक नाम ऐसा था, जिस पर उम्मीदों का सारा बोझ भी था, बहस की सारी आग भी और भारतीय क्रिकेट के भविष्य की दिशा तय करने का दबाव भी....वह नाम है- वैभव सूर्यवंशी.
भारत अंडर-19 एशिया कप के इतिहास की सबसे सफल टीम रही है. 1989 में शुरू हुए इस टूर्नामेंट में भारत ने रिकॉर्ड 8 बार खिताब जीता है. इस दौरान टीम 2012 में पाकिस्तान के साथ संयुक्त विजेता भी रही. ऐसे गौरवशाली इतिहास के साथ फाइनल खेलना सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि दबाव भी लाता है. दुबई में भारतीय टीम उस दबाव से निपट नहीं सकी.
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वैभव सूर्यवंशी इस टीम का चेहरा थे. यूएई के खिलाफ 171 रनों की विस्फोटक पारी ने उन्हें टूर्नामेंट का पोस्टर बॉय बना दिया. उस पारी में उनकी नैसर्गिक फ्लेयर, विस्फोटक ताकत और आत्मविश्वास साफ झलकता था.
...लेकिन उसी पारी ने उनके खेल को एक तय फ्रेम में भी कैद कर दिया- हाई-इंटेंट, हर गेंद पर हमला. इसके बाद पूरे टूर्नामेंट में वह सिर्फ एक बार 50 के आंकड़े तक पहुंचे, वह भी मलेशिया जैसे कमजोर विपक्ष के खिलाफ. फाइनल में पाकिस्तान के सामने टॉप ऑर्डर पर उनका जल्दी आउट होना भारत की हार के अहम कारणों में से एक रहा.
फाइनल ने यह भी दिखा दिया कि पेशेवर क्रिकेट सिर्फ ताकत और आक्रामकता का खेल नहीं है. परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना, स्ट्राइक रोटेशन करना और सही समय पर फैसले लेना उतना ही जरूरी है. पाकिस्तान ने वैभव के खिलाफ यही किया- क्वालिटी स्पिन, हार्ड लेंथ और सिंगल्स पर सख्त नियंत्रण. वैभव उस जाल को पढ़ नहीं सके.
फाइनल में पाकिस्तान के अली रजा के साथ हुआ गर्मागर्म वाकया और विरोधी खिलाड़ी की ओर किया गया 'जूते वाला इशारा' व्यापक रूप से भावनात्मक अपरिपक्वता के संकेत के तौर पर देखा गया. कच्ची प्रतिभा मैच जीत सकती है, लेकिन टेम्परामेंट ही चैम्पियन बनाता है.
वैभव ने बेहद कम उम्र में राजस्थान रॉयल्स जैसी IPL टीम जॉइन की. इतनी जल्दी पैसा, शोहरत और पहचान मिलना आकर्षक है, लेकिन खतरनाक भी. इतिहास ऐसे खिलाड़ियों से भरा है जो पहली बड़ी रकम के बाद दिशा खो बैठे.
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वैभव को अपने सीनियर साथी यशस्वी जायसवाल जैसे उदाहरण से सीख लेनी चाहिए. जायसवाल ने तेज सफलता के बावजूद जमीन से जुड़े रहकर अनुशासन और फोकस बनाए रखा. IPL उनके लिए मंच है, मंजिल नहीं.
वैभव सूर्यवंशी कच्चा हीरा हैं, लेकिन हर हीरे को तराशने की जरूरत होती है. इस सफर में जिम्मेदारी सिर्फ उनकी नहीं है- कोच और मेंटर्स की भी बड़ी भूमिका है. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि अपनी सीखने की प्रक्रिया में पैर नहीं खिसकाएं, अनुभवों से सीखें और बड़े मंच पर संतुलन बनाएं.
अगर वैभव यह सब हासिल कर लेते हैं, तो उनकी प्रतिभा सिर्फ चमक नहीं, बल्कि लंबे समय तक स्थायी प्रभाव छोड़ने वाली ताकत बन जाएगी.
U-19 एशिया कप फाइनल की हार वैभव सूर्यवंशी के करियर की शुरुआत में आई एक चेतावनी है, सजा नहीं. उनके पास प्रतिभा भी है और समय भी. अगर वह इस अनुभव से सीखते हैं- खेल में लचीलापन, व्यवहार में संयम और लक्ष्य में स्पष्टता लाते हैं तो भविष्य में उनका इंतजार करता मिलेगा.
भारतीय क्रिकेट के लिए संदेश साफ है- सितारे बनाना आसान है, लेकिन दबाव में खड़े रहने वाले चैम्पियन तैयार करना कहीं ज्यादा कठिन.
विश्व मोहन मिश्र