भारतीय क्रिकेट में अक्सर फैसले अप्रत्याशित होते हैं, लेकिन इस बार जो हुआ उसने पूरी बिरादरी को हैरत में डाल दिया. दिल्ली और जम्मू-कश्मीर से घरेलू क्रिकेट खेलने वाले मिथुन मन्हास, जिन्हें ज्यादातर लोग एक भरोसेमंद रणजी खिलाड़ी के रूप में जानते हैं, अब बीसीसीआई के 37वें अध्यक्ष बनने जा रहे हैं.
45 साल के मिथुन मन्हास ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया, लेकिन घरेलू क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड बेहद मजबूत रहा.
दिल्ली रणजी टीम में उन्होंने लंबे समय तक कप्तानी की और कई मौकों पर अपनी टीम को मुश्किल हालात से बाहर निकाला. बाद में वे जम्मू-कश्मीर लौटे, जहां खिलाड़ी और प्रशासक दोनों भूमिकाओं में योगदान दिया.
'बीसीसीआई में कम विकल्प, लेकिन बड़ा सरप्राइज'
बीसीसीआई चुनावों पर गहरी पकड़ रखने वाले एक वरिष्ठ प्रशासक ने इस फैसले को अप्रत्याशित बताया. उन्होंने पीटीआई से कहा, 'यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे भाजपा ने दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपने मुख्यमंत्री कैसे चुने. किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था. बीसीसीआई में भी यही हुआ. हालांकि मन्हास जैसे खिलाड़ी के लिए संयुक्त सचिव का पद ज्यादा उपयुक्त होता, जबकि कोषाध्यक्ष की कुर्सी टेस्ट क्रिकेटर रघुराम भट्ट को मिल रही है. जब चुनावी सूची में गांगुली और हरभजन जैसे 100+ टेस्ट खेलने वाले दिग्गज मौजूद थे, तब मन्हास का अध्यक्ष बनना निश्चित रूप से सबको चौंकाने वाला है.'
साथियों की नजर में मन्हास
मन्हास को करीब से जानने वाले मानते हैं कि वे हमेशा लोकप्रिय और समझदार इंसान रहे हैं. पूर्व सलामी बल्लेबाज और कमेंटेटर आकाश चोपड़ा ने कहा, 'वह उस दिल्ली टीम के कप्तान थे, जिसमें कई स्टार और भारत के खिलाड़ी मौजूद थे. वह हमेशा टीम के बीच लोकप्रिय रहे. हमने अंडर-19 और सीनियर स्तर पर साथ खेला. एक बार ट्रेन यात्रा में उनके जूते चोरी हो गए, लेकिन उन्होंने मेरे जूतों की हिफाजत की. यही उनकी दोस्ती निभाने का अंदाज था.'
आकाश चोपड़ा ने यह भी कहा कि मन्हास ऐसे दौर में खेले जब भारतीय मिडिल ऑर्डर पूरी तरह तय था. राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे बल्लेबाजों की मौजूदगी में किसी और का जगह बनाना बेहद मुश्किल था.
...सही समय, सही जगह
दिल्ली के एक अन्य क्रिकेटर ने बताया, 'मिथुन वाकई ‘स्ट्रीट-स्मार्ट’ इंसान हैं. उन्हें हमेशा पता रहता था कि किससे नजदीकी रखनी है और कब सही कदम उठाना है. रणजी ट्रॉफी के दौरान विराट कोहली के पिता का निधन हुआ था. उस समय कप्तान के तौर पर उन्होंने विराट से घर जाने को कहा, लेकिन जब विराट खेलने पर अड़े तो उन्होंने उसका साथ दिया. यही उनकी समझदारी है.'
मन्हास ने आईपीएल में भी 55 मैच खेले और वीरेंद्र सहवाग की कप्तानी वाली दिल्ली डेयरडेविल्स, युवराज सिंह की किंग्स इलेवन पंजाब और पुणे वॉरियर्स का हिस्सा रहे.
हालांकि, 2016-17 में जब गौतम गंभीर दिल्ली के कप्तान बने तो मन्हास ने जम्मू-कश्मीर वापसी की. वहां उन्होंने क्रिकेट बोर्ड में प्रशासनिक सुधार की जिम्मेदारी उठाई और मिश्रित नतीजे दिए.
मिथुन मन्हास की यात्रा क्रिकेटर से लेकर प्रशासक तक हमेशा एक ही बात पर टिकी रही- सही समय पर सही जगह मौजूद रहना. शायद यही गुण उन्हें बीसीसीआई की सबसे बड़ी कुर्सी तक ले आया है. एक ऐसा नाम, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी, अब भारतीय क्रिकेट प्रशासन की सबसे ऊंची कमान संभालने जा रहा है.
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