असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख कैसे फूट गई थी, वामन अवतार से क्या है कनेक्शन

शुक्राचार्य, जिन्हें असुरों के गुरु के रूप में जाना जाता है, की एक आंख टूटने की पौराणिक कथा प्रसिद्ध है. भगवान विष्णु के वामन अवतार के समय हुई इस घटना में शुक्राचार्य ने राजा बलि को तीन कदम भूमि दान देने से रोकने की कोशिश की थी.

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अभिनेता अक्षय खन्ना एक फिल्म में शुक्राचार्य का किरदार निभाने वाली है, तस्वीर उनके ही ट्रांसफॉर्मेंशन की है अभिनेता अक्षय खन्ना एक फिल्म में शुक्राचार्य का किरदार निभाने वाली है, तस्वीर उनके ही ट्रांसफॉर्मेंशन की है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:01 PM IST

पौराणिक कथाओं में शुक्राचार्य की पहचान असुरों के गुरु के रूप में है. इसके बावजूद शुक्राचार्य सिर्फ नकारात्मक छवि वाले व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि उनका स्थान ज्योतिष, नक्षत्र विद्या और कुछ जगहों पर आयुर्वेद में भी है. असल में शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या के जानकार थे. महर्षि भृगु के पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले शुक्राचार्य को भार्गव कहा जाता है. उनके बचपन का नाम उषना था. इसके अलावा काव्य शास्त्र में रुचि के कारण ही वह कवि भी कहलाए. शुक्राचार्य को एकाक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी एक आंख फूट गई थी. एक आंख के कारण भी शुक्राचार्य की छवि नकारात्मक रही है, लेकिन उनकी एक आंख कैसे फूट गई, इसकी भी एक कथा है.

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क्या है एक आंख फूटने की कथा?

गुरु शुक्राचार्य को एकाक्ष के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ एक-आंख वाला व्यक्ति है. उनकी एक आंख की कहानी यह है कि राजा बलि और शुक्राचार्य एक भव्य हवन कर रहे थे. उस धार्मिक स्थल पर, भगवान विष्णु वामन अवतार में पहुंचे और तीन कदम भूमि दान के रूप में मांगी. ऋषि शुक्राचार्य को एहसास हो गया कि यह वामन ब्राह्मण खुद भगवान विष्णु हैं. इसलिए, महाबली को ब्राह्मण को तीन कदम भूमि देने से रोकने के लिए, ऋषि सूक्ष्म रूप में परिवर्तित हो गए और कमंडल की नलिका में जाकर बैठ गए ताकि पानी को रोक सकें.

वामन अवतार के कथा से क्या है संबंध

भगवान वामन ने शुक्राचार्य की नीति को समझ लिया. इसलिए, भगवान वामन जो कि हरिविष्णु का ही अवतार थे, उन्होंने पात्र के मुंह में एक तिनका डाल दिया और शुक्राचार्य की एक आंख में चुभो दिया. तिनका चुभने के दर्द से, शुक्राचार्य बाहर आ गए, जिससे पानी बह गया, और महाबली बलि ने दान का संकल्प पूरा किया. तब वामन बने भगवान विष्णु ने बलि से तीन पग का दान मांग लिया और सारी धरती-आकाश समेत त्रिलोक का पूरा साम्राज्य जीत लिया. इसके बाद बलि को पाताल लोक में स्थापित किया गया. इस घटना से, शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और बाद में वे एकाक्ष के नाम से जाने गए.

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शिवजी के पेट में रहकर की तपस्या!

शुक्राचार्य को उनका शुक्राचार्य नाम कैसे मिला इसकी भी एक अलग कथा है. एक बार असुरों और भगवान शिव के गणों के बीच युद्ध हुआ. नंदी शिवसेना के सेनापति थे. वह भगवान शिव के पास सहायता के लिए गए. जब भगवान शिव को संजीवनी मंत्र के दुरुपयोग का पता चला, तो उन्होंने शुक्राचार्य को निगल लिया और उन्हें अपने पेट के अंदर रख लिया. असुर गुरु भगवान शिव के पेट में हजारों वर्षों तक रहे और बाहर निकलने का रास्ता खोजते रहे, लेकिन वह विफल रहा. तब उन्होंने पेट के भीतर ही समाधि लगा ली और शिवजी की तपस्या करने लगे.

शिवजी ने दिया क्षमादान

भगवान शिव ने ऋषि की भक्ति देखकर उन्हें क्षमा किया और उन्हें वीर्य (शुक्र) के रूप में बाहर निकाल दिया. इसी कारण, महर्षि का नाम शुक्राचार्य पड़ा. चूंकि ऋषि शिव के जननांगों से बाहर आए, इसलिए वे भगवान शिव के औरस पुत्र भी कहलाए. यहां यह बता देना जरूरी है कि भृगु के पुत्र का नाम उषना ही था, जिन्हें शिवजी से संबंधित इस घटना के बाद ही शुक्राचार्य का नाम मिला.

अभिनेता अक्षय खन्ना एक फिल्म में असुर गुरु शुक्राचार्य का किरदार निभाने वाले हैं. कुछ दिन पहले उनके किरदार की तस्वीर सामने आई थी. इस तस्वीर में शुक्राचार्य की एक फूटी आंंख की डीटेलिंग भी बहुत गहराई से की गई थी, ताकि किरदार का चेहरा ठीक से समझ आए. शुक्राचार्य को पौराणिक किरदारों में इसीलिए एक फूटी आंख के साथ दिखाया जाता है, क्योंकि वामन अवतार के समय उनकी आंख फूट गई थी.

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