Raksha Bandhan 2025: जब श्रीकृष्ण ने की थी कौरवों से द्रौपदी की रक्षा, पढ़ें रक्षाबंधन की खास कथा

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन की परंपरा केवल आज के दौर से संबंधित नहीं है, बल्कि इस परंपकरा का उल्लेख सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी मिलता है. खासकर द्वापर युग की एक कथा इस त्योहार को एक नया भाव देती है जो द्रौपदी और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है.  

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जब श्रीकृष्ण ने की थी कौरवों से द्रौपदी की रक्षा, पढ़ें रक्षाबंधन की खास कथा, रक्षाबंधन 2025 (File Photo: Ai Generated) जब श्रीकृष्ण ने की थी कौरवों से द्रौपदी की रक्षा, पढ़ें रक्षाबंधन की खास कथा, रक्षाबंधन 2025 (File Photo: Ai Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता है. इस साल यह पर्व 9 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा. हर साल यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके अच्छे स्वास्थ्य, लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं.

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रक्षाबंधन की परंपरा केवल आज के दौर से संबंधित नहीं है, बल्कि इस परंपकरा का उल्लेख सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी मिलता है. खासकर द्वापर युग की एक कथा इस त्योहार को एक नया भाव देती है जो द्रौपदी और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है.  

जब श्रीकृष्ण की उंगली से बहने लगा था खून

महाभारत काल की एक कथा के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था जिससे उनकी उंगली कट गई थी और बहुत ही ज्यादा खून बहने लगा था. यह दृश्य देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दिया था, ताकि खून रुक सके. यह घटना श्रावण पूर्णिमा के दिन ही हुई थी.

तब श्रीकृष्ण ने उस समय द्रौपदी से कहा था कि 'तुमने जो आज मेरे लिए किया है, उसका ऋण मैं कभी नहीं भूलूंगा. मैं सदैव तुम्हारी रक्षा करूंगा.' माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जहां एक बहन अपने भाई की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है.

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जब श्रीकृष्ण ने की थी द्रौपदी की लाज की रक्षा

आगे चलकर कुछ समय बाद चौसर के खेल में युधिष्ठिर अपनी हर चीज हार चुके थे, तब उन्होंने द्रौपदी तक को दांव पर लगा दिया था. दुर्भाग्य से द्रौपदी को भी वे हार गए. तब दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने द्रौपदी को भरी सभा में घसीटा और उनका चीरहरण करने का प्रयास किया था. उस घड़ी में द्रौपदी ने आंखें मूंदकर श्रीकृष्ण को दिल से याद किया और फिर पुकारा. द्रौपदी की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को तुरंत अपना वचन याद आया जो उन्होंने द्रौपदी को उंगली पर पट्टी बांधने के बदले दिया था. उन्होंने अपनी लीला से द्रौपदी की साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि दुशासन थककर बेहोश हो गया था. इस तरह श्रीकृष्ण ने अपने वचन को निभाया था.

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