जानिए, कटने के बाद कहां गया था भगवान गणेश जी का असली मस्तक? शनिदेव की दृष्टि से हुआ ऐसा!

भगवान गणेश हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देवता हैं. उनके बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका असली मस्तक कहां गया. उनका मुख तो गजमुख है लेकिन असली मुख फिर कहां है. धर्म शास्त्र गणेश जी का वास्तविक मुख चंद्रमंडल में जाने का उल्लेख करते हैं.

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जानें कहां है भगवान गणेश का असली मस्तक जानें कहां है भगवान गणेश का असली मस्तक
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  • भगवान शनिदेव की दृष्टि से ऐसा हुआ
  • भगवान शिव ने गुस्से में काटा गणेश जी का मस्तक

भगवान गणेश हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देवता हैं. उनके बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका असली मस्तक कहां गया. उनका मुख तो गजमुख है लेकिन असली मुख फिर कहां है. धर्म शास्त्रों में गणेश जी का वास्तविक मुख चंद्रमंडल में जाने का उल्लेख मिलता है. भगवान गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मुख गज यानी हाथी का है. भगवान गणेश का यह स्वरूप विलक्षण और बड़ा ही मंगलकारी है. आपने भी श्रीगणेश के गजानन बनने से जुड़े पौराणिक प्रसंग सुने-पढ़े होंगे. आइए जानते हैं पंडित अरुणेश कुमार शर्मा से इन रोचक कथाओं के बारे में....

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पौराणिक कथाओं के अनुसार
श्री गणेश के जन्म के सम्बन्ध में दो पौराणिक कथाएं हैं. पहली कथा में कहा जाता है कि माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, उस समय इन्द्र, चन्द्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए. इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, शनिदेव की दृष्टि जहां पड़ जाती है वहां हानि या अनिष्ट होना निश्चित होता है. शनिदेव की दृष्टि पड़ने के कारण श्रीगणेश भगवान का मस्तक अलग होकर चंद्रमंडल में चला गया. इसके बाद भगवान शंकर ने बच्चे के शीश के स्थान पर गजमुख लगा दिया.

दूसरी कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया. इसी दौरान वहां आए भगवान शंकर को जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर कुपित हो गए और श्रीगणेश का मस्तक काट दिया, जो चन्द्र लोक में चला गया. बाद में भगवान शंकर ने रुष्ट पार्वती को मनाने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख लगा दिया था. ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश का असल मस्तक चन्द्रमण्डल में है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं. इन तिथियों पर चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की उपासना व भक्ति द्वारा संकटनाश व मंगल कामना की जाती है.

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