Vamana Jayanti 2024: आज वामन जयंती है. यह भगवान विष्णु के पांचवें वामन अवतार की जयंती है. वामन जयंती हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान वामन ने तीन कदमों में तीनों लोक नापकर प्रहलाद पौत्र राजा बलि का घमंड तोड़ा था. आइए आज वामन जयंती की पूजन विधि और पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं. वामन जयंती पर भगवान वामन की पूजा विशेष विधि से की जाती है. यह पूजा भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है और इसका उद्देश्य उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना है.
वामन जयंती पर कैसे करें पूजा?
इस दिन सुबह प्रातःकाल में स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थल और अपने घर को स्वच्छ करें. वामन जयंती के दिन व्रत करने का संकल्प लें. यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. यह व्रत निराहार या फलाहार किया जा सकता है. अगर संपूर्ण उपवास संभव न हो तो आहार में केवल सात्विक भोजन ही लें. इसके बाद भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करें. उन्हें जल, फल, फूल, धूप, दीप, चंदन, अक्षत (चावल), पंचामृत, तुलसी दल और मिठाई अर्पित करें. भगवान वामन का ध्यान करें और फिर व्रत कथा सुनें.
वामन जयंती की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, अत्यंत बलशाली दैत्य राजा बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया था. भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पौत्र और दानवीर राजा होने के बावजूद राजा बलि एक अहंकारी राक्षस था. वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया, धमकाया करता था. अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक और पाताल लोक का स्वामी बन गया.
जब इंद्र देव के हाथ से स्वर्ग निकल गया तो वे सभी देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे. इंद्र देव ने भगवान विष्णु को आपबीती सुनाई और मदद मांगी. तब भगवान विष्णु ने उन्हें इस समस्या से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया. इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन के रूप में धरती पर पांचवां अवतार लिया.
भगवान वामन एक बौने ब्राह्मण के वेश में राजा बलि के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया. उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था. राजा बलि मान गए और उन्हें तीन पग भूमि देने का वादा कर दिया.
वामनदेव ने अपने पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया. दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया. तीसरे कदम के लिए कोई भूमि नहीं बची. लेकिन राजा बलि अपने वचन के पक्के थे, इसलिए तीसरे उन्होंने अपना सिर झुकाकर कहा कि तीसरा कदम प्रभु यहां रखें. वामन देव राजा बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए. इसलिए वामन देव ने राजा बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बलि के सिर पर रखा. इसके बाद बलि पाताल लोक में पहुंच गए.
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