हिंदू पंचांग के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन अत्यंत शुभ और धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) दोनों की एक साथ पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं भगवान विष्णु से बैकुंठ धाम जाने का मार्ग प्राप्त किया था. तभी से इस तिथि को "बैकुंठ चतुर्दशी" कहा जाने लगा. ऐसा विश्वास है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विधि-विधानपूर्वक पूजा, व्रत, और दान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की आराधना करने से सारे पाप नष्ट होते हैं .
हिंदू पंचांग के अनुसार, 3 नवंबर (सोमवार) की मध्यरात्रि के बाद रात 2 बजकर 6 मिनट से चतुर्दशी तिथि का आरंभ होगा, जो 4 नवंबर (मंगलवार) की रात 11 बजकर 37 मिनट तक रहेगी. इसी कारण बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व 4 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन पूजा-अर्चना का सबसे शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 35 मिनट से रात 7 बजकर 34 मिनट तक रहेगा.
इस दिन के प्रमुख कर्म
श्रद्धालु सुबह-सुबह पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, जिससे तन और मन दोनों की शुद्धि होती है. इस दिन उपवास रखकर भगवान शिव-विष्णु के नामों का जप किया जाता है. गंगा तट, मंदिरों और घरों में दीप प्रज्वलित कर भगवान को समर्पित किए जाते हैं.
पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में उठें. सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ, पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि ये दोनों रंग सौभाग्य और ऊर्जा के प्रतीक हैं. पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें. घर के मंदिर या पूजा स्थल में एक चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाएं. उस पर भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें. दीपक जलाएं, संभव हो तो घी का दीपक ही जलाएं. व्रत का संकल्प लें. उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें कमल का फूल अर्पित करें.
इसके बाद भगवान शिव की आराधना करें और उन्हें बेलपत्र, धतूरा, तथा गंगा जल चढ़ाएं. पूजा में धूप, दीप, चंदन, इत्र, गाय का दूध, केसर, दही और मिश्री का उपयोग करें. यह सभी सामग्री शिव-विष्णु दोनों को अत्यंत प्रिय मानी गई है. अब मंत्रजप का आरंभ करें. पहले भगवान विष्णु के मंत्र “ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।” का कम से कम 108 बार जाप करें. इसके बाद का “ॐ नमः शिवाय।” जप करें .
व्रत कथा और आरती
मंत्रजप के उपरांत बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा का पाठ करें. कथा के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की आरती करें.
विशेष कर्म और भोग
इस दिन संभव हो तो श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें, क्योंकि यह विष्णु भगवान को अर्पित सबसे श्रेष्ठ उपहार माना गया है. पूजन के अंत में मखाने की खीर बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं . यह प्रसाद अत्यंत शुभ और पुण्य फल देने वाला माना जाता है.
बैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा
एक बार भगवान विष्णु जी ने यह संकल्प लिया कि वे काशी नगरी में भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प अर्पित करेंगे. भगवान विष्णु ने एक-एक कर स्वर्ण कमल भगवान शिव के चरणों में अर्पित करने प्रारंभ किए. जब वे कमलों की गिनती करने लगे, तो उन्होंने देखा कि एक पुष्प कम है. वास्तव में, यह कोई संयोग नहीं था. भगवान शिव स्वयं उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प को अदृश्य कर चुके थे. तब भगवान विष्णु ने क्षणभर विचार किया और कहा, “मुझे तो कमल नयन कहा जाता है, अतः यदि एक पुष्प कम है तो मैं अपने नेत्र का कमल ही अर्पित कर दूं”. इतना कहकर भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर भगवान शिव को समर्पित करने का प्रयास किया.
विष्णु जी की यह श्रद्धा देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने तुरंत प्रकट होकर विष्णु जी को वरदान देते हुए कहा कि “हे विष्णु, तुम्हारी इस भक्ति के कारण यह तिथि सदा के लिए बैकुंठ चतुर्दशी (या वैकुंठ चौदस) के नाम से जानी जाएगी. जो भी भक्त इस दिन विधि-विधानपूर्वक मेरी और तुम्हारी पूजा करेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी”. इस प्रकार यह तिथि हरि (विष्णु) और हर (शिव) के एकत्व का प्रतीक बन गई.
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