Sakat Chauth 2023: सकट चौथ पर क्यों काटा जाता है 'बकरा'? जानें- इसके पीछे की खास वजह

Sakat Chauth 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान गणेश और माता सकट की पूजा की जाती है. सकट चौथ के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं. इस दिन पूजन के समय सकट चौथ की कुछ कथाएं भी सुनी जाती है. आइए जानते उन पौराणिक कथाओं के बारे में.

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सकट चौथ 2023 सकट चौथ 2023

शशांक शेखर बाजपेई

  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 6:46 PM IST

Sakat Chauth 2023: हिंदू धर्म में सकट चौथ की बहुत ज्यादा मान्यता है. इस दिन भगवान गणेश और माता सकट की पूजा की जाती है. इस बार 10 जनवरी 2023 यानी आज के दिन सकट चौथ मनाई जा रही है. सकट चौथ को तिल कुटा चौथ, संकटी चौथ, संकष्टी चतुर्थी और माही चौथ के नाम से जाना जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं. सकट चौथ के दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छी सेहत और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं. सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा करते समय कुछ कथाएं भी सुनी जाती है.

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सकट चौथ के दिन तिल और गुड़ को बकरे का आकार दिया जाता है और फिर उसे काटा जाता है. आइए जानते हैं कि सकट चौथ की इस परंपरा और इससे जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं के बारे में. 

सकट चौथ व्रत कथाएं

ग्वालियर के पंडित सतीश सोनी जी ने बताया है कि इस चतुर्थी का नाम है संकष्टी गणेश चतुर्थी यानी संकटों को दूर करने वाली. पंडित जी ने बताया कि परिवार पर कोई संकट न आए इसलिए पहले बलि प्रथा चलती थी, जिसके लिए बकरे की बलि दी जाती थी. लेकिन अब यह प्रथा बंद हो गई है. इसलिए प्रथा को चलाने के लिए सकट चौथ के दिन अब तिल और गुड़ को बकरे का आकार दिया जाता है. फिर दूब से उसकी गर्दन काटी जाती है. दूब में धार होती है इसलिए उसे तलवार के रूप में देखा जाता है. मान्यता ये है कि बकरे की बलि न देकर गुड़ और तिल की बलि देकर भगवान गणेश को प्रसन्न कर सकते हैं. इसलिए तिल संकष्टी चतुर्थी पर तिल और गुड़ के बकरे की बलि दी जाती है.  

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पहली कथा

इंदौर के पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि सकट चौथ के पीछे प्रचलित कथा यह है कि मां पार्वती ने अपने उबटन से भगवान गणेश जी की उत्पत्ति की. उन्हें अपने द्वार पर द्वारपाल बनाकर अपनी रक्षा के लिए नियुक्त किया और कहा बेटे जब तक मैं स्नान कर बाहर न आ जाऊं, तब तक किसी को भी अंदर न आने देना. मातृ भक्ति में रत भगवान गणेश ने मां की आज्ञा का बखूबी पालन किया. 

उन्होंने भगवान शंकर जी को भी अंदर नहीं आने दिया. फलस्वरूप भगवान क्रोधित हो गए और गणेश जी की गर्दन को अपने त्रिशूल से काट दिया. यह देखकर माता पार्वती बड़ी कुंठित हुई और इस संसार को खत्म करने के लिए अपना विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता घबरा गए और भगवती की आराधना करने लगे. 

तब माता पार्वती ने कहा कि जब भगवान गणेश जीवित हो जाएंगे, तो सभी देवता उनकी रक्षा का संकल्प लेंगे. सारे देवताओं में गणेश अग्रणी रहेंगे, तभी मैं अपने स्वरूप को निर्मल बनाऊंगी और संसार को नष्ट होने से रोक सकूंगी. भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर अपने त्रिशूल को भेजा और एक हाथी के सिर को लेकर भगवान गणेश के शीश पर लगाकर उन्हें जीवनदान दिया. 

इसलिए जिस प्रकार मां पार्वती ने अपने पुत्र की रक्षा की थी और महाघोर संकट से उसे बचाया था, उसी प्रकार आज भी महिलाएं संकष्टि चतुर्थी का व्रत करती हैं. इससे भगवान गणेश प्रसन्न होकर उनके पुत्र की रक्षा करते हैं तथा बड़े से बड़े कष्टों से बचाते हैं. 

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कायस्थ परिवार मकर संक्रांति के बाद मनाता है सकटा चौथ 

इंदौर के पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि सकटा चौथ से भी विख्यात यह व्रत मनाया जाता है, जिसमें कायस्थ परिवार मकर संक्रांति के पश्चात तिल का बकरा बना कर उसे काटते हैं तथा पूरे परिवार में बांटते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार तिल के लड्डू को काटकर बांटने से घर की सुख शांति बनी रहती है. किसी प्रकार की आपदाएं जीवन में नहीं आती हैं और सभी में मधुर संबंध और प्रगाढ़ होते हैं. 

वैज्ञानिक अर्थ के दृष्टिकोण से हम जानेंगे कि अब मकर संक्रांति के पश्चात गर्मी का समय प्रारंभ होने वाला होता है, जिसमें सूर्य नीच राशि से निकलकर पृथ्वी के नजदीक आने लगते हैं. अर्थात हम शीत ऋतु से बाहर आकर गर्मी की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में हमारा शरीर गर्मी के योग्य बन जाए, इसलिए हमारे गर्म पदार्थ जैसे तिल का सेवन किया जाता है. 

इस तरह से हम अपने शरीर को आने वाले समय के लिए अनुकूलित कर लेते हैं, जिससे हमें महामारी या किसी प्रकार के कफ पित्त संबंधी विकार नहीं होते हैं। इसलिए यह पूरा महीना तिल से संबंधित व्रत, पर्व और त्योहारों का मनाया जाता है. आने वाले समय के लिए हमें पूर्णता तैयार होने के लिए प्रेरित किया जाता है.

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दूसरी कथा

एक बार एक नगर में एक कुम्हार रहता था. एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आवा लगाया तो आवा पका ही नहीं. ऐसे में परेशान होकर कुम्हार राजा के पास गया. तब राजा ने पंडित को बुलाकर इसके पीछे की वजह जाननी चाही. पंडित ने कहा, हर बार आवा जलाते समय आपको एक बच्चे की बलि देनी होगी. इससे वह पक जाएगा. जब बली की बारी आई तब हर परिवार से एक दिन एक बच्चा बलि के लिए भेजा जाता था. इसी तरह कुछ दिन बीते और कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई.

हालांकि बुढ़िया दुनिया में अकेली थी और उसका एकमात्र सहारा उसका बेटा था. ऐसे में वो राजा के पास गई और बोली कि, "मेरा एक ही बेटा है और वह भी अब इस बलि के चक्कर में मुझसे दूर हो जाएगा". हालांकि बुढ़िया को एक उपाय सूझा उसने अपने बेटे को सकट की सुपारी और दूब का बेड़ा देकर कहा तुम भगवान का नाम लेकर आवा में बैठ जाना सकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी. ऐसे में जब अगले दिन बुढ़िया के बेटे को आवा में बिठाया गया तब बुढ़िया अपने बेटे की सलामती के लिए पूजा करने लगी.

जिसके प्रभाव से जो आवा पहले पकने में कई दिन लग जाते थे इस बार वह एक ही रात में पक गया और सुबह जब कुमार ने आवा देखा तो आवा भी पक चुका था और बुढ़िया के बेटे का भी बाल बांका नहीं हुआ था. सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बच्चे जिनकी बलि दी गई थी वह भी जाग उठे. तभी से नगर वासियों ने मां सकट की महिमा को स्वीकार कर सकट माता की पूजा और व्रत का विधान शुरू कर दिया.

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