Premanand Maharaj: 'मैं संत बनना चाहता हूं', प्रेमानंद महाराज ने जब पिता से मांगी आज्ञा, मिला ये जवाब

Premanand Maharaj: वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने संत बनने का फैसला लिया और घर छोड़कर चले आए तो तीन दिन बाद उनके पिताजी उन्हें खोजते हुए उनके पास पहुंचे. उन्हें घर वापस चलने के लिए कहने लगे. तब प्रेमानंद जी ने उन्हें बताया कि अब संन्यासी मार्ग और ईश्वर की भक्ति ही उनका घर है.

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क्या हुआ जब प्रेमानंद महाराज ने अपने पिता से कहा कि मैं संत बनना चाहता हूं. (Photo: YT_BhajanMarg) क्या हुआ जब प्रेमानंद महाराज ने अपने पिता से कहा कि मैं संत बनना चाहता हूं. (Photo: YT_BhajanMarg)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:19 PM IST

Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज का आध्यात्मिक जीवन, भक्ति और त्याग किसी से छिपा नहीं है. सोशल मीडिया के माध्यम से आज दुनियाभर में लोग उनके प्रवचन सुन रहे हैं और सीख लेकर अपना जीवन बदल रहे हैं. हालांकि क्या कभी आपने सोचा है कि प्रेमानंद महाराज को भक्ति का मार्ग कैसे मिला. शुरुआत में जब उन्होंने इसके बारे में अपने परिवार को बताया तो उन्हें कैसी प्रतिक्रिया मिली. अपने एक प्रवचन में प्रेमानंद ने खुद इसके बारे में बताया है.

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प्रेमानंद महाराज ने बताया कि जब वे संन्यासी मार्ग को अपनाने के लिए घर से निकले तो उसके तीन दिन बाद ही उनके पिता उन्हें खोजते हुए उन तक पहुंच गए. पिता को नजदीक आता देख वे तुरंत ध्यान की मुद्रा में आंख बंद करके बैठ गए. पिता ने उन्हें दो बार विनम्रता से कहा- 'उठो'. लेकिन वो नहीं उठे. उन्होंने जब तीसरी बार कठोरता के साथ 'कहा'- उठो तो प्रेमानंद जी खड़े हो गए. इस डर से कि अगर अभी खड़े नहीं हुए तो पिताजी की मार पड़ेगी.

हालांकि उन्होंने बहुत हिम्मत करके अपने पिताजी से कहा कि मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूं. उनके पिताजी ने पूछा- 'क्या कहना चाहते हो?' तब प्रेमानंद महाराज बोले, 'मेरा जीवन अब ईश्वर को समर्पित है. मैं घर नहीं लौट सकूंगा. इसके लिए आप चाहें तो मुझे दंड दे सकते हैं. लेकिन मेरा पीछे हटना अब मुश्किल है.'

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प्रेमानंद महाराज ने बताया कि उनकी यह दृढ़ता देखकर पिता का मन पल भर में पिघल गया. मानो उन पर ईश्वर की कृपा हो गई हो. तब पिता ने उनसे पूछा- ' क्या तुम सच में घर नहीं आओगे?' प्रेमानंद जी ने 'नहीं' कहकर उत्तर दिया. इसके बाद उनके पिताजी बोले- 'शादी-विवाह भी नहीं करोगे?' उन्हें इसका जवाब भी 'ना' में ही मिला.

इसके बाद प्रेमानंद जी के पिता ने उन्हें गले लगाया और तीन बार ‘राम-राम-राम’ कहा. फिर आशीर्वाद देते हुए जाने की आज्ञा दे दी और कहा- 'जाओ, जीवन में कभी तुम्हारा बाल बांका नहीं होगा. मेरी एक बात ध्यान रखना. अगर तुम संन्यासी बनते हो तो मेरा आशीर्वाद है कि बंजर भूमि में भी बैठोगे तो फूल खिल उठेंगे. और यदि कभी किसी की बहन-बेटी पर गलत दृष्टि डाली तो….' इतना कहकर वो चुप हो गए.

फिर प्रेमानंद महाराज ने अपने पिता से कहा- 'ऐसा दिन कभी नहीं आएगा कि इस बात के लिए आपको शिकायत का मौका मिले.' प्रेमानंद जी ने बताया कि इतना कहकर पिताजी चले गए. लेकिन उनका आशीर्वाद आज भी मेरे साथ है, क्योंकि माता-पिता का आशीर्वाद वास्तव में ईश्वर का ही आशीर्वाद होता है.

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