राजस्थान नहीं, इस जगह होती है खाटू श्याम के धड़ की पूजा, दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा 21 मई को राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर के दर्शन करने पहुंची. दरअसल, इस मंदिर की महिमा ही कुछ ऐसी है कि यहां पर हर रोज लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हरियाणा के हिसार जिले में बाबा खाटू श्याम के धड़ की पूजा होती है. आइए जानते हैं इसके पीछे की रोचक कहानी.

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खाटू श्याम मंदिर खाटू श्याम मंदिर

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 23 मई 2025,
  • अपडेटेड 8:49 PM IST

राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम का पवित्र मंदिर स्थित है. इस मंदिर की महिमा कुछ ऐसी है कि यहां हर रोज लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं. मान्‍यता है कि जो लोग भगवान खाटू के दर्शन करते हैं, उनके जीवन की हर समस्या अपने आप दूर हो जाती है. इसलिए भक्त इन्हें "हारे का सहारा" भी कहते हैं. इस मंदिर में खाटू श्याम के शीश की पूजा होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा खाटू श्याम का धड़ कहां है? यह जानने के लिए आपको पहले महाभारत के युद्ध की एक अहम कड़ी को समझना होगा.

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महाभारत के युद्ध में खाटू श्याम को घटोत्कच का बेटा और भीम का पोता बताया गया है. उनका असली नाम बर्बरीक था. पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए बर्बरीक ने अपनी माता से आज्ञा मांगी थी. मां ने उन्हें युद्ध में जाने की आज्ञा तो दी, लेकिन युद्ध में उन्हें हारने वाले का सहारा बनने की सलाह दी.

बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को क्यों किया था शीशदान?

महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ब्राह्मण वेश में वीर बर्बरीक से मिले थे और उन्होंने इस महान योद्धा की वीरता और दानवीरता की भी परीक्षा ली थी. बर्बरीक ने अपने तीन बाणों के चमत्कार से कृष्ण को आश्चार्य में डाल दिया था. और जब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि तुम किस पक्ष से युद्ध करोगे, तो बर्बरीक ने कहा कि अपनी मां को दिए वचन के अनुसार मैं 'हारे का सहारा' बनूंगा. वीर बर्बरीक के इस वचन के बाद श्रीकृष्ण ने उनके शीशदान की लीला रची. बर्बरीक शीशदान के लिए तो सहर्ष तैयार हो गए, लेकिन उन्हें दुख हुआ कि वह अपने पिता, दादा व अन्य पूर्वजों के किसी काम नहीं आ सके. उन्होंने श्रीकृष्ण से अपने उद्धार का तरीका पूछा साथ ही बताया कि वह भी इस युद्ध में हिस्सा लेना चाहते थे और इसे देखना चाहते थे. बर्बरीक ने कृष्ण से विनीत स्वर में कहा, मैं भी इस युद्ध में भाग लेना चाहता था, लेकिन शीश दान के कारण ऐसा नहीं कर पाऊंगा इसका शोक है, मैं अपने पूर्वजों को मृत्यु के बाद क्या मुंह दिखाउंगा.

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श्रीकृष्ण ने बताई शीशदान की वजह

श्रीकृष्ण बोले, दुख न करो बर्बरीक अगर तुम शीश दान न करते तो अपने पूर्वजों के बिल्कुल काम नहीं आते. इसका कारण है तुम्हारा वचन. शुरुआत में तो तुम पांडव सेना से ही युद्ध करोगे, लेकिन वचन के कारण कौरव पक्ष को हारता देख उधर जा मिलोगे. इसके कारण फिर पांडव सेना हारने लगेगी. ऐसा देखकर तुम वापस इधर आ जाओगे. यह क्रम चलता रहेगा और युद्ध का कोई निर्णय न निकल पाने के कारण धर्म स्थापना का कार्य नहीं हो सकेगा. इसलिए मुझे यह करना पड़ा. तभी तो कहा भी जाता है कि जब-जब दुनिया में खराब हालात होंगे, खाटू भगवान भक्तों की मदद करेंगे.

राजस्थान में मिला था खाटू श्याम का शीश

महाभारत के दौरान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांगा था. बर्बरीक ने बिना कुछ सोचे ही श्री कृष्ण को अपना शीश दान दे दिया. इसके बाद श्रीकृष्ण ने प्रसन्‍न होकर उन्‍हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे. जो भी हारा हुआ तुम्हारे पास आएगा, तुम उसका सहारा बनोगे. इसी वजह से उन्‍हें हारे का सहारा कहा जाता है.

हरियाणा में मिला था खाटू श्याम का धड़

वहीं, बाबा खाटू श्याम के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव बीड़ में होती है. यहां पर श्याम के धड़ की आराधना के लिए लोग दूर दूर से पहुंचते हैं. इस मंदिर में आने वाले भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं. दरअसल, कौरव-पांडव युद्ध के बाद शीश व धड़ को अलग-अलग नदियों में फेंक दिया था. पानी में बहती हुई धड़ व सिर अलग-अलग जगह पर मिले. खाटू श्याम का धड़ हरियाणा के बीड़ में मिला था और सिर राजस्थान के सीकर जिले में मिला था. 

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