Jagannath Rath Yatra 2025: इस खास लकड़ी से बनता है भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ, निर्माण कार्य हुआ शुरू

Jagannath Rath Yatra: पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अक्षय तृतीया के दिन नगर भ्रमण हेतु रथयात्रा की थी. इसी घटना को याद करते हुए, हर वर्ष इसी तिथि को रथ निर्माण आरंभ किया जाता है.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 01 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:19 PM IST

Jagannath Rath Yatra 2025: 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी की वार्षिक रथयात्रा के लिए भव्य रथों के निर्माण की परंपरागत शुरुआत हो गई है. सदियों पुरानी इस परंपरा का पौराणिक महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अक्षय तृतीया के दिन नगर भ्रमण हेतु रथयात्रा की थी. इसी घटना को याद करते हुए हर साल इसी तिथि पर इनका रथ निर्माण आरंभ किया जाता है.

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रथयात्रा का पौराणिक इतिहास

श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ द्वारका में निवास करते हुए एक दिन रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण का विचार किया. इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने विश्वकर्मा से तीन भव्य रथों का निर्माण करवाया. एक और मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण के मामा कंस ने उन्हें मारने की योजना बनाई, तब कंस ने अपने दरबारी अक्रूर को एक रथ के साथ गोकुल भेजा और श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम के साथ रथ पर बैठे और मथुरा के लिए रवाना हो गए. कहते हैं गोकुल वासियों ने इस दिन को रथ यात्रा का प्रस्थान माना.

नंदीघोष रथ पर विराजते हैं जगन्नाथजी

भगवान जगन्नाथ जी के रथ का नाम नंदीघोष है, जिसे बनाने में कारीगर लकड़ी के 832 टुकड़ों का उपयोग करते हैं. यह भव्य रथ 16 चक्कों पर खड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 45 फीट और लंबाई 34 फीट होती है. रथ के सारथी का नाम दारुक है, जबकि रक्षक गरुण होते हैं. रथ को खींचने वाली रस्सी का नाम शंखचूर्ण नागुनी है और इस पर त्रैलोक्य मोहिनी नाम की पताका फहराती है. रथ को खींचने वाले चार घोड़ों के नाम हैं- शंख, बहालक, सुवेत और हरिदश्व. जगन्नाथ जी के रथ पर वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रुद्र जैसे नौ देवता सवार होते हैं. इस रथ को गरुणध्वज और कपिध्वज के नाम से भी जाना जाता है. नंदीघोष रथ न केवल भगवान जगन्नाथ की यात्रा का माध्यम है, बल्कि यह श्रद्धा, परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय प्रतीक भी है.

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दर्पदलन रथ पर देवी सुभद्रा

भगवान श्रीकृष्ण की बहन देवी सुभद्रा जी के रथ का नाम देवदलन है, जिसे लोग दर्पदलन के नाम से भी जानते हैं. इस रथ को बनाने में 593 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग होता है. यह रथ 12 चक्कों पर खड़ा होता है, जिसकी लंबाई 31 फीट और ऊंचाई 43 फीट होती है. मान्यता है कि इस रथ के सारथी स्वयं अर्जुन हैं और रथ की रक्षिका जयदुर्गा देवी होती हैं. इस रथ में बंधे रस्से को स्वर्णचूड़ नागुनी कहा जाता है और रथ पर फहराने वाली पताका का नाम नदंबिका है. सुभद्रा जी के रथ को खींचने वाले चार घोड़े हैं — रुचिका, मोचिका, जीत और अपराजिता. यह रथ देवी सुभद्रा की शक्ति, सौम्यता और विजय का प्रतीक माना जाता है.

बलभद्र जी तालध्वज रथ पर होते हैं सवार

बलभद्र जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है. यह तीनों रथों में सबसे अधिक मजबूत और विशाल होता है, जिसे बनाने में 763 लकड़ी के टुकड़े इस्तेमाल होते हैं. यह रथ 14 चक्कों पर खड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 44 फीट और लंबाई 33 फीट होती है. इस रथ के सारथी का नाम मातली है, जबकि रक्षक वासुदेव माने जाते हैं. रथ में बंधे रस्से को वासुकि नाग कहा जाता है और उस पर फहराने वाली पताका का नाम उन्नानी है. बलराम जी के रथ को खींचने वाले चार घोड़े हैं — तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ. यह रथ बलराम जी की शक्ति, धैर्य और नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है.

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नीम और नारियल की लकड़ी से तैयार होता है रथ

रथ निर्माण के लिए चुनी गई लकड़ी पुरी के पास दसपल्ला के जंगलों से लाई जाती है. केवल नीम और नारियल के विशेष पेड़ों को ही अनुमति मिलने पर काटा जाता है. वन देवी की पूजा और ग्राम देवी की अनुमति के बाद ही लकड़ी पुरी पहुंचती है.

कैसे होता है रथ का निर्माण?

रथ को डिजाइन करने की जिम्मेदारी बढ़ई के जिस समूह को मिलती है, वही लकड़ियों को काटते हैं और उन्हें तराशने का काम करते हैं. चित्रकारों के हिस्से रथ पर रंग-रोगन और चित्रकारी का काम होता है. फिर अगले दर्जे पर सुचिकार या दरजी सेवक रथ की सजावट के लिए कपड़े सिलते हैं. सबसे आखिरी में आते हैं रथ भोई जो कि प्रमुख कारीगरों के सहायक और मजदूर होते हैं. बिना इनके रथ निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यह हर कारीगरों के लिए सहायता करते हैं. खास बात है कि पुरी में रथ का निर्माण करने वाले सदियों से एक ही पीढ़ी के लोग हैं और इन्हें इस काम की जानकारी वंशानुगत है.

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