राजस्थान: ऊंटों पर सजी बारात, 14 KM का सफर तय कर दुल्हन के घर पहुंचा दूल्हा

राजस्थान के झुंझुनूं जिले में अनोखी शादी देखने को मिली, जहां दूल्हा तरुण 11 ऊंटों पर सजी बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचा. करीब 14 किलोमीटर का सफर ढाई घंटे में पूरा किया गया. यह परंपरा दूल्हे के दादा की इच्छा पर निभाई गई. लोगों ने इसे पुरानी संस्कृति को जीवित करने वाला कदम बताया. इसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हा रही है.

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ऊंट पर बारात निकाली गई  (Photo: Screengrab) ऊंट पर बारात निकाली गई (Photo: Screengrab)

राकेश गुर्जर

  • फतेहपुर शेखावाटी,
  • 15 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:23 PM IST

शादी के मौसम में जहां आधुनिकता की चमक-दमक, लग्जरी गाड़ियां और दिखावे की होड़ आम होती जा रही है, वहीं राजस्थान में एक शादी ऐसी भी हुई जिसने लोगों को दशकों पीछे ले जाकर खड़ा कर दिया. यह शादी न सिर्फ अपनी सादगी के लिए चर्चा में रही, बल्कि इसलिए भी खास बनी क्योंकि इसमें बारात किसी कार या बस में नहीं, बल्कि ऊंटों पर निकली. दूल्हा स्वयं ऊंट पर सवार था और उसके साथ 11 ऊंटगाड़ियों पर बाराती चलते नजर आए. यह नजारा देखने वालों के लिए किसी पुराने राजस्थानी लोकचित्र से कम नहीं था.

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यह अनोखी शादी झुंझुनूं जिले के बिसाऊ कस्बे में रहने वाले सीताराम जालवाल के बेटे तरुण की थी, जिनका विवाह सीकर जिले के रामगढ़ निवासी गोपीचंद छापोला की बेटी मनीषा से संपन्न हुआ. शादी की सबसे खास बात यह रही कि बारात 11 ऊंटों पर सवार होकर निकली और लगभग 14 किलोमीटर का सफर तय कर ढाई घंटे में दुल्हन के घर पहुंची. रास्ते भर लोग इस दृश्य को देखकर रुकते रहे, मोबाइल से वीडियो बनाते रहे और पुराने समय की परंपराओं को याद करते रहे.

दरअसल, इस अनोखी पहल के पीछे दूल्हे के दादा की एक पुरानी इच्छा थी. परिवार के बुजुर्गों का कहना है कि पहले के समय में इस इलाके में ऊंटों पर बारात निकलना आम बात थी. दूल्हे के दादा और परदादा की शादियां भी इसी तरह हुई थीं. समय बदला, साधन बदले और परंपराएं धीरे-धीरे पीछे छूटती चली गईं. लेकिन परिवार चाहता था कि कम से कम एक बार फिर उसी परंपरा को जिया जाए, जिसे बुजुर्गों ने देखा और निभाया था.

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दूल्हे के पिता सीताराम जालवाल बताते हैं कि यह निर्णय अचानक नहीं लिया गया. करीब पांच महीने पहले ही तय कर लिया गया था कि तरुण की बारात ऊंटों पर ही निकलेगी. इसके लिए ऊंटों की व्यवस्था, मार्ग की योजना और समय का पूरा ध्यान रखा गया. गांव और आसपास के लोगों को जब इसकी जानकारी मिली तो उत्सुकता बढ़ने लगी. लोग फोन करके पूछते रहे कि बारात किस रास्ते से जाएगी और किस समय निकलेगी.

शादी वाले दिन सुबह से ही बिसाऊ में उत्सव का माहौल था. ऊंटों को पारंपरिक ढंग से सजाया गया. रंग-बिरंगी झालरें, कपड़े और साज-सज्जा ने ऊंटों को और आकर्षक बना दिया. दूल्हा तरुण पारंपरिक परिधान में ऊंट पर सवार हुआ. जैसे ही बारात आगे बढ़ी, ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ पूरा काफिला धीरे-धीरे रामगढ़ की ओर रवाना हो गया. करीब 14 किलोमीटर के इस सफर में बारात ने लगभग ढाई घंटे का समय लिया. रास्ते में कई जगह लोग खड़े होकर इस अनोखी बारात को देखते रहे. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस दृश्य को देखकर खुश नजर आया. कुछ लोगों ने इसे पुराने समय की यादों से जोड़ा तो कुछ ने कहा कि ऐसी शादियां ही हमारी संस्कृति की पहचान हैं.

रामगढ़ पहुंचने पर दुल्हन के गांव में भी इस बारात का भव्य स्वागत किया गया. ऊंटों पर सवार बारातियों को देखने के लिए आसपास के गांवों से भी लोग पहुंच गए. पारंपरिक अंदाज में दूल्हे का स्वागत हुआ और विवाह की रस्में विधि-विधान से पूरी की गईं. दूल्हे के पिता सीताराम जालवाल का कहना है कि ऊंटों पर बारात निकालने का विचार सुनते ही लोगों ने इसकी प्रशंसा की. कई लोगों ने कहा कि आपने पुरानी संस्कृति को फिर से जीवित किया है. उनका मानना है कि नई पीढ़ी को आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परंपराओं को भी सहेज कर रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि सुविधाएं और तकनीक जरूरी हैं, लेकिन अपनी जड़ों को भूल जाना ठीक नहीं है.

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दूल्हा तरुण भी इस अनुभव से बेहद खुश नजर आए. उनका कहना है कि उन्होंने अपने दादा और परदादा से हमेशा सुना था कि पहले ऊंटों पर बारात जाया करती थी. आज के समय में लोग कार, बस या कभी-कभी हेलिकॉप्टर से भी बारात निकालते हैं, लेकिन उनके दादा की इच्छा थी कि उनकी तरह ही पोते की बारात भी ऊंटों पर निकले. तरुण कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि वे अपने दादा की इच्छा पूरी कर सके और उसी परंपरा को आगे बढ़ा सके.

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