राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल के खिलाफ चल रही डॉक्टरों की हड़ताल खत्म हो गई है. ये हड़ताल 16 दिन से जारी थी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक प्रेस रिलीज जारी कर हड़ताल खत्म करने की जानकारी दी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की राजस्थान ब्रांच ने बयान जारी कर सभी निजी डॉक्टरों को मंगलवार रात 8 बजे से काम पर जाने की सलाह दी है.
अशोक गहलोत की सरकार ने 21 मार्च को राइट टू हेल्थ बिल विधानसभा में पास किया था. तब से ही डॉक्टर इस बिल का विरोध कर रहे थे. प्राइवेट डॉक्टर्स इस बिल को रद्द करने की मांग कर रहे थे.
डॉक्टर्स 'राइट टू हेल्थ बिल' का क्यों कर रहे विरोध?
'राइट टू हेल्थ बिल' के खिलाफ लगभग 2500 निजी अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर थे. डॉक्टरों का आरोप था कि राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियां प्राइवेट डॉक्टरों के कंधे पर डालना चाहती है. डॉक्टरों के मुताबिक, इस विधेयक की रूपरेखाएं अभी तक साफ नहीं है.
डॉक्टरों का सवाल है कि जब पहले से ही सरकार कई स्वास्थ्य योजनाएं चला रही हैं तो अलग से राइट टू हेल्थ बिल लाने की जरूरत क्यों पड़ी? हड़ताल पर बैठे डॉक्टरों का कहना है कि इस विधेयक के चलते निजी अस्पतालों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है और उनकी जीविका पर भी असर पड़ सकता है.
एक चुनावी वादा जो बना बवाल का कारण
असल में कांग्रेस ने राइट टू हेल्थ बिल लाने का वादा 2018 में ही कर दिया था. ये उसका एक चुनावी वादा था. फिर इसे पिछले साल सितंबर में सदन में पेश भी किया गया, लेकिन तब अनिवार्य मुफ्त आपातकालीन उपचार के नियमों को लेकर विवाद रहा और बिल पास नहीं हो पाया. लेकिन अब चालू बजट के दौरान इस बिल को पारित करवा दिया गया.
इस बिल के जरिए सरकार का उदेश्य है कि किसी भी मरीज को इलाज के लिए मना नहीं किया जाएगा. वहीं अगर इमरजेंसी स्थिति में कोई मरीज अपना खर्चा नहीं उठा पाएगा तो सरकार वो वहन करेगी. ये नियम प्राइवेट अस्पतालों पर भी लागू होने वाला है. अब बिल के इसी पहलू का प्राइवेट अस्पताल विरोध कर रहे हैं. कुछ तो इसे राइट टू डेथ बिल घोषित कर रहे हैं. जोर इस बात पर है कि सरकार ने बिल में इमजरेंसी स्थिति को कही भी स्पष्ट नहीं किया है. ये भी नहीं बताया गया है कि अस्पताल को सरकार द्वारा किस तरह पैसों का भुगतान किया जाएगा. इसी वजह से प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
जयकिशन शर्मा