देश की पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन पर आधारित कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी की रिलीज रोक दी गई है. बताया गया है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड से परमिशन नहीं मिली है.सवाल उठ रहा है कि जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है और सेंसर बोर्ड में बीजेपी सरकार की सिफारिश पर रखे गए लोग हैं तो भी एक बीजेपी सांसद की फिल्म कैसे और क्यों रोक दी गई? बीजेपी को अपने समर्थकों का ही जवाब देना मुश्किल हो गया है. कंगना रनौत के समर्थक पार्टी पर लगातार हमले कर रहे हैं कि सरकार कंगना का साथ क्यों नहीं दे रही है.
कंगना समर्थक तर्क दे रहे हैं कि IC-814 में सही को गलत बताया गया है, लेकिन वो गुनाह नहीं है. लेकिन इमरजेंसी सब सही सही बोला जा रहा है तो लोगों को भावनाएं क्यों आहत हो रही हैं. दरअसल इमरजेंसी फिल्म को लेकर सिख संगठन नाराज हैं. एसजीपीसी ने इस फिल्म का विरोध किया ही है. कुछ सिखों ने वीडियो जारी करके कंगना को जान से मारने की धमकी भी दी गई है. सिख संगठनों का कहना है कि फिल्म में जरनैल सिंह भिंडरावाले को आतंकी के रूप में दिखाया गया है, दूसरे सिखों को असाल्ट राइफलों से लोगों को मारते दिखाया गया है. भारत का हर बंदा जानता है कि पंजाब में एक समय खालिस्तानी आतंकियों ने बहुत हिंदुओं की हत्याएं की थीं. इंदिरा गांधी की भी हत्या बेअंत सिंह और सतवंत सिंह नामक सुरक्षा गार्डों ने की थी. कनाडा से लेकर पंजाब तक में इंदिरा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन किया जाता है. 2024 के लोकसभा चुनावों में तो इंदिरा गांधी के एक हत्यारे के बेटे को वहां की जनता ने संसद में भी पहुंचाया है. जाहिर है कि इस सत्य को कैसे झुठलाया जा सकता है?
1- बीजेपी पंजाब को लेकर अनावश्यक विवाद नहीं चाहती
दरअसल देश में किसान आंदोलन के समय से ही सिख बीजेपी सरकार से नाराज चल रहे हैं. सिखों को खुश करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर कोशिश नाकाम हुई है. किसान आंदोलन के चलते ही भारतीय जनता पार्टी का पुराना साथी अकाली दल भी अब उसके साथ नहीं है. पंजाब में सबसे अधिक बड़े सिख नेता बीजेपी में ही हैं, फिर भी यहां बीजेपी को वोट नहीं मिलता है. दूसरी बात यह भी है कि देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय बीजेपी से नाराज है. इसलिए पार्टी अब कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती जिससे एक और अल्पसंख्यक समुदाय नाराज हो जाए. सिखों की संख्या मुसलमानों से कम है पर कई कारणों के चलते वो देश के लिए ज्यादे महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
हाल के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पंजाब में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है पर वोट प्रतिशत बीजेपी का लगातार बढ़ रहा है. बीजेपी को उम्मीद है कि अगले विधानसभा चुनावों में वो फाइट में रहेगी. इसलिए पार्टी चाहती है कि अब सिखों को लेकर कोई ऐसा विवाद न हो जिससे पंजाब में बीजेपी का नुकसान हो. यही कारण है कि कंगना रनौत के किसान आंदोलन वाले बयान से पार्टी ने अपने आपको अलग रखा है. यही नहीं पार्टी ने कंगना रनौत को इस तरह के बयानों से दूर रहने का सलाह भी दी है.
अभी हाल ही में कंगना ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रवी हिंसा फैला रहे थे. वहां रेप और हत्याएं हो रही थीं. किसान बिल को वापस ले लिया गया वरना इन उपद्रवियों की बहुत लंबी प्लानिंग थी. वे देश में कुछ भी कर सकते थे. इस बयान के बाद आश्चर्यजनक रूप से पार्टी ने उनका समर्थन नहीं किया. ठीक यही रुख बीजेपी कंगना की फिल्म इमरजेंसी को लेकर भी दिखा रही है. मतलब साफ है भारतीय जनता पार्टी कंगना के चलते पंजाब के सिखों के बीच अपनी छवि खराब करने के मूड में नहीं है.
2- क्या कंगना के चलते 'इमरजेंसी' का विरोध कर रहे हैं सिख?
बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने किसान आंदोलन का जमकर विरोध किया था. किसान आंदोलन के समय उनके दिए गए एक बयान के चलते ही चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर तैनात एक महिला सुरक्षा गार्ड ने उन पर हमला कर दिया था. दरअसल आंदोलन के समय कंगना ने कहा था कि वहां धरने पर बैठने के लिए महिलाएं किराए पर लाई गईं थीं. हमले की आरोपी सुरक्षा गार्ड का कहना था कि धरने में बैठने वालों में उसकी मां भी शामिल थी. दरअसल सुरक्षा गार्ड का यह थप्पड़ इस बात का प्रतीक था कि सिखों में कंगना के खिलाफ किस तरह का जहर भर दिया गया है. किसान आंदोलन के समय ही पंजाबी सिंगर दलजीत दोसांझ से ट्विटर पर उनकी जमकर बहस हुई थी. दोनों ने एक दूसरे को बहुत कुछ कहा था.
हरियाणा के एक पूर्व सिख सांसद ने भी कंगना के खिलाफ अभी हाल ही में जहर भरा बयान दिया था. सांसद ने कहा था कि कंगना को रेप का अनुभव है उनसे पूछा जाना चाहिए. दरअसल ये सब कंगना के खिलाफ भरा जहर है जो समय समय पर निकल जाता है. इंदिरा गांधी पर आई इमरजेंसी का विरोध भी सिख नहीं करते अगर इस फिल्म में कंगना की जगह को दूसरी स्टार कास्ट होती.
देश में बहुत सी ऐसी फिल्में हैं जिनमें पंजाब के आतंकवाद को दिखाया गया है.पर उन फिल्मों का विरोध इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उनमें कंगना नहीं थीं. कंगना को देखकर सिखों को भी लगता है कि कहीं ये फिल्म जानबूझकर तो नहीं बनाई है कंगना ने. दूसरी बात यह भी है कि किसान आंदोलन के बाद से सिख समुदाय में कंगना को लेकर इतना जहर भर गया है कि लोग उन्हें जान से मारने की धमकी भी दे रहे हैं.
इसके साथ ही देश की मीडिया हो या सोशल मीडिया हो दोनों जगहों पर चीजों की मूल्यांकन इस आधार पर होता है कि यह किससे संबंधित मामला है. IC-814 वेब सीरीज का विरोध इसलिए होना ही था क्योंकि उसे अनुभव सिन्हा ने बनाया था. अनुभव की फिल्मों में अलग एजेंडा चलता है जिसे देश के लिबरल्स हाथों हाथ लेते हैं. ठीक उसी तरह कंगना की फिल्मों का विरोध तथाकथित लिबरल्स को विरोध तो करना ही था.
3-क्या बीजेपी इंदिरा गांधी के महिमामंडन को लेकर परेशान है
इमरजेंसी को लेकर भारतीय जनता पार्टी को एक और डर सता रही होगी. भारतीय जनता पार्टी पिछले महीने से ही लगातार 1975 में इमरजेंसी लगाए जाने को लेकर संसद से लेकर सड़क तक पर उत्तेजित है. इस बीच कई मौकों पर केंद्र सरकार ने इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है. दरअसल कांग्रेस जिस तरह संविधान के नाम पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रही है भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस को उसी तरह कटघरे में खड़ा करने के लिए इमरजेंसी की याद दिलाती है. इस बीच इमरजेंसी मूवी का विवाद शुरू हो गया है.
जाहिर है कि कंगना रनौत ने इमरजेंसी को ऐसी फिल्म बनाया होगा जिसमें इंदिरा गांधी को महान साबित न किया जा सके. पर जिस तरह वो जनता के बीच जाकर खालिस्तान मूवमेंट को नेस्तनाबूद करने के लिए इंदिरागांधी का महिमामंडन कर रही हैं उससे तो यही लगता है कि जनता के बीच भी इमरजेंसी काल को लेकर इंदिरा गांधी के प्रति नाराजगी उनके समर्थन में न बदल जाए.
अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ एक इंस्टाग्राम स्टोरी को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर पूरे सिख समुदाय को खालिस्तानी आतंकवादी बताया था और कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें मच्छरों की तरह अपने जूते के नीचे कुचल दिया .
कंगना रनौत ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि खालिस्तानी आतंकवादी आज सरकार पर दबाव बना रहे हैं. लेकिन हमें एक महिला को नहीं भूलना चाहिए. एकमात्र महिला प्रधान मंत्री ने इन्हें अपनी जूती के नीचे कुचल दिया था. चाहे उन्होंने इस देश को कितनी भी पीड़ा क्यों न दी हो, उन्होंने अपनी जान की कीमत पर उन्हें मच्छरों की तरह कुचल दिया, लेकिन देश के टुकड़े नहीं होने दिए. उनकी मृत्यु के दशकों बाद भी आज भी उनके नाम से कांपते हैं ये. इनको वैसा ही गुरू चाहिए.
संयम श्रीवास्तव