भारतीय जनता पार्टी का उत्तर- मध्य और पश्चिम भारत के विजय का सपना बहुत पहले पूरा हो चुका है. पूर्वोत्तर में भी असम और मणिपुर में पार्टी अपनी धाक जमा चुकी है. हालांकि बंगाल फतह के बिना पूर्वोत्तर विजय को भी अधूरा ही माना जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि बीजेपी का पताका दक्षिण में भी जल्दी ही फहरे. पर क्या खान-पान पर इमरजेंसी लगाकर पार्टी अपने दक्षिण और पूर्वोत्तर विजय का सपना कभी पूरा कर सकेगी ? आखिर मांस-मछली बेचने वालों को टार्गेट करके पार्टी साबित क्या करना चाहती है?
दरअसल मध्यप्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने पहले ही आदेश में सड़कों पर खुले में बिकने वाले मांस-मछली पर रोक का आदेश जारी किया है. उधर राजस्थान में भी पार्टी की जीत की खबर के साथ -जयपुर से चुने गए एक विधायक तुरंत सड़कों पर उतरकर मांस-मछली की दुकाने बंद कराने लगे. ये सही है कि बीजेपी की इस तरह की हरकतों से उसे तात्कालिक रूप से स्थानीय लोकप्रियता हासिल होती है. पर क्या दक्षिण के राज्यों और बंगाल में सफलता इन्हीं मुद्दों के साथ पार्टी हासिल कर लेगी? क्या मांसाहार के विरोध का नरेटिव सेटकर पार्टी दक्षिण विजय का गोल हासिल कर सकेगी?
दक्षिण में शाकाहार बनाम मांसाहार
भारत के रजिस्ट्रार जनरल के 2014 के सर्वेक्षण पर गौर करें तो यही लगेगा कि बीजेपी की खान पान की इमरजेंसी पार्टी के लिए दक्षिण में महंगी पड़ने वाली है. अब तेलंगाना का ही लीजिए, इस राज्य में केवल 1.3 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो शाकाहारी हैं. क्या शाकाहार का नरेटिव सेट कर बीजेपी इन मांसाहारी लोगों के बीच अपनी जगह बना सकेगी? गोवा में करीब 88 परसेंट लोग मांसाहारी हैं फिर भी बीजेपी को वोट देकर सरकार बनावाई है. इसी तरह असम में करीब 80 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं पर वहां भी बीजेपी की सरकार है. इन उदाहरणों का मतलब ये है कि बीजेपी को मांसाहारी लोग भी वोट देते हैं. पर पार्टी ने अभी मांसाहार के विरोध पर अपना ऑलइंडिया नरेटिव नहीं सेट किया है. इसलिए इन राज्यों के लोगों ने बीजेपी को वोट दिया है. पर जिस तरह बीजेपी शासित राज्यों में नॉनवेज का विरोध बढ़ रहा है,उससे दक्षिण के राज्यों में क्या पार्टी के लिए गलत संदेश नहीं जाएगा. जिस तरह इसे बीजेपी नेताओं में नॉनवेज विरोध को सफलता का पैमाना माना जाने लगा है वो पार्टी के लिए चिंतनीय विषय है. यह चिंता केवल बीजेपी के लिए ही नहीं है एक समरसता वाले और बहुसंस्कृति वाले समाज के लिए भी अच्छा नहीं है.
रजिस्ट्रार जनरल के 2014 के सर्वे के आधार पर देश के राज्यों में शाकाहार लोगों की संख्या इस तरह से है.
राजस्थान में 74.9% , हरियाणा में (69.25%), पंजाब (66.75%), गुजरात (60.95%), मध्य प्रदेश (50.6%), उत्तर प्रदेश (47.1%), महाराष्ट्र (40.2%), दिल्ली (39.2%), जम्मू शामिल हैं। कश्मीर (31.45%), उत्तराखंड (27.35%), कर्नाटक (21.1%), असम (20.6%), छत्तीसगढ़ (17.95%), बिहार (7.55%), झारखंड (3.25%), केरल (3.0%), उड़ीसा (2.65%), तमिलनाडु (2.35%), आंध्र प्रदेश (1.75%), पश्चिम बंगाल (1.4%), और तेलंगाना (1.3%).
यूपी के योगी मॉडल की नकल , असल से भी अधिक कट्टर
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले इस तरह की इमरजेंसी लगाई गई.कुछ अघोषित कुछ घोषित थी ये इमरजेंसी. जैसे सबसे पहले कहा गया कि बकरों और मुर्गे हर जगह नहीं काटे जाएंगे. इसके लिए जो जगह निर्धारित है वहीं पर इन जानवरों को काटा जा सकेगा. हकीकत में स्थित यह है कि करीब 90 प्रतिशत शहरों और कस्बों में जगह निर्धारित है ही नहीं. जहां है भी वहां का हाल बहुत बुरा है. फिर लाइसेंस की बात हुई. इस तरह लालफीताशाही के जरिए मीट मछली की दुकानों को बंद कराने की कोशिश की गई. इसके बाद अघोषित तरीके अपनाए गए . आए दिन किसी त्योहार पर किसी हिंदू संगठन की स्थानीय इकाई में जिसमें बीजेपी के लोकल नेता भी होते हैं वे मांग करने लगेंगे कि हिंदू और जैन त्योहारों को देखते हुए मांस-मछली की बिक्री नहीं होगी. सावन, नवरात्र आदि त्योहारों में इस तरह अघोषित तरीके से बिक्री रोक दी जाती है. यूपी को देखकर पहले हरियाणा और दिल्ली में ऐसा हुआ. हरियाणा में इस तरह की कट्टरता का परसेंटेज कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है. अब यह बीमारी मध्य प्रदेश और राजस्थान में पहुंच गया है.
खानपान की इमरजेंसी बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ भी अत्याचार
नेशनल हेल्थ डाटा के एक सर्वे के मुताबिक भारत के करीब 75 प्रतिशत लोग महीने में कभी ना कभी नॉन वेज आइटम्स खाते हैं. इसका सीधा मतलब है कि कम से कम 55 प्रतिशत हिंदू और अधिकतम 65 से 70 प्रतिशत हिंदुओं की अबादी नॉनवेज खाती है.इसका मतलब है कि नॉनवेज पर रोक लगाने के फैसलों से कहीं न कहीं हिंदू आबादी भी प्रभावित होती है.
अब आते हैं हिंदुओं के धार्मिक संस्कारों पर.उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से को छोड़ दीजिए तो पूर्वी यूपी से शुरू होकर बंगाल तक मछली को बहुत शुभ माना जाता है. पूर्वी यूपी में हर शुभ काम की शुरुआत में जिन हिंदू घरों में मछली खाई जाती है वहां मछली बनती रही है. कई देवियों की पूजा में मछली चढ़ाई जाती रही है. दिल्ली के लोग जब बंगाली दुर्गा पूजा मंडलों में जाते हैं तो हैरान रह जाते हैं. क्योंकि नवरात्रों में जब हमारे नेता धार्मिक पवित्रता न भंग हो जाए इसके चलते मांस की दुकानें बंद करवा देते हैं ठीक उसी समय दुर्गा के सबसे बड़े भक्त हमारे बंगाली भाई अपने पूजा पंडालों में भक्ति भावना के साथ चिकन बिरयानी और फिश टिक्का का लुत्फ उठाते नजर आते हैं.झारखंड के प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ धाम के पंडे लोग अट्ठे मटन बनाते हैं और खाते हैं.
विरोध बीफ़ यानी गोमांस को लेकर था जो चिकन और मछली तक पहुंच गया
हिंदू धर्म में गाय को पवित्र मानते हैं और भारत में अधिकांश राज्यों में गोहत्या पर पाबंदी लगी हुई है.आम तौर पर हिंदूवादी पार्टियां बीफ खाने का विरोध करती रही हैं. पर बीफ का विरोध होते होते है किस तरह यह विरोध चिकन और मछली तक पहुंच गया ये समझ से परे है. दरअसल कट्टरवाद का रास्ता ऐसे ही शुरू होता है, जिसका कोई अंत नहीं होता है.
पूरे देश में ऐसे हिंदुओं का प्रतिशत न के बराबर हैं जो बीफ खाते हैं. कुछ अति गरीब जातियों में जिन्हें कभी दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं था वो अपनी गरीबी के चलते जरूर बीफ खाते रहे हैं. पर जबसे रोजी रोजगार और कमाई बढ़ी है उन लोगों में बीफ का प्रचलन खत्म हो रहा है. दिल्ली जैसे शहरों के रेस्त्रां के मेन्यू में बीफ़ नहीं दिखता है. केरल में जरूर बीफ लोकप्रिय मांसाहार है, पर यहां भी अल्पसंख्यक हिंदू इसे नहीं खाते हैं.
संयम श्रीवास्तव