अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव और भारत में इसी साल हुए लोकसभा चुनावों के बीच बहुत सी बातें कॉमन रही हैं. कई बार ऐसा लगता था कि राष्ट्रपति चुनाव में वही मुद्दे हावी थे जो भारत में लोकसभा चुनावों के समय थे. महंगाई, बेरोजगारी, सुरक्षा का मु्द्दा तो था ही घुसपैठ, सांप्रदायिकता, दलितों के मुद्दे भी अलग-अलग नामों से लोगो की जुबान पर थे. हालांकि, लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी एनडीए फिर से सरकार बनाने में सफल हुई. पर सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. पर जिस तरह 2020 में चुनाव हारकर अपना राजनीतिक जीवन खत्म कर चुके डोनाल्ड ट्रंप ने 2024 आते-आते वापसी कर ली, उससे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चौथे कार्यकाल के लिए जरूर इंस्पायर्ड हो सकते हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी कैंपेन के इन 5 मुद्दों पर गौर से विचार कर सकते हैं. निश्चित है कि यह उनके राजनीतिक जीवन के लिए प्राण वायु साबित हो सकती है.
1- अल्पसंख्यकों के वोट का महत्व
माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में मुसलमानों का ट्रंप को समर्थन करना डेमोक्रेटिक पार्टी की हार के कारणों में से एक रहा है. चूंकि मुसलमान इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध में अमेरिका की विदेश नीति से नाराज थे. मुसलमान चाहते थे कि बाइडन प्रशासन को इजरायल के समर्थन से पीछे हटना चाहिए. ट्रंप का शुरू से यह कहना काम कर गया कि वे राष्ट्रपति बनते ही इस युद्ध को बंद करवा देंगे. अमेरिकी मुसलमान वोटरों का कहना था कि उन्होंने पहले डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट दिए, लेकिन वे अब भरोसा खो चुके हैं. उन्होंने तर्क दिया कि डेमोक्रेट के पास मध्य पूर्व में शांति लाने की कोई योजना नहीं है, और उन्हें ट्रंप पर भरोसा है कि वे इससे बेहतर करेंगे.
भारत में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह एक सबक है, किस तरह हिंदू हितों की बात करते हुए भी मुसलमानों का वोट प्राप्त किया जा सकता है. बिना अल्पसंख्यकों के समर्थन के पूरे भारत पर राज करने का सपना कभी साकार नहीं हो सकता. 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी की हार के पीछे मुस्लिम वोटों का एकमुश्त बीजेपी के विरोध में जाना बहुत बड़ा कारण रहा है. कई लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में देखा गया कि केवल एक इलाके में पड़े वोट के चलते बीजेपी नेता को हार का मुंह देखना पड़ा. काउंटिंग में हर इलाके में जीत रहा प्रत्याशी मुस्लिम इलाके की काउंटिंग शुरू होते ही हार गया. कारण रहा कि मुस्लिम वोटर्स ने एकमुश्त बीजेपी के विरोध में वोट दिया. ट्रंप की तरह बीजेपी भारत में मुसलमानों को भरोसा दिला सकती है कि कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी की सरकार में मुसलमानों का चौतरफा विकास हुआ है. उनके साथ सरकारी योजनाओं और सरकारी नौकरियों, शिक्षा और स्वास्थ्य वाली योजनाओं में कभी भी भेदभाव नहीं किया गया.
2- फिर से बड़े पैमाने पर हो सकती है वापसी
ट्रंप की यह जीत ऐतिहासिक है क्योंकि अमेरिका के इतिहास में ऐसा सिर्फ़ दूसरी बार हुआ, जब कोई राष्ट्रपति एक चुनाव हारने के बाद फिर से व्हाइट हाउस में लौटा है. साल 2020 में जब डोनाल्ड ट्रंप जो बाइडन से चुनाव हार गए थे तो ऐसा लगा था कि उनका सियासी करियर समाप्त हो गया है. भारत में भी एक वर्ग ऐसा है जो मानता है कि पीएम मोदी की राजनीति का यह अंतिम कार्यकाल चल रहा है. चौथे कार्यकाल के बारे में न कोई बात करता है और न ही किसी को उम्मीद जगती है. पर ट्रंप की इस जीत के बाद बीजेपी में पीएम मोदी के चौथे कार्यकाल को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की उम्र की तुलना करते हुए एक्स पर लिखा कि 2029 तक पीएम मोदी की उम्र 78 साल हो जाएगी. जिसका मतलब साफ है कि चौथे कार्यकाल के लिए पीएम मोदी को तैयार किया जा सकता है . चुनाव हारने के बाद रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप का दबदबा बरक़रार रहने का इशारा 2022 के मध्यावधि चुनावों में हुआ था.हरियाणा विधानसभा चुनावों को जीतने के बाद नरेंद्र मोदी एक बार फिर फॉर्म में लौटते हुए नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों को अगर बीजेपी जीत लेती है तो निश्चित ही 2029 की दावेदारी उनकी मजबूत होगी.
3- उम्र तो सिर्फ़ एक नंबर है
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप व्हाइट हाउस में एक ऐसे शख़्स के तौर पर वापसी करने जा रहे हैं जिनकी उम्र 78 के करीब होने जा रही है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र अभी करीब 74 साल ही है. यानि कि अगले आम चुनावों तक पीएम मोदी की उम्र 78 साल होगी. चार साल पहले जब डोनाल्ड ट्रंप एक हारी हुई शख़्सियत नज़र आ रहे थे तो उनकी बढ़ती उम्र के चलते लोगों को ऐसा भरोसा नहीं हो रहा था ट्रंप इस तरह से वापसी करेंगे. भारत में भी 2024 के लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के चलते अब यह अटकलें लगाईं जा रही हैं कि पीएम मोदी अपना तीसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे. लेकिन अमेरिका में जिस तरह ट्रंप ने चुनावी हार मिलने के बाद अपनी बढ़ती उम्र को धताते बताते हुए पहले पार्टी में फिर अमेरिकी जनता के बीच सक्रिय रहकर दिखा दिया है कि उम्र तो एक नंबर भर है. उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चौथे कार्यकाल के बारे में सोच सकते हैं.
बीजेपी ने अभी हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनावों में नेताओं के रिश्तेदारों को खूब टिकट बांटे हैं. जबकि अभी कुछ दिनों पहले बीजेपी की रणनीति वंशवाद और भाई भतीजावाद का पार्टी कट्टर विरोधी होती थी. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए बहुत जल्दी ही मार्गदर्शक मंडल का कॉन्सेप्ट भी पार्टी में पुराना पड़ जाए. मोदी के पास अभी ट्रंप की तरह पूर्ण बहुमत में वापसी करने के लिए अभी बहुत टाइम है.
4-पार्टी में अंदर के विरोधी फिर से घोर समर्थक में बदल सकते हैं
2024 के लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति भी बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों के बीच कमजोर हुई है. 2024 की हार के बाद संघ के कई नेताओं ने इस तरह के बयान दिए जो सीधे-सीधे पीएम मोदी को ही टार्गेट करके बोले गए थे. हालांकि बाद में सफाई भी आई पर इस तरह की बातों से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2024 लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद स्थिति में परिवर्तन हुआ है. हालांकि अमेरिका में ट्रंप के साथ कुछ ज्यादा ही हुआ क्योंकि वो चुनाव ही हार गए थे. भारत में अगर नरेंद्र मोदी अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं हुए होते तो हो सकता है उनका भी हाल वैसा ही होता जैसा डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुआ. पर अमेरिका में मध्यावधि चुनावों के बाद ट्रंप की पोजिशन मजबूत होती गई. कैलिफोर्निया से सांसद और अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में रिपब्लिकन पार्टी के नेता केविन मैक्कार्थी उन लोगों में से थे जो उनके चुनाव हारते ही उनके खिलाफ बिगुल बजा दिए थे. छह जनवरी को अमेरिकी संसद पर हमले के तुरंत बाद मैक्कार्थी ने कहा था कि भीड़ की 'हिंसा के ज़िम्मेदार' ट्रंप हैं. यही नहीं, उन्होंने ये सुझाव भी दिया था कि अमेरिकी संसद, ट्रंप के इस बर्ताव के लिए औपचारिक तौर पर उनकी निंदा भी करे. पर बाद में मैक्कार्थी पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मिलकर काम करने की बात करने के लिए उनके पास पहुंचे और उनका जमकर साथ भी दिया.
5-फिर एकजुट हो सकता है कोर वोटर
डोनाल्ड ट्रंप की जीत के पीछे उनके कोर वोटर्स का एकजुट होना ही रहा है. 2016 के चुनावों में ट्रंप को जिस तरह का समर्थन मिला था उसके ठीक उलट 2020 के चुनावों में उनमें सेंध लग गई थी. पर डोनाल्ड ट्रंप ने घुसपैठियों के प्रॉब्लम, खराब आव्रजन नीतियों के चलते लगातार अमेरिकियों की नौकरियों का हौव्वा खड़ाकर ट्रंप ने अपने कोर वोटर्स को 2024 आते-आते एकजुट कर लिया था. इसी तरह भारत में नरेंद्र मोदी को 2014 में जिस तरह हिंदुओं एकजुट होकर वोट दिया था उसे नरेंद्र मोदी एक जुट कर सकते हैं. इसकी कोशिश भी लगातार हो रही है. दलित-आदिवासी और पिछड़ों का वोट बीजेपी को ही मिले इसके लिए लगातार प्रयास जारी हैं. हरियाणा विधानसभा की जीत के पीछे माना जाता है कि बीजेपी को दलितों और पिछड़ों के वोट भी मिले हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि 2029 आने तक हिंदुओं को एकजुट करने के बीजेपी के प्रयास सार्थक होंगे.
संयम श्रीवास्तव