भारत और श्रीलंका के बीच पाल्क स्ट्रेट में 285 एकड़ में फैला कच्चातिवु द्वीप लोकसभा चुनाव का हॉट टॉपिक बना हुआ है, विशेष रूप से तमिलनाडु में. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1974 में यह द्वीप श्रीलंका को दिए जाने के लिए इंदिरा गांधी की अगुवाई में उस समय की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया.
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु की तत्कालीन डीएमके सरकार की सहमति के बाद कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंप दिया गया था. इससे जनता में ये संदेश गया कि राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस और डीएमके पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के लिए कांग्रेस की आलोचना करने के अलावा बीजेपी ने भारतीय मछुआरों की दशा का भी जिक्र किया था, जिन्हें श्रीलंकाई जलसीमा में प्रवेश करने के लिए श्रीलंका की नौसेना या कोस्टगार्ड की ओर से या तो गोली मार दी जाती है या फिर गिरफ्तार कर लिया जाता है. इससे बीजेपी ये संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस सरकार के फैसले की वजह से बहुत सारे भारतीय मछुआरे अब श्रीलंका की जेलों में बंद हैं.
इसे समझा जाना चाहिए कि पचास साल पुराने इस मुद्दे को ऐसे समय में क्यों उठाया जा रहा है, जब 19 अप्रैल को पहले चरण के तहत लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस मुद्दे में चुनावी गेमचेंजर होने की क्षमता है.
लेकिन कांग्रेस और डीएमके ऐसा नहीं सोचते. दोनों पार्टियों ने चुनाव से पहले विभाजनकारी रणनीतियों और मछुआरों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के लिए बीजेपी पर निशाना साधा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच समझौते से कच्चातिवु द्वीप से छह लाख तमिल परिवारों को भारत आकर बसने में मदद मिली थी. उन्होंने कहा कि इस समझौते की वजह से छह लाख तमिल भारत आ पाए थे. वे पिछले पचास सालों से इस देश में रह रहे हैं, उनके परिवार यहीं हैं.
लेकिन मामला ये है कि अगर तमिलनाडु में चुनाव सिर्फ राज्य के मुद्दों पर लड़ा जाए तो एनडीए, डीएमके विरोधी वोटों के लिए सिर्फ एआईएडीएमके के साथ ही प्रतिस्पर्धा करेगा. ऐसे में अगर बीजेपी को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को उजागर कर कुछ लाभ मिलता है तो इससे वे सीधे तौर पर डीएमके-कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर सकता है.
श्रीलंका तमिल मुद्दा तमिलनाडु में बहुत सारे लोगों के लिए भावनाओं से जुड़ा हुआ मामला है. लेकिन ये कभी भी ऐसा मुद्दा नहीं रहा, जिसने चुनाव की दिशा तय की हो. 1991 की घटना को छोड़ दें, जब चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की लिट्टे ने हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद कांग्रेस-एआईएडीएमके गठबंधन ने राज्य में सभी 39 लोकसभा सीटें जीती थीं. हर निर्वाचन क्षेत्र में फिर चाहे वो चेन्नई और कोयंबटूर की तरह शहरी इलाके रहे हों या फिर ग्रामीण क्षेत्र रहे हों, वोटर्स पिछले पांच साल के कामकाज और उनके वादों के आधार पर उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों का आकलन कर रहे हैं. ऐसे में अभी कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि कच्चातिवु का मामला मतदाताओं पर कितना असर डालेगा.
यही कारण है कि बीजेपी ने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे की तरह पेश किया है. ये एक तरह से एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश करने जैसा है. कांग्रेस और डीएमके को कटघरे में खड़ा करने से लेकर 1974 के समझौते को तमिलनाडु की जनता को समझाने की कोशिश करने तक बीजेपी कांग्रेस को राष्ट्रविरोधी रंग में रंगना चाहती है, विशेष रूप से हिंदी भाषी क्षेत्र में जहां राष्ट्रवादी नैरेटिव एक ज्वलंत मुद्दा है.
दूसरी तरफ इससे विपक्ष और क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की उन आवाजों को भी जवाब दिया जा रहा है, जो चीनी घुसपैठ को लेकर मोदी सरकार पर आंख मूंदने का आरोप लगा रहे हैं. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया था कि चीन ने बीते कुछ सालों में 4000 वर्गमीटर से अधिक जमीन पर कब्जा कर लिया है. 2015 में बांग्लादेश के साथ लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट करने के लिए कांग्रेस ने मोदी सरकार की आलोचना की है. इस एग्रीमेंट के तहत भारत के पास 17161 एकड़ जमीन छोड़ दी.
तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने शिक्षित युवाओं में एक आधार तैयार किया है. पार्टी को लगता है कि वोटर्स का एक वर्ग इस मुद्दे से जुड़ा हुआ है और कच्चातिवु मामले से उन्हें वोट बटोरने में मदद मिलेगी. हालांकि, 2015 में कच्चातिवु को लेकर विदेश मंत्रालय की ओर से आरटीआई के जवाब में कहा गया कि इसमें भारत के किसी इलाके पर कब्जा जमाना या उसे छोड़ना शामिल नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र का कभी सीमांकन ही नहीं किया गया. भारत और श्रीलंका के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत कच्चातिवु द्वीप भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में श्रीलंका की तरफ चला गया.
लेकिन ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि 2019 में पुलवामा आतंकी हमले और बालाकोट एयरस्ट्राइक के बीच बीजेपी को देश के अन्य हिस्सों में चुनाव में बहुत लाभ हुआ था.लेकिन तमिलनाडु में एनडीए को 39 में से सिर्फ एक ही सीट मिली थी. ऐसे में सवाल है कि जब पाकिस्तान का हमला मतदाताओं को चुनावों में लुभा नहीं पाया तो भारत और श्रीलंका के बीच एक द्वीप का मामले को भुनाकर बीजेपी को कैसे लाभ मिलेगा?
वहीं, कच्चातिवु मामले को मछुआरों से जोड़कर पेश करने से इसे नागपट्टिनम लोकसभा और रामनाथपुरम निर्वाचन क्षेत्रों तक ही समेटा जा सकता है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम एनडीए के उम्मीदवार हैं. ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कच्चातिवु का ये कार्ड चुनावों में कितना कारगर होगा, ये देखना दिलचस्प होगा.
टी एस सुधीर