भारत एक बदलते हुए समाज का देश है. जब समाज में बदलाव हो रहा हो, तो हमें बदलाव को हमेशा शीघ्रता से लाना चाहिए. अगर आप बदलाव लाने में पचास साल से ज्यादा लगाते हैं, तो एक या दो पीढ़ियां काफी कष्ट झेलेंगी. दुर्भाग्य से, हम अब भी इस तरीके से बढ़ रहे हैं.
एक गणतंत्र के रूप में, भारत 75 वर्ष का है. किसी देश के जीवन में, 75 साल बहुत लंबा समय नहीं होता. लेकिन हमारी संस्कृति एक हजार साल पुरानी है. अपनी सांस्कृतिक ताकत को देखते हुए, हमें 30 से 40 साल में एक विकसित देश बन जाना चाहिए था. लेकिन हमने कुछ गलतियां की हैं - कुछ को ठीक किया जा सकता है, कुछ को ठीक करना मुश्किल है.
एक ऐसा समय था जब दुनिया में हर कोई, चाहे वो कोलंबस हो या वास्को डि गामा हो, एक ही जगह जाना चाहता था - भारत. वे आत्मज्ञान को नहीं खोज रहे थे. वो दौलत खोज रहे थे, और भारत सबसे संपन्न देश था. हम उत्पादनकर्ता और व्यापारिक देश थे. हम व्यापार कैसे करते थे? पूर्व और पश्चिम दोनों ओर जाने वाले जमीनी मार्ग के जरिए 10 हजार साल से भी अधिक समय से यह हो रहा था. मध्य पूर्व के कई शहर भारतीय व्यापारियों से वसूले गए टैक्स पर बनाए गए थे. इतनी भारी मात्रा में व्यापार हो रहा था.
वैसे, तब हमें आक्रांताओं ने जीत लिया, हम पर किसी दूसरे का शासन हो गया, और हमारे लिए चीजें बुरी होती गईं. आजादी के बाद, पुनरुत्थान तेजी से होना चाहिए था, लेकिन एक महत्वपूर्ण बाधा जो हमारे लिए पैदा हुई, वह थी कि हमारे पूर्व और पश्चिम दोनों ओर के व्यापारिक मार्ग बंद हो गए. इस देश से किसी भी चीज का निर्यात अब आप सिर्फ समुद्री मार्ग से कर सकते हैं. लेकिन अगर आप इस पर वाकई गौर करें, तो हमारे बंदरगाह पिछले 5-6 साल में ही आधुनिक बने हैं. उससे पहले, हमारे बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों की तुलना में बस नाम के बंदरगाह थे. तो ये गलतियां हुई हैं. अगरसूचना प्रौद्योगिकी न आई होती, तो हमारा अर्थिक पुनरुत्थान नहीं हुआ होता.
अब, हालांकि हम गणतंत्र सिर्फ 75 साल से हैं, हमारे पास ऐसा सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास है जिसे हम भूले नहीं हैं. अर्थव्यवस्था एक विशाल तरीके से आगे बढ़ रही है, और बहुत बड़ी संख्या में युवा वर्ग उद्यमी बन रहा है. जब हम बड़े हो रहे थे, तो हमारे माता-पिता सिर्फ एक ही चीज की सलाह देते थे, ‘डॉक्टर या इंजीनियर बन जाओ. वरना, तुम किसी लायक नहीं हो’. आज माता-पिता अपने बच्चों को उद्यमी और खिलाड़ी बनने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. इस बदलाव को होते देखना बहुत जबरदस्त है.
इसे थोड़ा पहले होना चाहिए था, लेकिन एक देश ऐसा ही होता है. सबसे बढ़कर, हम एक केलाइडोस्कोप यानी बहुरूपदर्शक हैं, एक बहुत अद्भुत अस्त-व्यस्तता है. हम एक तीर की तरह नहीं हैं; हम मधुमक्खियों के झुंड की तरह हैं. अगर आपने मधुमक्खियों के झुंड पर गौर किया हो, तो वो सब अलग-अलग दिशाओं में जाती हुई लगती हैं, लेकिन पूरे झुंड के रूप में वो वहीं जाती हैं जहां वो जाना चाहती हैं.
मैं अमेरिका में एक उच्च स्तरीय सरकारी अधिकारी से बात कर रहा था. मैंने पूछा, ‘आप हमारे पड़ोसियों को क्यों लगातार सहारा दे रहे हैं जो हर स्तर पर ढेर हो रहे हैं? उन्होंने आपको काफी परेशान किया है. आपके ‘वांछित लोगों’ में से ज्यादातर उस देश में हैं.’
उसने कहा, ‘सद्गुरु, समस्या आज के नेतृत्व की नहीं है. 1947 में, जब आपको आजादी मिली, तब हमें दुनिया की कोई असली पहुंच प्राप्त नहीं थी. हमारी जानकारी और पहुंच सिर्फ ब्रिटिश के जरिए थी. उन्होंने हमें एक स्पष्ट तस्वीर दी कि पाकिस्तान सफल होगा क्योंकि उसका एक धर्म, एक फोकस है. भारत खुद को खत्म कर लेगा क्योंकि इसमें बहुत सारी चीजें और घटक हैं.’
तो हम मधुमक्खियों के झुंड की तरह हैं - काफी हलचल के साथ हर जगह जा रहे हैं, लेकिन सही दिशा में जा रहे हैं. देश में अभी जो हो रहा है उसे लेकर मैं वाकई उत्साहित हूं, लेकिन इसे ज्यादा बड़े पैमाने पर होने की जरूरत है.
अभी, हमारे पास जनसंख्या का लाभ है. अगर आप 15-20 साल इंतजार करते हैं तो हम सब बूढ़े होजाएंगे. एक कहावत है, ‘अगर आप सही रास्ते पर भी हैं, अगर आप पर्याप्त शीघ्रता से आगे नहीं बढ़ते हैं, तो आप कुचल दिए जाएंगे.’ खासकर चूंकि हम सही रास्ते पर हैं, हमें एक खास गति से बढ़ना चाहिए, क्योंकि जीवन स्तर की गुणवत्ता के मायने में, हम कई विकसित देशों से पीछे हैं - न सिर्फ पश्चिमी बल्कि, एशियाई देशों से भी.
चीजें बदलना शुरु हुई हैं लेकिन वे 1.4 अरब लोगों को स्पर्श करने केलिए काफी नहीं हैं. इतनी ज्यादा भाषाओं, धर्म, जाति, और संप्रदाय वाले एक देश में लोगों को एकदिशा में शीघ्रता से ले जाना मुश्किल है. हमारे द्वारा लिए गए हर आर्थिक कदम के लिए, ऐसे लोग मौजूद हैं जो लगातार उसके खिलाफ तर्क कर रहे हैं. हो सकता है कि कुछ जांच और संतुलन की जरूरत हो और हम पूरी गति से आगे नहीं बढ़ पाएं, लेकिन एक देश के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत किधर जाएगा. प्रश्न चिन्ह सिर्फ गति को लेकर है.
सद्गुरु