गुजरात लंबे समय से शराबबंदी के लिए जाना जाता रहा है. ये नीति नैतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक सोच के मेल से बनी, जिसकी जड़ें राज्य की पहचान में गहराई तक समाई हुई हैं. 1960 में राज्य बनने के बाद से गुजरात एक 'ड्राई स्टेट' रहा है. अब, करीब छह दशक बाद, गुजरात इस सख्त नीति में सीमित ढील देने की दिशा में आगे बढ़ा है, मकसद है GIFT सिटी की आर्थिक रफ्तार में वैश्विक रंग भरना.
20 दिसंबर 2025 को गुजरात सरकार ने एक गजट अधिसूचना जारी कर गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT सिटी) में शराब सेवन से जुड़े नियमों को आसान कर दिया. इसके तहत अब गैर-निवासी और विदेशी नागरिक तयशुदा होटलों और रेस्टोरेंट में बिना अस्थायी परमिट के शराब पी सकेंगे.
अब विजिटर्स को सिर्फ एक वैध फोटो पहचान पत्र दिखाना होगा. ये फैसला 2023 में दी गई उस छूट का विस्तार है, जिसमें पहली बार इस विशेष आर्थिक क्षेत्र में शराब की अनुमति दी गई थी. एक ऐसे राज्य में, जहां शराबबंदी नियम है, GIFT सिटी के लिए ये एक व्यावहारिक अपवाद माना जा रहा है.
गुजरात की शराबबंदी की विरासत, क्या है इतिहास?
गुजरात में शराब पर प्रतिबंध की शुरुआत राज्य गठन के साथ 1960 में हुई थी, हालांकि कानूनी आधार आज भी बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट, 1949 है, जिसे गुजरात में लागू किया गया. आम बोलचाल में इसे गुजरात प्रोहिबिशन एक्ट कहा जाता है.
जब बॉम्बे राज्य का विभाजन हुआ, तो गुजरात ने शराबबंदी को बनाए रखा, जबकि महाराष्ट्र ने 1963 के बाद धीरे-धीरे अपनी नीति में उदारीकरण किया.
गुजरात की शराब नीति पर महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव रहा है. गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था और वे पूर्ण नशामुक्ति के समर्थक थे. वे शराब को सामाजिक बुराई मानते थे, जो गरीबी, घरेलू हिंसा और नैतिक पतन को बढ़ावा देती है. आजादी के बाद उनके विचारों ने उनके गृह राज्य की नीतियों को आकार दिया.
इसी वजह से गुजरात देश के शुरुआती 'ड्राई स्टेट्स' में शामिल हुआ. गुजरात प्रोहिबिशन एक्ट के तहत शराब के निर्माण, बिक्री, खरीद और सेवन पर रोक लगाई गई, जिसके उल्लंघन पर जुर्माने और जेल तक का प्रावधान है.
हालांकि, समय के साथ इस नीति की आलोचना भी होती रही. आरोप लगे कि शराबबंदी से अवैध बाजार और तस्करी को बढ़ावा मिला और राज्य को हर साल हजारों करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ, जबकि खपत पूरी तरह नहीं रुक पाई. इसके बावजूद गुजरात सरकार लंबे समय तक इस नीति पर अडिग रही, और बिहार जैसे राज्यों ने भी बाद में इसी मॉडल को अपनाया.
सामने थीं संस्कृति की चुनौतियां
गुजरात में शराबबंदी सिर्फ कानून नहीं, बल्कि संस्कृति का हिस्सा है. ये गांधीवादी मूल्यों से जुड़ी है और राजनीतिक रूप से भी लोकप्रिय रही है. इसे धार्मिक भावनाओं और नशे से होने वाले सामाजिक नुकसान जैसे लत और हिंसा को रोकने के प्रयास के रूप में देखा गया.
हालांकि, जमीनी स्तर पर इसका पालन हमेशा एकसमान नहीं रहा. 2022 की जहरीली शराब त्रासदी ने अवैध शराब के खतरों को उजागर किया. इसी पृष्ठभूमि में शराब नीति में किसी भी तरह की ढील, भले ही सीमित हो, खास मानी जा रही है.
क्या है GIFT सिटी?
GIFT सिटी भारत की पहली ऑपरेशनल स्मार्ट सिटी और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र है. ये अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच साबरमती नदी के किनारे स्थित है और करीब 886 एकड़ में फैली हुई है. इसकी परिकल्पना 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. उद्देश्य था भारत को वित्त, तकनीक और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाना ताकि विदेशी निवेश, अंतरराष्ट्रीय बैंक, फिनटेक और आईटी कंपनियों को आकर्षित किया जा सके.
दुबई के इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर या सिंगापुर के फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट की तर्ज पर विकसित GIFT सिटी में आज 500 से ज्यादा संस्थान काम कर रहे हैं. विशेष दर्जा होने के कारण कुछ राज्य कानूनों से छूट दी जाती है, ताकि ये वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सके.
शराब नीति का बदलता सफर
गुजरात की सख्त शराबबंदी नीति 2023 तक पूरी तरह लागू रही. उसी साल सरकार ने GIFT सिटी के लिए एक अपवाद बनाया, ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रोफेशनल्स और निवेशकों के लिए ये शहर ज्यादा आकर्षक बन सके. शुरुआत में शराब की बिक्री और सेवन की अनुमति तो दी गई, लेकिन केवल अस्थायी परमिट के साथ. ये प्रक्रिया कई लोगों के लिए असहज साबित हुई.
दिसंबर 2025 के नए फैसले में 'बाहरी व्यक्तियों' यानी गैर-गुजरात निवासी और विदेशी नागरिकों के लिए परमिट की शर्त हटा दी गई. अब वे सिर्फ फोटो आईडी दिखाकर तयशुदा जगहों पर शराब पी सकते हैं. हालांकि, ये छूट सिर्फ GIFT सिटी तक सीमित है और गुजरात के निवासी अब भी शराबबंदी कानून के दायरे में रहेंगे.
कारण और असर
इस फैसले के पीछे सबसे बड़ा कारण आर्थिक व्यावहारिकता है. GIFT सिटी उन वैश्विक वित्तीय केंद्रों से मुकाबला करना चाहता है, जहां सामाजिक सुविधाएं जैसे शराब व्यवसायिक संस्कृति का सामान्य हिस्सा हैं.
सरकार का मानना है कि सख्त शराबबंदी विदेशी टैलेंट और निवेश को आकर्षित करने में बाधा बन रही थी. नियमों में ढील देकर सरकार GIFT सिटी को ज्यादा जीवंत बनाना चाहती है, ताकि बिजनेस नेटवर्किंग और 'वाइन एंड डाइन' संस्कृति को बढ़ावा मिले, बिना राज्य की मूल नीति को कमजोर किए.
आलोचक इसे गांधीवादी मूल्यों से समझौता और एक सूखे राज्य में खास वर्ग को दी गई सुविधा मानते हैं. वहीं समर्थकों का कहना है कि ये संतुलित कदम है, जो विशेष आर्थिक क्षेत्रों में उदारीकरण की भारत की नीति को दर्शाता है और आगे चलकर अन्य क्षेत्रों के लिए भी मिसाल बन सकता है.
संदीपन शर्मा