जाट आरक्षण की मांग उठाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मार रहे हैं अरविंद केजरीवाल? । Opinion

जाट आरक्षण की मांग करके अरविंद केजरीवाल ने यह साबित किया है कि वो राजनीति के चतुर खिलाड़ी बन चुके हैं. पर जाट आरक्षण का यह दांव उनके लिए महंगा भी साबित हो सकता है. आइये देखते हैं कैसे?

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आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल गुरुवार को एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल गुरुवार को एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए।

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को दिल्ली के जाट समुदाय को आरक्षण दिए जाने का मुद्दा उठाया. केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के जाट समाज को बीजेपी से 10 सालों से धोखा मिल रहा है. केजरीवाल ने पीएम के नाम लिखे एक पत्र में उन तारीखों का जिक्र कर याद दिलाया गया कि कब-कब भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के जाटों के लिए आरक्षण का वादा किया था.

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केजरीवाल ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के किसी कॉलेज, यूनिवर्सिटी या संस्था में दिल्ली के जाट समाज को आरक्षण नहीं मिलता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को दिल्ली के जाटों की याद चुनाव से पहले आती है. दिल्ली के अंदर राजस्थान के जाट समाज को आरक्षण मिलता है लेकिन दिल्ली के जाट समाज को आरक्षण नहीं मिलता. दिल्ली की स्टेट ओबीसी लिस्ट में पांच और जातियां हैं, जो केंद्र की ओबीसी लिस्ट में नहीं है. 

देखने में तो यही लगता है कि जाट आरक्षण की मांगकर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी के लिए मास्टर स्ट्रोक लगाया है पर हकीकत कुछ और ही है. 

हरियाणा में जाट आरक्षण कांग्रेस को नहीं फला

हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन बहुत सक्रिय रूप से चला है. जबकि दिल्ली में कभी इसके लिए आंदोलन नहीं हुआ है. हरियाणा में कांग्रेस की पिछली भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा सरकार ने 2012 में स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत जाट, जट सिख, रोड, बिश्नोई और त्यागी कम्युनिटी को रिजर्वेशन दिया. हरियाणा में कांग्रेस सरकार की डिमांड को देखते हुए यूपीए सरकार ने भी 2014 में हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटों को ओबीसी में लाने का एलान किया.पर सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को पिछ़ड़ा मानने से इनकार कर यूपीए सरकार का ऑर्डर कैंसल कर दिया.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के भी एक ऑर्डर के बाद 19 सितंबर 2015 को खट्टर सरकार को भी जाटों सहित पांच जातियों को आरक्षण देने के नोटिफिकेशन को वापस लेना पड़ा. यह नोटिफिकेशन हुड्डा सरकार के वक्त जारी हुआ था.

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गौर करने वाली बात यह है कि जाटों को आरक्षण देने का प्रयास हुड्डा सरकार को रास नहीं आया. जाट वोटों के ध्रुवीकरण के चलते दूसरी जातियों का वोट बीजेपी के साथ हो गया. उसके बाद हरियाणा राज्य में लगतार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है. दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हो सकता है. फिलहाल यहां तो हरियाणा जितनी बड़ी संख्या जाट समुदाय की है भी नहीं.

अरविंद केजरीवाल ने जाट आरक्षण की मांग के लिए पीएम को लिखा लेटर

दिल्ली में जाट आरक्षण को सपोर्ट करने से गुर्जर और दूसरी जातियों के नाराज होने का भी खतरा

अलग-अलग अनुमानों के मुताबिक दिल्ली में कुल 8 से 10 प्रतिशत के करीब जाट समुदाय की आबादी है.दिल्ली की कुल 8 विधानसभा सीटों पर जाटों का दबदबा है. नांगलोई, मुंडका, नजफगढ़, बिजवासन और किराड़ी  आदि जाट बहुल सीटें मानी जाती हैं. जाट वोटबैंक को देखते हुए दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने इन 5 सीटों पर इस समुदाय के लोगों को टिकट दिया है. आम आदमी पार्टी ने मुंडका से जसबीर कराला, नांगलोई से रघुविंदर शौकीन, दिल्ली कैंट से वीरेंद्र कादियान, उत्तम नगर से पूजा नरेश बाल्यान और मटियाला से सुमेश शौकीन को मैदान में उतारा है.

पर बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को सीएम अरविंद केजरीवाल के सामने उतारकर जाट समुदाय को एक उम्मीद दे दी है कि अगर वह जीतते हैं तो सीएम भी बन सकते हैं. आम तौर पर सीएम कैंडिडेट को हराने वाले को सीएम पद का ऑफर दिया जा सकता है. स्थिति ऐसी हो गई है कि अरविंद केजरीवाल के बारे में कहा जा रहा था कि हो सकता है कि वो किसी दूसरी सीट से भी पर्चा दाखिला करें. हालांकि अरविंद केजरीवाल ने किसी भी दूसरी जगह से प्रत्याशी बनने से मना किया है.

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बात इतनी ही नहीं है. दिल्ली में जाट और गुर्जर समुदाय में प्रतिस्पर्धा चलती है. दिल्ली में गुर्जरों की संख्या हालांकि जाटों के मुकाबले आधी हैं पर सीटों के लिहाज से गुर्जर भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. राजधानी में 364 गांवों में से 225 गांवों में जाट समुदाय का दबदबा है जबकि 70 गांवों में गुर्जरों का बोलबाला है. बदरपुर, तुगलकाबाद, संगम विहार, घोंडा, गोकुलपुरी, करावल नगर व ओखला में गुर्जर समुदाय के वोटर काफी मायने रखते हैं. इसके साथ ही अगर दिल्ली में भी जाट वोटर्स का ध्रुवीकरण आम आदमी पार्टी की ओर होता है तो गुर्जरों के साथ अन्य ओबीसी जातियां जाहिर है बीजेपी के साथ जा सकती हैं.

12 साल बाद क्यों याद आया जाट आरक्षण का मुद्दा, सवाल तो उठेंगे ही

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ा संकट साख का हो गया है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया जैसे नेताओं के जेल जाने के बाद भी भ्रष्टाचार का मुद्दा बीजेपी नहीं बना पाई है. पर अरविंद केजरीवाल ने जैसी अपनी इमेज बनाई थी उसके इतर काम करने के चलते उनकी राजनीति को लोग पाखंड कहने लगे हैं. जाटों के आरक्षण की मांग करने के लिए उन्हें चुनावों में ही क्यों याद आई, यह सवाल तो लोग करेंगे ही . करीब 12 सालों से वो दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. आम जाट यह सवाल करेगा ही कि अब तक सरकार को यह मुद्दा क्यों ध्यान नहीं आया.
 

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