दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने सीएम कैंडिडेट के नाम का खुलासा नहीं किया है. पर आम आदमी पार्टी नेता और कालकाजी से विधायक का चुनाव लड़ रहीं मुख्यमंत्री आतिशी ने शुक्रवार को दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी अपने कालकाजी उम्मीदवार पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को सीएम बनाने जा रही है. इसके साथ ही वे तुगलकाबाद से तीन बार रहे बीजेपी विधायक रहे बिधूड़ी को अपमानजनक भाषा के लिए कुख्यात बताते हुए, उनकी तुलना आप के मुख्यमंत्री उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल से करने को कहती हैं.
सामान्य तौर पर अब तक ये माना जाता रहा है कि विधायक उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चित करके के लिए ये माहौल बनाते रहे हैं कि जीतने पर उन्हें मंत्री या मुख्यमंत्री बनने का चांस मिल सकता है. पर कोई भी नेता अपने खिलाफ चुनाव लड़ने वाले नेता के लिए इस तरह की बातें नहीं करता है. आम तौर पर यह समझा जाता है कि आम लोग उसे ही चुनते हैं जिनके भविष्य में कोई संवैधानिक पद मिलने की उम्मीद होती है. तो क्या समझा जाए कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने रमेश बिधूडी को भविष्य का सीएम प्रोजेक्ट करके बड़ी भूल कर रही है. पर अरविंद केजरीवाल भी मंझे हुए खिलाड़ी हैं. इसीलिए बीजेपी उन्हें हल्के में नहीं ले रही है. आइये देखते हैं कि रमेश बिधूड़ी को क्यों सीएम पद का दावेदार बता रही है आम आदमी पार्टी?
क्या है केजरीवाल की रणनीति
आतिशी लोगों से आग्रह करती हैं कि वह तय करें कि वे एक प्रगतिशील, पेशेवर नेता चाहते हैं या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसकी प्रतिष्ठा आपत्तिजनक व्यवहार पर आधारित है. आतिशी कहती हैं कि पूरे शहर को एक ही बात जाननी है कि गाली गलौच पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन है? आप ने पहले ही अपने मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा कर दी है. लोगों को पता् है कि अगर वे आप को वोट देंगे, तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन अगर वे गाली गलौच पार्टी को वोट देंगे, तो उनका मुख्यमंत्री कौन बनेगा?
इसके बाद वो कहती हैं कि विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि गाली गलौच पार्टी ने फैसला किया है कि वह रमेश बिधूड़ी को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना रही है, जो सबसे अधिक अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हैं. कल वे अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर सकते हैं, और दो से तीन दिनों के भीतर, वे रमेश बिधूड़ी को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर देंगे.
दरअसल पिछले दिनों दो ऐसे मौके आए हैं जब रमेश बिधूड़ी के बयानों के चलते बीजेपी को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है. कालकाजी में सड़कों की स्थिति के बारे में बात करते हुए, बिधूड़ी ने पिछले रविवार को एक कार्यक्रम के मंच से कहा था कि जिस तरह से हमने ओखला और संगम विहार की सड़कों को सुधार दिया है, हम निश्चित रूप से कालकाजी की सभी सड़कों को प्रियंका गांधी के गालों जितना चिकना बना देंगे.
इस बयान के 24 घंटे के अंदर ही उन्होंने आतिशी पर उनके उपनाम मार्लेना को छोड़ने और सिंह का उपयोग करने पर निशाना साधा था.
आतिशी कहती हैं कि अब दिल्ली के पास दो विकल्प हैं. एक तरफ अरविंद केजरीवाल हैं, जो आईआईटी-खड़गपुर से स्नातक, इंजीनियर, पूर्व आईआरएस अधिकारी और आयकर आयुक्त हैं. दूसरी तरफ रमेश बिधूड़ी हैं, जो अभद्र भाषा का उपयोग करते हैं और महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणियां करते हैं.
दरअसल आम आदमी पार्टी की रणनीति है कि दिल्ली के ऐसे बहुत से लोग हैं जो अरविंद केजरीवाल से नाराज हैं वो यह समझ लें कि उनको वोट न देने पर दिल्ली का मुख्यमंत्री एक गालीबाज नेता भी हो सकता है. पर बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. इससे भी आगे हैं.
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हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में एनडीए की रणनीति को दिल्ली में आजमा रहे हैं केजरीवाल
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के राज को यादव राज के रूप में याद किया जाता है. यादव एक ओबीसी कास्ट होते हुए भी यूपी में दबंग जाति के रूप में उसका बोलबाला है. बीजेपी 2017 और 2022 के चुनावों में लोगों को यादव राज की याद दिलाकर अन्य जातियों का वोट हासिल करने में कामयाब रही. यही रणनीति हरियाणा में कांग्रेस के समय जाट राज और बिहार में लालू के जंगल राज को याद दिलाने की रही है. अरविंद केजरीवाल बार-बार प्रवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी को सीएम फेस के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. उसके पीछे केजरीवाल की सोच है कि अन्य ओबीसी और बनिया जाति को लगेगा कि दिल्ली का सीएम कोई जाट या गुर्जर बनने वाला है तो हो सकता है कि उनकी वोट आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो जाए.
क्यों उल्टा पड़ सकता है दांव
कोई भी रणनीति अपने समय और क्षेत्र के हिसाब से सफल और असफल होती रही है. दिल्ली में इस समय एंटी इनकंबेंसी बहुत ज्यादा है. इस बीच किसी गुर्जर को सीएम बनाने का विरोध करने का मतलब है कि पूरे समुदाय को नाराज करना. दूसरे अगर गुर्जर समुदाय को लगता है कि बीजेपी उनके समुदाय के किसी नेता को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर सकती है तो जाहिर है कि उस पार्टी के प्रति उस समुदाय का नजरिया बदल सकता है. यह केवल गुर्जर समुदाय के लिए ही नहीं, यह जाट समुदाय के लिए भी उतना ही सही है. अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी प्रवेश वर्मा के संबंध में भी यही कहते हैं. जाहिर वर्मा और बिधूड़ी का समुदाय मिलकर कम से कम 15 से 16 प्रतिशत वोट की हिस्सेदारी रखता है. सबसे बड़ी बात यह भी है कि जाट और गुर्जर वोट न केवल संख्या, बल्कि अपने प्रभाव से भी पार्टियों की हार जीत में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं. जाहिर है कि अगर केजरीवाल का दांव उल्टा पड़ता है तो उन्हें लेने के देने पड़ जाएंगे.
संयम श्रीवास्तव