दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित साहित्य के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का आज तीसरा दिन है और इसमें देश की पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री और एक्ट्रेस स्मृति ईरानी भी शामिल होने पहुंचीं. इस दौरान उन्होंने जीवन यात्रा, हार-जीत और खुश रहने की कला पर विस्तार से बातचीत की.
मंच पर जब उनसे सवाल पूछा गया कि संसद भवन में अपने आक्रमक भाषणों के लिए चर्चित स्मृति ईरानी अपने जीवन में इतना खुश कैसे रहती हैं तो इसका उन्होंने दिलचस्प जवाब दिया. पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, मुझे एक बात समझ नहीं आती की लोग इस बात से विचलित क्यों हैं कि मैं खुश क्यों हूं ?
'स्मृति ईरानी इतना खुश कैसे रहती हैं'
उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद ये है कि अगर आपको हार नसीब होती है तो आप खुश हैं लेकिन आपके आसपास के लोग ज्यादा दुखी हैं. इससे बड़ा आशीर्वाद प्रभु आपको नहीं दे सकते हैं कि लोगों को आप अपनी खुशी से विचलित कर दें.' मैं ईश्वर को कभी चुनौती नहीं देती हूं.
बड़ी शख्सियत के सवाल पर उन्होंने कहा, 'मैं यह भ्रम कभी नहीं पालती, जीवन का कड़वा सत्य यह है कि जिस दिन प्राण निकल जाएंगे उस दिन आपके घर वाले आपको 24 घंटे घर के अंदर नहीं रखेंगे, आपकी अंत्येष्ठी हो जाएगी. जब अपने ही खाक कर देंगे तो व्यक्ति को सार्वजनिक मंच पर घमंड किस बात का करना चाहिए.'
'एक किताब वाले की बेटी...'
उन्होंने कार्यक्रम के दौरान कहा, 'मैं राजनीति में इतना भी नहीं घुलीमिली की मेरे अंदर की मानवता खत्म हो जाए. जब मैं अमेठी से चुनाव हारी तो मेरे घर में एक मंदिर है जिसमें रखी मां (देवी) की मूर्ति देखकर मैं कह रही थी कि जो हुआ अच्छा हुआ. उस वक्त आसपास के लोगों को लगा कि मुझे हार का सदमा लगा है लेकिन वो अंदर की आवाज थी. मैं दुखी नहीं थी. आज जिन्हें खुशफहमी हुई है क्या पता वो बीस साल बाद फिर सलाम करने आएं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'यह जीवन की कितनी बड़ी उपलब्धि होगी कि जिसका पिता 45 साल पहले धौला कुआं में सड़क पर किताब बेचता था उसकी बेटी साहित्य आजतक के मंच पर बैठकर दिल्ली के नामचीन लोगों से बातचीत कर रही है. अगर आप जीवन यात्रा का सुख लें तो वही बहुत बड़ी उपलब्धि है, बड़ी अनुभूति है. एक किताब वाले की बेटी को इस मंच पर बुलाया गया इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है.'
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