'राजगोपालाचारी में बसते थे श्रीराम, लोहिया को पसंद थी रामकथा', बोले हृदय नारायण दीक्षित

Sahitya Aajtak Lucknow: यूपी के पूर्व स्पीकर हृदय नारायण दीक्षित और वरिष्ठ कवि व नेता उदय प्रताप सिंह ने शुक्रवार को लखनऊ में साहित्य आजतक में जन-जन के राम विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि राम पर सवाल करना गलत नहीं है, बशर्ते उसकी मंशा अच्छी हो. इस दौरान उन्होंने समाजवादियों को राम को समझने-पढ़ने का सुझाव भी दिया. 

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साहित्य आजतक कार्यक्रम में शामिल हुए हृदय नारायण दीक्षित और उदय प्रताप सिंह साहित्य आजतक कार्यक्रम में शामिल हुए हृदय नारायण दीक्षित और उदय प्रताप सिंह

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 5:59 PM IST

Sahitya Aajtak Lucknow: उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने शुक्रवार को साहित्य आजतक के कार्यक्रम में शिरकत की. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी तरह से श्रीराम दिखाई देते हैं. जिसकी जैसे नजर, उसके वैसे श्रीराम. उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने लिखा है- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.

उन्होंने बताया कि प्रखर समाजवादी राम मनोहर लोहिया कहते थे-,'मुझे रामकथा बहुत अच्छी लगती है क्योंकि वह असुर लोचन है. वह कहते थे कि राम, कृष्ण और शिव ये तीनों भारत की जनता के स्वप्न हैं. लोहिया श्रीराम को उत्तर और दक्षिण के बीच का सेतु मानते थे. लोहिया ने रामायण मेला भी लगवाया था. उनका दर्शन हमारे लिए, सबके लिए खासकर हमारे समाजवादी मित्रों के लिए हितकारी साबित होगा.

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वरिष्ठ कांग्रेस भी श्रीराम में रखते थे आस्था

पूर्व स्पीकर ने बताया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजगोपालाचारी ने तमिल में तिरुमगन नाम की रामकथा लिखी थी. महात्मा गांधी की पुत्रवधू ने उस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद किया था. राजाजी ने उसकी रूपरेखा लिखी थी. इसमें उन्होंने लिखा कि बिना श्रीराम हमारी कोई गति नहीं. हमारा कोई भविष्य नहीं. हम तो श्रीराम का नाम लेकर ही जीवित रहते हैं. इसके अलावा हमारे सामने और कोई आसरा नहीं दिखाई पड़ता. यह बात उस शख्स ने कही, जो उस समय भारत के कुछ चुनिंदा लोगों में थे, जिन्हें परम विद्वान माना जाता है.

चौपाइयों का आज के संदर्भ में अर्थ निकालना गलत

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने श्रीराम पर उठने वालों प्रश्नों पर कहा कि कुछ प्रश्न तो कुतर्क के लिए उठते हैं, जिस पर हम ध्यान नहीं देते, लेकिन कुछ सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि भारत की संस्कृति और दर्शन में उनका महत्व होता है. हमारी वैदिक संस्कृतिक यजुर्वेद में प्रश्नों को देवता कहा गया है. प्रश्न होने चाहिए लेकिन उनका मकसद लोकमंगल होना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि जो पार्टी लोहिया के विचारों को मानती हो वह रामचरित मानस को क्यों नहीं मानती, वह इसकी वजह वही बात सकते हैं, लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि रामचरिम मानस 400-450 साल पुरानी रचना है. उसमें लिखी चौपाइयां उस समय काल के संदर्भ में लिखा गया होगा. उन्हें आज के संदर्भ से जोड़कर देखा जाना मेरे विचार से ठीक नहीं. 

उन्होंने कहा कि अगर देश में महिला की स्थिति को जानना हो तो हमें 7000 साल पुराने ऋग्वेद काल में महिलाओं की स्थिति को देखना चाहिए. यह वह काल है जब महिलाएं पुरुषों के साथ युद्ध लड़ने जाया करती थीं, इसलिए देश में महिलाओं की स्थिति को लेकर सवाल खड़े करना ठीक नहीं.

देश में संविधान में भी हैं श्रीराम

पूर्व स्पीकर ने कहा कि आजकल राजनीति में श्रीराम को शामिल किया जा रहा है. अगर राजनीतिक दृष्टि से भी हम श्रीराम पर विचार करें तो मैं कहना चाहूंगा तो जब देश का संविधान बन रहा था, तब संविधान सभा में अंतिम दिन श्रीराम सहित कई महान लोगों के चित्र संविधान की मूल प्रति चित्रित किए गए थे. संविधान इस देश का आधार है और संविधान में भी श्रीराम हैं, इसलिए उन पर टिप्पणी का कोई मतलब नहीं है. मैं कहना चाहूंगा कि लोगों को श्रीराम को पढ़ना चाहिए. 

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मैंने राजनीति से नहीं लिया संन्यास

कार्यक्रम के दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने अपने संन्यास के सवाल पर कहा कि इस देश में संन्यासी का बहुत आदर होता है. वैसे उन्होंने राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र से संन्यास नहीं लिया है. उन्होंने बताया कि बीजेपी ने नियम बनाया है कि 75 साल के बाद वह किसी कार्यकर्ता को चुनाव नहीं लड़ाएंगे लेकिन मैं आज भी पार्टी का काम करता हूं.

प्रश्न उठना लोकतंत्र का शुभ लक्षण

कार्यक्रम में शामिल वरिष्ठ कवि, नेता व लेखक उदय प्रताप सिंह ने कहा कि भगवान श्रीराम के काल में भी उन पर प्रश्न उठते थे. प्रश्न उठना लोकतंत्र का बहुत शुभ लक्षण है, लेकिन विकृति के साथ नहीं, प्रकृति के साथ. राम सबके हैं. वह किसी पार्टी, जाति विशेष, धर्म विशेष के नहीं हैं. जब आप संदर्भ से कोई चीज अलग करके देखेंगे तो हर चीज गलत दिखेगी.

उन्होंने कहा कि तुलसीदा, कबीरदास, महात्मा गांधी, रैदास और फादर कामिल बुल्के, सबके अपने-अपने राम है. श्रीराम हर क्षेत्र, हर भाषा में हैं. उनको सगुण-निर्गुण सभी रूपों में देखा गया है, इसलिए उनके अस्तित्व को चुनौती नहीं दिया जा सकती है. किसी के राजनीतिक दुर्भावना से सवाल करने से राम मलिन नहीं होंगे. हमारी नजर पर राजनीतिक चश्मा चढ़ गया है और इस चश्मे से हम चीज को लाभ-हानि से तोड़कर देखने लगे हैं. 

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व्यक्ति अपने चरित्र से जीवित रहता है, वह अपने कथन से जीवित नहीं रहता है. श्रीराम अपने चरित्र के कारण ही हजारों-हजार वर्षों से हमारी चेतना में हैं. भारत की संस्कृति राम की संस्कृति है. हिंदुस्तान में रहना है तो राम बनकर रहना होगा. राम समाज की संहिता हैं. आज हमें श्रीराम से यह सीखने की जरूरत है कि हमें अपने माता-पिता, बांधु, समाज के साथ कैसे रहना है.

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