Hobosexuality... 'प्यार की आड़' में किराए से आजादी! शहरों में तेजी से बढ़ रहा ये चलन

भारत का समाज बदल रहा है और यहां के महानगरों में पश्चिमी ट्रेंड भी नजर आ रहा है. इसी तरह का एक ट्रेंड है होबोसेक्सुअलिटी जो अब महानगरों में देखने को मिल रहा है. इस ट्रेंड के पीछे किराए और घर की बढ़ती महंगाई भी है.

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भारत के महानगरों में होबोसेक्सुअलिटी का चलन बढ़ता जा रहा है (Photo: AI) भारत के महानगरों में होबोसेक्सुअलिटी का चलन बढ़ता जा रहा है (Photo: AI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:12 PM IST
  • प्रीमियम डिमांड के कारण भारत के बड़े शहरों में घरों की कीमतें 14% तक बढ़ीं
  • मार्च 2025 में भारत के 13 शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतों में 8 पॉइंट्स की बढ़ोतरी
  • लक्जरी सेगमेंट ग्रोथ के बीच 2025 में औसत रेशिडेंशियल प्रॉपर्टी की कीमतों में 6.5% की बढ़ोतरी की उम्मीद
  • दिल्ली एनसीआर और बेंगलुरु में घर की कीमतों में उछाल, महंगाई के बीच 1BHK की मांग बढ़ी

क्या आपको इन हेडलाइंस में कोई समानता नजर आती है? आपको यह समझने के लिए रियल एस्टेट एक्सपर्ट होने की जरूरत नहीं है कि भारत के महानगरों में प्रॉपर्टी की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं. और जब घर खरीदना मुश्किल होता है तो किराए में भी बढ़ोतरी लाजमी है. इसका मतलब है कि अकेले रहना या फिर एक छोटे से फ्लैट से थोड़े बड़े फ्लैट में अपग्रेड करना भी शहरों में रह रहे कई लोगों के लिए सपना बनता जा रहा है.

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अब, आसमान छूती घर की कीमतों को शहर के अकेलेपन के साथ मिला दें, तो आपको शहरी होबोसेक्सुअलिटी जैसी अप्रत्याशित चीज के लिए सही माहौल मिल जाता है. इस थोड़े से बेबाक लेबल के पीछे वास्तविकता छिपी है कि लोग प्यार के लिए कम और रहने की जगह के लिए ज्यादा रिश्तों में आ रहे हैं. इस तरह के रिश्ते में लोग अक्सर बदले में कुछ खास दिए बिना आर्थिक और इमोशनल रूप से अपने पार्टनर पर निर्भर रहते हैं.

होबोसेक्सुअलिटी (Hobosexuality) क्या है?

होबोसेक्सुअलिटी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें कोई इंसान घर और वित्तीय मदद के लिए किसी रोमांटिक रिश्ते में आता है. इसमें इंसान प्यार की आड़ में अपने पार्टनर से उसका घर शेयर करता है और कई बार वित्तीय मदद भी लेता है.

हालांकि, होबोसेक्सुअलिटी शब्द अपने आप में क्लिकबेट जैसा लग सकता है, लेकिन हकीकत में इसे हल्के में लेना सही नहीं होगा क्योंकि यह शहरी भारत में चुपचाप और बहुत तेजी से उभर रहा है.

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होबोसेक्सुअलिटी अब सिर्फ पश्चिमी देशों का शब्द नहीं रहा

'होबोसेक्सुअल' शब्द मूल रूप से पश्चिमी इंटरनेट कल्चर में उभरा, जिसका इस्तेमाल बोलचाल की भाषा में ऐसे इंसान के लिए किया जाता है जो खास तौर से रहने की जगह हासिल करने के लिए डेटिंग करता है (जैसा कि हमने मैथ्यू मॅकोनहे को फिल्म 'फेलियर टू लॉन्च' में देखा था).

भारत में, यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. आप पूछेंगे क्यों? बेशक, इसके लिए आसमान छूते किराए जिम्मेदार हैं (और कुछ कंजूस लोग भी). ऐसा नहीं है कि हम होबोसेक्सुअल लोगों के पक्ष में तर्क दे रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है.

मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों में घर महंगा है और यहां डेटिंग का चलन तेजी से इस तरह के लेन-देन पर आधारित होता जा रहा है.

Gateway of Healing की मनोचिकित्सक और संस्थापक-निदेशक डॉ. चांदनी तुगनैत कहती हैं, 'हम देख रहे हैं कि लोग, खासकर महिलाएं ऐसे पार्टनर्स से जुड़ रही हैं जो रिश्ते में इमोशनल, फाइनेंशियल और लॉजिस्टिक के मामले में बहुत कम योगदान देते हैं लेकिन उनके जीवन में बेहिसाब जगह घेरे होते हैं. ऊपरी तौर पर तो ये रिश्ते रोमांटिक लगते हैं, लेकिन अक्सर इनमें एक छिपा हुआ शक्ति असंतुलन होता है जहां एक साथी को दूसरे की तुलना में ज्यादा फायदा होता है.'

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क्या इमोशनल जाल है होबोसेक्सुअलिटी?

अंकिता (नाम बदला हुआ) अपने लेट 30s में हैं और एक सक्सेसफुल इंटरप्रेन्योर हैं. वो याद करती हैं, 'शुरू में यह रोमांटिक लगा. मुझे लगा कि हम प्यार में हैं, इसलिए मैं उसे अपने घर पर रखने के लिए तुरंत तैयार हो गई. लेकिन किराया मैं दे रही थी और रिश्ते का बोझ अकेले ही उठा रही थी.'

समय बीतने के साथ अंकिता ने एक परेशान करने वाला पैटर्न देखा. वो कहती हैं, 'वो किराया शेयर नहीं करता था और कभी-कभी कुत्ते को टहलाने या खाना बनाने जैसी छोटी-छोटी चीजें कर देता था. जब मुझे इमोशनल रूप से उसकी जरूरत होती थी, तो वो कही नहीं मिलता था.'

यह एक ऐसा इमोशनल जाल है जिसे पहली नजर में पहचानना वाकई मुश्किल होता है. इसके लिए कुछ हद तक, हमारा मॉडर्न डेटिंग कल्चर जिम्मेदार हो सकता है. इस रिश्ते में सामने वाला प्यार की बौछार करता है और नजदीकियां जल्दी बढ़ाता है जिससे प्यार और चालाकी के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है. ऐसे में रेड फ्लैग्स को पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है.

हमारे समाज का आईना है होबोसेक्सुअलिटी

होबोसेक्सुअलिटी उस समाज का आईना है जिसमें हम रहते हैं. अगर आपको इस बात पर यकीन नहीं होता तो Deloitte की एक रिपोर्ट पर नजर डालिए जिसका शीर्षक है- '2025 Gen Z and Millennial Work Survey'. यह सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 2025 में मिलेनियल और जेन जी के 50 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी बड़ी मुश्किल से महीने का खर्चा चला पा रहे हैं और उनकी सेविंग न के बराबर है.

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महानगरों में आवास की लागत अक्सर एक व्यक्ति की आय का 40 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा निगल जाती है. उदाहरण के लिए, मुंबई में रहने वाला एक व्यक्ति अपनी आय का कम से कम 48 प्रतिशत आवास पर खर्च करेगा.

डॉ. तुगनैत कहती हैं, 'इसके साथ ही घर बसाने का सांस्कृतिक दबाव, संघर्ष का महिमामंडन, और कई लोगों में दूसरों पर एहसान करने की भावना होती है और इन सबको जोड़ लें तो एक ऐसा माहौल तैयार होता है जो होबोसेक्सुअलिटी को पनपने देता है. यह और भी खतरनाक इसलिए है क्योंकि अक्सर इसे भक्ति का जामा पहनाया जाता है. आप सिर्फ किराया नहीं दे रहे होते, बल्कि साथ रहने के भ्रम के लिए भी पैसे दे रहे होते हैं.'

होबोसेक्सुअलिटी की निंदा करने का मतलब संघर्ष कर रहे लोगों को शैतान बताना नहीं है. न ही होबोसेक्सुअलिटी बिल्कुल आजादी से रहने की मांग है. होबोसेक्सुअलिटी का मतलब भावनात्मक सुविधा पर नहीं, बल्कि समानता और जागरूकता पर आधारित रिश्ते बनाना है.

(लेख- Tiasa Bhowal)

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