मां बनना हर महिला का सपना होता है. जब कोई भी महिला कंसीव करती है तो उसके लिए अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की हेल्थ से बढ़कर कोई भी चीज नहीं होती. अधिकतर महिलाओं की प्रेग्नेंसी तो सेफ होती है लेकिन कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार कुछ कारणों की वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे को किसी ना किसी समस्या का सामना करना पड़ जाता है.
मॉर्डन साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत का आसानी से पता लगाया भी जा सकता है और उसमें सुधार भी किया जा सकता है. गर्भ में ही बच्चे की शारीरिक और मानसिक बीमारी का पता लगाने की इस प्रक्रिया को फीटल मेडिसिन कहा जाता है. फीटल मेडिसिन प्रक्रिया के जरिए आजकल डॉक्टर जन्म से पहले ही बच्चे के शरीर और दिमाग में होने वाली सभी दिक्कतों का आसानी से पता लगा लेते हैं और उसका समय पर इलाज भी शुरू कर देते हैं.
फीटल मेडिसिन का एक सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसके जरिए आप कॉम्प्लिकेटेड प्रेग्नेंसी और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं फीटल मेडिसिन क्या होती है और कैसे इससे हम प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे को होने वाले खतरे को कम कर सकते हैं.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कॉम्प्लिकेटेड और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का संबंध मां और बच्चे दोनों से हो सकता है. आइए जानते हैं मां से जुड़े कारण-
हाई ब्लड प्रेशर
डायबिटीज
थायराइड
अत्यधिक वजन या मोटापा
पूर्व में हुई सिजेरियन डिलीवरी
उम्र (35 वर्ष से अधिक)
मिसकैरेज की हिस्ट्री
भ्रूण से जुड़े कारण ये हैं-
जन्मजात असामान्यताएं
विकास में देरी या रुकावट
जुड़वाँ या अधिक बच्चे (मल्टिपल प्रेग्नेंसी)
प्लेसेंटा या गर्भनाल से जुड़ी समस्याएं
कॉम्प्लिकेटेड और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के और भी कई कारण हो सकते हैं जो ये हैं-
स्मोकिंग या शराब का सेवन
गर्भावस्था के दौरान संक्रमण
पर्यावरण से जुड़े कारण
कॉम्प्लिकेटेड और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में कैसे काम करती है फीटल मेडिसिन प्रक्रिया?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मां या भ्रूण के हेल्थ जुड़ी समस्याओं को सुधारने में फीटल मेडिसिन की काफी अहम भूमिका होती है. इस प्रक्रिया में डॉक्टर अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए गर्भ में पल रहे भ्रूण की सेहत से जुड़ी समस्याओं का पता लगाकर गर्भ में ही बच्चे का इलाज शुरू कर देते हैं.
शुरुआत से ही होता है खतरे का आंकलन और स्क्रीनिंग
डॉक्टर गर्भावस्था के शुरुआती चरण से ही जोखिम का आंकलन करते हैं. इसके लिए कई टेस्ट किए जाते हैं जो इस प्रकार हैं-
डुअल मार्कर टेस्ट- प्रेग्नेंसी के 11-13 हफ्ते के बीच क्रोमोसोमल असामान्यताओं (जैसे डाउन सिंड्रोम) की जांच.
क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट- 15-20 हफ्ते में भ्रूण के स्वास्थ्य का आंकलन.
नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट (NIPT)- मां के ब्लड सैंपल से भ्रूण के डीएनए की जांच, जिससे कई जेनेटिक बीमारियों का पता लगाया जा सकता है.
अल्ट्रासाउंड स्कैन- लेवल 1 (11-13 हफ्ते) और लेवल 2 (18-22 हफ्ते) स्कैन से भ्रूण के अंगों और विकास की सटीक निगरानी की जाती है.
ये टेस्ट डॉक्टरों को गर्भ में पल हो रहे शिशु की स्थिति के बारे में कई अहम जानकारी देता है. टेस्ट के रिजल्ट में अगर डॉक्टर को कोई असामान्यता दिखाई देती है तो उसका तुरंत इलाज शुरू किया जाता है.
आजतक लाइफस्टाइल डेस्क