वो रंग, जिसपर भगवा से भी ज्यादा बखेड़ा मच चुका, हिटलर ने पहनाया था Gay यहूदियों को

ट्विटर पर #BoycottPathan ट्रेंड हो रहा है. लोगों को Shahrukh Khan और Deepika Padukone की पठान फिल्म के गाने बेशर्म रंग पर एतराज है, जिसमें दीपिका ने भगवा बिकनी पहनी है. नेटिजन्स के मुताबिक अश्लील गाने में जानबूझकर भगवा इस्तेमाल हुआ, जिसे हिंदुओं से जोड़ा जाता है. वैसे ये अकेला रंग नहीं, जिसपर विवाद हुआ. एक और कलर है, जिसपर दुनियाभर में सिर-फुटौवल मच चुका.

Advertisement
पिंक कलर को लड़कियों से जोड़ दिया गया. सांकेतिक फोटो (Unsplash) पिंक कलर को लड़कियों से जोड़ दिया गया. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:03 PM IST

पहले विश्व युद्ध के बाद का समय था, जब युद्ध बंदियों को खास तरह की जेलों में बंद किया जाने लगा. जेल की दीवारें गुलाबी रंग की होने लगीं. माना गया कि पिंक कलर से गुस्सा कम होता है. तो कैदी लड़ाई-झगड़ा बंद करके शांत रहने लगें, इसके लिए जेल की दीवारों पर पिंक कलर पोता जाने लगा. इसके बाद साइकोलॉजिकल बीमारी से जूझते उन मरीजों के इलाज में पिंक का इस्तेमाल हुआ जो गुस्सा करते थे. इसके बेहतर नतीजे भी मिले. यानी गुलाबी रंग लोगों को शांत करता है. फिर क्या था, ये रंग लड़कियों के साथ जोड़ दिया गया. 

Advertisement

विरोधी टीम को कमजोर बनाने के लिए दिए पिंक कमरे
अस्सी के दशक में यूनिवर्सिटी ऑफ आइवा की फुटबॉल टीम ने अपनी विरोधी टीम का ग्रीन रूम और यहां तक कि बाथरूम भी पिंक करना दिया. उनका मकसद था कि इससे विरोधी कमजोर हो जाएं और उन्हें जीत मिल सके. यानी शांति, कमजोरी और साजिश का हिस्सा रहा पिंक कलर. तब इस रंग को लड़कियों से क्यों जोड़ा गया!

इसपर एक्सपर्ट की अलग-अलग सोच है. कोई इसे वर्ल्ड वॉर 1 के बाद हुए बदलाव की तरह देखता है. जंग से लौटे सैनिक थके हुए थे. उन्हें आराम देने के लिए बाजार ने ऐसी खोज की ताकि पिंक पहनी हुई लड़कियां शांति से घरेलू कामकाज करती रहें और थके हुए सैनिकों की आंखों को भी आराम मिले. 

पठान फिल्म के बेशर्म रंग गाने में दीपिका की बिकिनी का रंग ट्विटर पर ट्रोल हो रहा है. 

दूसरी थ्योरी इसे सेकंड वर्ल्ड वॉर की देन कहती है
इतिहासकार एनमेरी एडम्स के अनुसार इतिहास के बड़े हिस्से में रंगों का कोई बंटवारा नहीं था. हर कोई, कोई सा भी रंग पहनता. लड़के पिंक और लड़कियां ब्लू कपड़ों में सजतीं. लेकिन दूसरी जंग में नाजी जर्मनी ने सब बदल दिया. 

Advertisement

हिटलर ने दिया होमोसेक्सुअल कैदियों को
यहूदियों को बंदी बनाते हुए पीले रंग का बैज दिया गया ताकि उनकी अलग से पहचान हो सके. इसी तरह से गे सेक्सुअल प्रेफरेंस वालों को पिंक बैज मिला. तब से ही पिंक को कमजोर लोगों का रंग माना जाने लगा. यहां जान लें कि हिटलर को गे या लेस्बियन लोगों से खास चिढ़ थी. वो इन्हें देश पर बोझ मानता और गैस चैंबर में खत्म करवा देता था. 

स्टडी भी हो चुकी है
पिंक किस तरह लोगों की ताकत कम करता है, 80 के दशक में इसपर स्टडी भी हुई. बेकर-मिलर पिंक नाम से आई स्टडी में पक्का किया गया कि गुलाबी रंग से ताकत घटती है, जबकि नीले से वैसी की वैसी रहती है. इसके साथ ही ग्लोबल मार्केट ने पिंक को लड़कियों के नाम कर दिया. 

दूसरे वर्ल्ड वॉर में हिटलर ने गे कैदियों को पिंक रंग का बैज दिया था. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

यौनिकता से जोड़ दिया गया
एक और थ्योरी है, जो कहती है कि गुलाबी रंग से  हाइपरसेक्सुएलिटी पता लगती है, यानी यौन रूप से ज्यादा सक्रिय. 19वीं सदी के मध्य में सेक्स-वर्कर्स इसके शेड्स पहना करती थीं. गुलाबी के शेड पहनने की एक वजह ये भी थी कि तब इसका डाई ज्यादा सस्ता था, जिससे गुलाबी रंग के कपड़े भी सस्ते हुआ करते. सेक्सुअल, सेंसुअस मानकर इसे महिलाओं के हिस्से कर दिया गया. टीवी पर ऐसे ही विज्ञापन बनने लगे, जिसमें लड़के नीले कपड़ों में और लड़कियां गुलाबी कपड़ों में दिखतीं. यहां से चलन चल पड़ा. 

Advertisement

बीच -बीच में लड़कियों पर ये रंग थोपने का विरोध भी हुआ
साल 2008 में लंदन में पिंकस्टिंक्स (Pinkstinks) कैंपेन चला. तभी वहां का एक बड़ा ब्रांड मार्क्स एंड स्पेंसर विवादों में आ गया. ब्रांड 5-6 साल की बच्चियों के लिए पिंक अंडरवियर लेकर आया था, जिसे विज्ञापन में ब्रा-टॉप कहा गया. एक और ब्रांड सेन्सबरी लड़कियों के लिए घर-गुड़िया लेकर आया, जिसे पिंक सेक्शन कहा गया. वहीं लड़कों के लिए साइंस किट या मैदान में खेलने के खिलौने थे. पिंक कलर को लड़कियों पर थोपने के विरोध में कई बड़े फैशन डिजाइनरों ने अपने पुरुष मॉडलों को पिंक पहनाकर रैंप पर उतारा. 

औरतों को पुरुषों की तुलना में कई प्रतिशत ज्यादा पैसे उन्हीं उत्पादों पर खर्च करने पड़ रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

पिंक टैक्स भी एक बला है!
ये असल वाला टैक्स नहीं, बल्कि वो कीमत है, जो महिलाओं को चुकानी पड़ती है. बाजार में महिलाओं के लिए मिल रहा हर प्रोडक्ट पुरुषों के उत्पाद से कहीं ज्यादा महंगा है. चाहे कपड़े हों, या फिर जूते. यहां तक कि पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करने के लिए भी बहुत सी जगहों पर महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा कीमत चुकानी होती है. साल 2017 में न्यूयॉर्क सिटी डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ने कहा था कि औसतन हर प्रोडक्ट पर महिलाओं को पुरुषों से 7% ज्यादा पैसे देने होते हैं. 

Advertisement

है दुनिया का सबसे पुराना रंग
लगे हाथ ये भी जानते चलें कि गुलाबी रंग को दुनिया का सबसे पुराना बायोलॉजिकल रंग माना जा रहा है. साल 2018 में शोधकर्ताओं को सहारा मरुस्थल के पास 1.1 बिलियन साल पुराना पत्थर मिला, जिसके नीचे गुलाबी पिगमेंट्स मिले. माना जा रहा है कि ये प्राचीन समुद्र के नीचे किसी खास प्रोसेस से बना होगा.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement