कैंसर को देशव्यापी बीमारी घोषित करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

देश में कैंसर की निगरानी और प्रबंधन व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट मानते हुए केंद्र और सभी राज्य सरकारों से जवाब मांगा है.

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संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:21 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कैंसर को देशव्यापी अधिसूचित बीमारी घोषित करने की मांग से जुड़ी जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में कैंसर प्रबंधन से जुड़ी गंभीर खामियों को गंभीरता से लेते हुए जवाब तलब किया है.

चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने एम्स के सेवानिवृत्त कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अनुराग श्रीवास्तव द्वारा दायर याचिका पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को औपचारिक नोटिस जारी किया है.

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याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील गौरव कुमार बंसल ने कोर्ट को बताया कि केंद्र और राज्य सरकारें अब तक पूरे देश में कैंसर को अधिसूचित बीमारी घोषित करने में विफल रही हैं. वर्तमान में देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 17 ने ही अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य कानूनों के तहत कैंसर को अधिसूचित बीमारी घोषित किया है.

कैंसर सर्विलांस से बाहर 90% आबादी

याचिका में कहा गया है कि इस असमान व्यवस्था ने देश में एक खतरनाक ‘पैचवर्क सिस्टम’ बना दिया है. इसके चलते भारत की अधिकांश आबादी अनिवार्य कैंसर रिपोर्टिंग के लाभों से वंचित है. यह रिपोर्टिंग प्रभावी रोग निगरानी, प्रारंभिक पहचान और डेटा आधारित नीति निर्माण की बुनियाद मानी जाती है.

कोर्ट के समक्ष यह भी बताया गया कि भारत का राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) गंभीर अंडर-रिपोर्टिंग की समस्या से जूझ रहा है. याचिका के मुताबिक मौजूदा कैंसर रजिस्ट्रियां भारतीय आबादी के सिर्फ करीब 10% हिस्से को ही कवर करती हैं. इसका मतलब यह है कि देश की लगभग 90% आबादी किसी भी व्यवस्थित और नियमित कैंसर डेटा संग्रह प्रणाली से बाहर है.

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डेटा ब्लैकहोल से नीति निर्माण प्रभावित

याचिका में इस स्थिति को एक गंभीर 'डेटा ब्लैकहोल' बताया गया है. अनिवार्य रिपोर्टिंग के अभाव में देश में कैंसर के वास्तविक बोझ को कम करके आंका जा रहा है. इसके चलते नीति नियोजन में गलतियां हो रही हैं, सीमित संसाधनों का सही तरीके से आवंटन नहीं हो पा रहा है और जीवन रक्षक स्क्रीनिंग व प्रारंभिक पहचान कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने, उनकी निगरानी करने और मूल्यांकन करने में असमर्थता बनी हुई है.

गलत सूचनाओं से बढ़ रहा खतरा

याचिका में कैंसर के इलाज को लेकर फैल रही खतरनाक गलत सूचनाओं पर भी गंभीर चिंता जताई गई है. इसमें गोमूत्र जैसे अवैज्ञानिक उपचारों को कैंसर के इलाज के रूप में प्रचारित किए जाने का जिक्र किया गया है.

आरटीआई के जरिए सरकार के राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ से प्राप्त आधिकारिक जवाब का हवाला देते हुए याचिका में बताया गया कि ऐसे किसी भी दावे का समर्थन करने वाला कोई वैज्ञानिक शोध मौजूद नहीं है. याचिका में तर्क दिया गया है कि अनिवार्य अधिसूचना प्रणाली की कमी के कारण इस तरह की गलत सूचनाओं से प्रभावित मरीजों का सही रिकॉर्ड भी नहीं बन पाता.

अक्सर ऐसे मरीज प्रमाणित चिकित्सा देखभाल तक तभी पहुंचते हैं, जब बीमारी उन्नत और लाइलाज अवस्था में पहुंच चुकी होती है. उनके इलाज के रास्ते और परिणाम भी बड़े पैमाने पर दर्ज नहीं हो पाते.

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सुप्रीम कोर्ट से व्यापक निर्देशों की मांग

इन तमाम तथ्यों के आधार पर जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि कैंसर को देशभर में अधिसूचित बीमारी घोषित करने सहित व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए जाएं, ताकि एक प्रभावी, एकीकृत और वैज्ञानिक राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण प्रणाली विकसित की जा सके.

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