बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को अंजलि दमानिया मामले में सुनवाई की और मुंबई पुलिस के रवैये पर नाराजगी जताई है. HC ने मुंबई पुलिस को व्यक्तिगत रंजिश निपटाने के लिए अदालती मशीनरी का इस्तेमाल करने और मनमर्जी के मुताबिक एफआईआर दर्ज करने पर फटकार लगाई है. दरअसल, पहले पुलिस ने एक्टिविस्ट अंजलि दमानिया पर एक व्यवसायी को गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप में केस दर्ज किया और चार्जशीट दायर कर दी. बाद में एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल कर कहा कि उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है.
मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की बेंच ने इस केस की सुनवाई की. कोर्ट ने उपनगरीय वकोला पुलिस फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा- आप अपना व्यक्तिगत स्कोर तय करने के लिए अदालती मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकते. यह वो मंच नहीं है.
सप्लीमेंट्री चार्जशीट में पुलिस ने आरोप झूठे बताए
बताते चलें कि अंजली दमानिया ने जनवरी 2021 में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार, दमानिया ने एक व्यवसायी को गलत तरीके से बंधक बनाया. अंजली के वकील अर्चित जयकर ने हाई कोर्ट को बताया कि पुलिस ने एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट में दावा किया कि शिकायत झूठी थी और दुर्भावना से प्रेरित थी.
पुलिस के सामने पेश ही नहीं हुआ शिकायतकर्ता
वहीं, अतिरिक्त लोक अभियोजक केवी सस्ते ने कहा कि शिकायतकर्ता जांच के दौरान अपना बयान दर्ज कराने के लिए कभी भी पुलिस के सामने पेश नहीं हुआ. सस्ते ने कहा- शिकायतकर्ता के बयान और गवाहों के बयान के आधार पर चार्जशीट दाखिल की गई. बाद में शिकायत झूठा पाई गई तो एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई.
बेंच ने तब यह जानना चाहा कि जब शिकायतकर्ता पुलिस के सामने पेश ही नहीं हुई तो पुलिस ने पहली चार्जशीट क्यों दाखिल की. कोर्ट ने कहा- पुलिस इस तरह आगे-पीछे नहीं हो सकती. पुलिस की सनक और मनमर्जी पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती. आप (पुलिस) अपने निजी हिसाब-किताब के लिए अदालती तंत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकते. यह इन सबके लिए मंच नहीं है.
अब 2 मार्च को होगी सुनवाई
कोर्ट ने सस्ते को इस मसले पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से निर्देश लेने का निर्देश दिया और मामले को 2 मार्च को सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया. बताते चलें कि पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने पुलिस को दमानिया के खिलाफ मामले में शिकायतकर्ता को अदालत में पेश होने की सूचना देने का निर्देश दिया था. मंगलवार को सुनवाई के दौरान अपर लोक अभियोजक केवी सस्ते ने कोर्ट को बताया कि व्यवसायी को अवगत करा दिया गया था, लेकिन वो पेश नहीं हुए.
उन्होंने आगे कहा कि 12 अप्रैल, 2022 को दमानिया के खिलाफ मामले में एक चार्जशीट भी दायर की गई थी. हालांकि, आगे की जांच में दमानिया की भूमिका का कोई सबूत नहीं मिला. इसलिए पूरक चार्जशीट के आधार पर वह आरोप मुक्त के लिए केस फाइल कर सकती हैं.
एडवोकेट अर्चित जयकर ने अदालत को सूचित किया कि दमानिया द्वारा तत्कालीन मुंबई पुलिस आयुक्त संजय पांडे को पत्र लिखे जाने के बाद आगे की जांच की गई थी, जिसमें सामने आया था कि उन्हें पुलिस द्वारा बुलाए बिना या किसी कंटेंट का अवलोकन किए बिना चार्जशीट भी दायर की गई थी. जयकर ने कहा कि पुलिस ने आगे की जांच करने के बाद कहा था कि शिकायत झूठी है और शिकायतकर्ता द्वारा दुर्भावना से दायर की गई थी.
यह सब सुनने के बाद जस्टिस चव्हाण ने पूछा- पहले आप आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दायर करते हैं और फिर कहते हैं कि कोई मामला नहीं है? क्या यह उसी जांच अधिकारी द्वारा किया गया है? पहले इसे सही ठहराएं. पुलिस सनक और मनमर्जी से कार्रवाई नहीं कर सकती. अगर याचिकाकर्ता उपस्थित नहीं होता है, फिर भी आपको चार्जशीट दाखिल करनी होगी?
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