ख़ुफिया एजेंसी रॉ के नए चीफ अनिल धस्माना की अनकही-अनसुनी कहानी!

खुफिया एजेंसी रॉ की कमान संभालने वाले तेज तर्रार अफसर अनिल धस्माना उत्तराखंड के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं. अनिल धस्माना का बचपन शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ के एक दूरदराज गांव में बीता.

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अनिल धस्माना अनिल धस्माना

मंजीत नेगी

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 11:32 PM IST

खुफिया एजेंसी रॉ की कमान संभालने वाले तेज तर्रार अफसर अनिल धस्माना उत्तराखंड के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं. अनिल धस्माना का बचपन शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ के एक दूरदराज गांव में बीता. छोटे से गांव से लेकर रॉ प्रमुख तक का सफर तय करने वाले आईपीएस अनिल धस्माना की इस उपलब्धि पर उनके गांव वाले फक्र महसूस कर रहे हैं.

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देश की खुफिया एंजेसी के प्रमुख के रूप में जब उनका नाम सामने आया तो उत्तराखंड के साथ-साथ उनके गांव में भी खुशी की लहर फैल गई. आज हम आपको उत्तराखंड के इस गुदड़ी के लाल की अनकही और अनसुनी कहानी से रूबरू कराते हैं.

ऋषिकेश से 70 किलोमीटर दूर भागीरथी और अलकनंदा के संगम देवप्रयाग से उनके गांव का रास्ता शुरू होता है. देवप्रायग से उनका तोली गांव 50 किलोमीटर दूर है. अनिल धस्माना की चाची और उनका परिवार आज भी तोली गांव में ही रहता है. उनके पुश्तैनी घर पर गांव के लोग इकट्ठा होकर उनकी चाची को बधाई देने के लिए पहुंच रहे हैं. सबको अपने इस गुदड़ी के लाल पर गर्व हो रहा है.

चाची भानुमति अनिल की इस कामयाबी से फुले नहीं समा रही हैं. उनका कहना है कि बचपन में अनिल उनके साथ जंगल में घास और पानी लेनी जाते थे. साथ ही घर के सारे कामों में अपनी दादी का हाथ बंटाया करते थे. अनिल धस्माना का बचपन गांव में काफी कठिनाइयों से गुजरा. चार भाई और 3 बहनों में अनिल सबसे बड़े थे. शुरुआती जिंदगी में काफी तंगी और मुश्किलें झेलने वाले अनिल सिर्फ मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ते रहे. अपने पुश्तैनी मकान के जिस छोटे से कमरे में रहकर उन्होंने पढ़ाई की आज उसमें उनके चाचा के बेटे और उनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन अनिल की यादें आज भी घर में रची बसी हैं.

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उनके पिता महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे. चार बेटे और तीन बेटियों के भरेपूरे परिवार के साथ बाद में वह दिल्ली में सेटल हो गए. उनके स्कूल के साथी महेश धस्माना के मुताबिक अनिल का अपनी पढ़ाई की गंभीरता और लक्ष्य के प्रति समर्पण न केवल हम बाकी भाइयों के लिए प्रेरणा था, बल्कि पूरा गांव उनका कायल था. वे बेहद ही सीधे स्वभाव और काफी मिलनसार हैं. गांव में होने वाले शादी-ब्याह जैसे समारोह के अलावा कुल देवता की पूजा में वे अवश्य शामिल होते हैं. उनके चचरे भाई राजेंद्र धस्माना ने बताया कि श्रीताड़केश्वर धाम तो वे हर साल आते हैं. आठ-नौ माह पहले भी वह तोली आए तो सभी लोगों से पूरी शिद्दत के साथ मिले.

आठवीं क्लास तक की पढ़ाई गांव के पास ही दुधारखाल से पास करने के बाद बाकी की शिक्षा दीक्षा दिल्ली में हुई और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 82 साल के उनके शिक्षक शशिधर धस्माना आज अपने शिष्य की कामयाबी से गदगद हैं. वे इस उम्र में हमारे साथ उसी स्कूल में पहुंचे जहां अनिल ने अपनी पांचवी तक की पढ़ाई की. उन्होंने बताया कि अनिल बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ते तब जिला शिक्षा अधिकारी के सामने अनिल ने शानदार भाषण दिया जिसके लिए उन्हें 300 रुपये का वजीफा मिला.

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अपने दादी के साथ तोली गांव में रहकर कक्षा 8 की पढ़ाई करने वाले अनिल दिल्ली अपने परिवार के पास चले गये थे, लेकिन उनका इसके बाद भी अपने गांव से लगाव कम नहीं हुआ और आज भी वह अपने गांव तोली आते जाते रहते हैं. घर में एकाग्रता का माहौल न मिलने पर वो अक्सर लोदी पार्क में लैंप पोस्ट के नीचे जाकर बैठ जाते थे. वहीं बैठकर उन्होंने अपने कंप्टीशन की तैयारियां की. उसी का नतीजा था कि 1981 में उनका आईपीएस में चयन हुआ.

उसके बाद वे मध्यप्रदेश पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर रॉ में शामिल हो गए. आज अनिल ने साबित कर दिया कि उत्तराखंड की मेधा किसी भी स्तर पर किसी से कम नहीं हैं. यह उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े शीर्ष पदों पर उत्तराखंड के बेटे एनएसए अजित डोभाल, डीजीएमओ अनिल कुमार भट्ट और अगले सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत आसीन हैं.

अनिल धस्माना को रॉ का प्रमुख बनाने से तोली गांव भले ही चर्चा में हो, लेकिन इस गांव ने अब तक कई हस्तियां दी हैं. विश्व प्रसिद्ध स्वामीराम तोली गांव से ही थे. समाजसेवी प्रयागदत्त धस्माना, स्वामी हरिहरानंद और जेएनयू के रजिस्ट्रार केडी धस्माना जैसी नामचीन हस्तियों के साथ ही एक दर्जन से अधिक सैन्य अधिकारी, दो पीसीएस अधिकारी एवं कई शिक्षक इस गांव ने दिए हैं.

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