पुलिस की मेस में कैसे बनता है खाना? कौन देता है पैसा? आपके हर सवाल का जवाब

फिरोजाबाद के सिपाही मनोज कुमार की शिकायत पर जांच के आदेश दे दिए गए हैं, लेकिन अब सवाल उठने लगा है थाने और पुलिस लाइन में चलने वाली मेस की व्यवस्था क्या है? कैसे यहां खाना बनता है? कैसे फंड आता है?

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कांस्टेबल मनोज कुमार कांस्टेबल मनोज कुमार

संतोष शर्मा

  • लखनऊ,
  • 12 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 10:21 AM IST

फिरोजाबाद में सिपाही का खराब खाना मिलने को लेकर वायरल हुआ वीडियो यूपी पुलिस पर सवाल खड़े करने लगा है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या पुलिस लाइन में सिपाहियो को खराब खाना दिया जाता है? क्या दिन-रात ड्यूटी देने वाले सिपाहियों का शोषण हो रहा है? सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल होने के बाद इस पूरे मामले पर जांच के आदेश दे दिए गए हैं. एडीजी राजीव कृष्णा ने सीओ सदर फिरोजाबाद से जांच रिपोर्ट मांगी है.

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दरअसल, फिरोजाबाद पुलिस लाइन के कांस्टेबल मनोज कुमार का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ. वायरल वीडियो में मनोज कुमार खराब खाना मिलने की शिकायत कर रहा है. फिलहाल मनोज कुमार की शिकायत पर जांच के आदेश दे दिए गए हैं, लेकिन अब सवाल उठने लगा है थाने और पुलिस लाइन में चलने वाली मेस की व्यवस्था क्या है? कैसे यहां खाना बनता है? कैसे फंड आता है?

थाने और पुलिस लाइन में बनने वाला सामूहिक भोजन जिसे मेस कहते हैं, उसके लिए कोई सरकारी फंड नहीं दिया जाता. सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक के हर पुलिसकर्मी को उसके पद के हिसाब से पौष्टिक आहार भत्ता उसकी तनख्वाह में जोड़ कर दिया जाता है. वर्तमान में प्रत्येक सिपाही को 1875 रुपये मासिक पौष्टिक आहार भत्ता दिया जाता है.

सरकारी स्तर पर मेस संचालन में खाना बनाने वाला फॉलोअर्स, बर्तन, गैस चूल्हा, खाना खाने के लिए मेस एरिया और टेबल कुर्सी भर दी जाती है. जब भी कोई पुलिसकर्मी पुलिस लाइन या थाने के मेस में खाना खाएगा तो उसे 1000 रुपये बतौर सिक्योरिटी मनी जमा करनी होगी, जितने पुलिसकर्मियों की सिक्योरिटी मनी जमा होगी, मासिक तौर पर उतने पुलिसकर्मियों का खाना बनता है.

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लेकिन खाना बनने से पहले हर पुलिसकर्मी को यह भी बताना होगा कि उसका आज मेस में खाना बनेगा या नहीं. अन्यथा अगर वह मेस में खाना नहीं खाता है तो भी उसको भुगतान देना पड़ेगा. मेस कमेटी द्वारा महीने भर में मेस के संचालन में आए खर्च को जोड़ा जाता है, जिसमें राशन खरीद से लेकर तेल, मसाला, सब्जी आदि से लेकर गैस सिलेंडर भरवाने तक का कर्ज जोड़ा जाता है. महीने भर में आए कुल खर्च को हर पुलिसकर्मी की डाइट के हिसाब से बता दिया जाता है कि किसे कितना पैसा जमा करना है. महीने भर बाद हर पुलिसकर्मी यह पैसा मेस में जमा कर देता है.

मेस संचालन करने वाली कमेटी के पुलिसकर्मियों को भी एक महीने बाद बदल दिया जाता है. खाना खाने वाले पुलिसकर्मियों के फीडबैक के आधार पर ही नए पुलिसकर्मी संचालन की कमेटी में शामिल होते हैं. हर जिले की पुलिस लाइन में मेस का संचालन मासिक स्तर पर गठित होने वाली कमेटी करती है, जिसमें हवलदार या हेड कांस्टेबल स्तर का एक पुलिसकर्मी मेस मैनेजर होता है और 4 अन्य पुलिसकर्मी इस कमेटी के सदस्य.

इन चार कमेटी के सदस्य पुलिसकर्मियों में दो पुलिसकर्मी खरीदारी कमेटी में होते हैं, 2 पुलिसकर्मी ऑडिट करते हैं यानी खरीदे गए सामान के बिल बाउचर को चेक करने वाले होते हैं और एक पुलिसकर्मी मदद करने के लिए रखा जाता है. इतना ही नहीं मेस में बन रहे खाने की गुणवत्ता को परखने के लिए जिले में अफसरों की ड्यूटी लगाई जाती है.

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हर मंगलवार को एडिशनल एसपी स्तर का अधिकारी, बुधवार को सीओ लाइन और शुक्रवार को जिले के कप्तान मेस का निरीक्षण करते हैं. मिस के खाने को लेकर फीडबैक लेते हैं. फ़िलहाल फिरोजाबाद में कॉन्स्टेबल के द्वारा मेस के खाने को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं.

लिहाजा इस पूरे मामले पर एडीजी जोन आगरा राजीव कृष्णा ने आजतक से बातचीत में कहा कि इस पूरे मामले की जांच करवाई जा रही है, सीओ सदर से जांच रिपोर्ट मांगी गई है.मेस के खाने की गुणवत्ता का हर हाल में ख्याल रखा जाता रहा है, लेकिन इस शिकायत के बाद सीओ के द्वारा इस पहलू की भी जांच की जाएगी.

 

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