तमिलनाडु में 5 बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने वाले एम करुणानिधि की राजनीति का मुख्य आधार हिंदी और हिंदीभाषी लोगों के खिलाफ रहना था और वह इस विचारधारा के साथ लंबे समय तक बने भी रहे थे.
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद इस हत्या की जांच के लिए जस्टिस जैन कमीशन का गठन किया गया था, जिसने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में करुणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) और उसके प्रमुख प्रभाकरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था.
अंतरिम रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की थी कि राजीव गांधी के हत्यारों को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और डीएमके पार्टी को जिम्मेदार माना जाए. हालांकि आयोग की अंतिम रिपोर्ट में ऐसा कोई आरोप शामिल नहीं था.
अप्रैल 2009, में करुणानिधि ने भी एक विवादस्पद टिप्पणी की थी कि प्रभाकरण उनका अच्छा दोस्त है, साथ ही यह भी कहा था कि राजीव गांधी की हत्या के लिए भारत एलटीटीई को कभी माफ नहीं कर सकता.
करुणानिधि और उनकी पार्टी को श्रीलंका की तमिल समर्थकों वाली विद्रोही संगठन एलटीटीई का समर्थक माना जाता था.
1957 में करुणानिधि पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक बने और 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया. 1969 में अन्नादुरै के निधन के बाद पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. तमिलनाडु में वह 5 बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री भी रहे. साथ ही आजादी के बाद करुणानिधि पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता रहे जिन्होंने किसी विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल कर मुख्यमंत्री बने.
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