महान चित्रकार जामिनी रॉय के जीवन से जुड़ी 10 बड़ी बातें..

जामिनी रॉय भारत के महान चित्रकारों में से एक थे. उन्हें 20वीं शताब्दी के महत्‍वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में एक माना जाता है

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महान चित्रकार जामिनी रॉय कलाकृति महान चित्रकार जामिनी रॉय कलाकृति

विजय रावत

  • नई दिल्ली,
  • 11 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

जामिनी रॉय भारत के महान चित्रकारों में से एक थे. उन्हें 20वीं शताब्दी के महत्‍वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में एक माना जाता है. जिन्‍होंने अपने समय की कला परम्‍पराओं से अलग एक नई शैली स्‍थापित करने में अहम् भूमिका निभाई. वे महान चित्रकार अबनिन्द्रनाथ टैगोर के सबसे प्रसिद्ध शिष्यों में एक थे. सन 1903 में 16 वर्ष की आयु में जामिनी रॉय ने कोलकाता के ‘गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स’ में दाख़िला लिया, जिसके प्रधानाचार्य पर्सी ब्राउन थे. ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट’ के संस्थापक अबनिन्द्रनाथ टैगोर इस विद्यालय के उप-प्रधानाचार्य थे. इनका जन्म 11 अप्रैल 1887 को बांकुड़ा ज़िला, पश्चिम बंगाल में हुआ था,और इनकी मृत्यु 24 अप्रैल 1972 को कोलकाता में हुई थी.

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जामिनी रॉय के जीवन से जुड़ी 10 बड़ी बातें..
उनकी प्रारंभिक रचनाएं ‘ कालीघाट पेटिंग’, ‘प्लाउमैन’,‘ऐट सनमेट प्रेयर’,‘वैन गॉ’तथा ‘सेल्फ़ पोट्रेट विद वैन डाइक बियर्ड’ आदि थीं.

उन्हें उनके ‘मदर हेल्पिंग द चाइल्ड टु क्रॉस ए पूल’चित्र के लिए सन् 1934 में वाइसरॉय का स्वर्ण पदक प्रदान किया गया.

भारत सरकार ने सन् 1954 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया.

उन्हें ‘ललित कला अकादमी’ का पहला फेलो सन् 1955 में बनाया गया.

‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’, संस्कृति मंत्रालय और भारत सरकार ने उनके कृतियों को सन् 1976 में बहुमूल्य घोषित किया.

उन्‍होंने साधारण ग्रामीणों और कृष्णलीला के चित्र बनाए और महान ग्रंथों के दृश्‍यों, क्षेत्र की लोक कलाओं की महान हस्तियों को चित्रित किया और पशुओं को भी बड़े विनोदात्‍मक तरीके से प्रस्‍तुत किया.

उन्होंने एक बड़ा दिलचस्प और साहसिक प्रयोग भी किया था – ईसा मसीह के जीवन से जुड़ी घटनाओं के चित्रों की श्रृंखला। उन्होंने इसमें ईसाई धर्म की पौराणिकता से जुड़ी कहानियों को इस तरह से प्रस्‍तुत किया कि वह साधारण ग्रामीण व्‍यक्ति को भी आसानी से समझ में आ सकती थी.

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उनकी कला की प्रदर्शनी पहली बार सन् 1938 में कोलकाता के ‘ब्रिटिश इंडिया स्ट्रीट’ पर लगायी गयी. 1940 के दशक में वे बंगाली मध्यम वर्ग और यूरोपिय समुदाय में बहुत मशहूर हो गए.

उनके कला की प्रदर्शनी लन्दन में सन् 1946 में आयोजित की गयी और उसके बाद सन 1953 में न्यू यॉर्क सिटी में भी उनकी कला प्रदर्शित की गयी.

उनकी कई कृतियां निजी और सार्वजनिक संग्रहण जैसे विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम लन्दन में भी देखी जा सकती हैं.

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