यूपी में BSP बनी दोधारी तलवार! जानें- BJP या INDIA ब्लॉक किसे किया ज्यादा नुकसान

दरअसल बसपा के वोटों के बिखराव ने इंडिया एलायंस को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया जबकि दर्जनभर से ज्यादा सीटों पर भाजपा को भी इसका फायदा मिला है. बीजेपी की जीती हुई 33 सीटों में 16 सीटें ऐसी हैं जहां बसपा को मिले वोट बीजेपी के इंडिया गठबंधन पर जीत के मार्जिन से ज्यादा हैं.

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बसपा ने बीच चुनाव में अपने कई प्रत्याशी बदले हैं बसपा ने बीच चुनाव में अपने कई प्रत्याशी बदले हैं

कुमार अभिषेक

  • लखनऊ,
  • 08 जून 2024,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका दिया है, जहां सबसे ज्यादा जीतने की उम्मीदें थी बीजेपी वहीं सबसे ज्यादा नुकसान में चली गई, नतीजा ये कि बीजेपी को आज खुद से बहुमत नहीं है, लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या बहन जी यानी मायावती के वोटो में बिखराव होना और उनका इंडिया गठबंधन की तरफ शिफ्ट होना इसकी वजह है?  या फिर बसपा ने दोनों को नुकसान पहुंचाया और खुद सबसे ज्यादा नुकसान में चली गई?

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भाजपा को मिला फायदा
दरअसल बसपा के वोटों के बिखराव ने इंडिया एलायंस को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया जबकि दर्जनभर से ज्यादा सीटों पर भाजपा को भी इसका फायदा मिला है. बीजेपी की जीती हुई 33 सीटों में 16 सीटें ऐसी हैं जहां बसपा को मिले वोट बीजेपी के इंडिया गठबंधन पर जीत के मार्जिन से ज्यादा हैं, ऐसे में कई सियासी जानकार कह रहे हैं कि इन सीटों पर बसपा के वोटो की वजह से बीजेपी की जीत हुई है, अगर यहां बीएसपी के वोट कम हो जाते तो यूपी में बीजेपी 20 के नीचे चली आती.

इन 23 सीटों पर बसपा ने INDIA ब्लॉक को पहुंचाया नुकसान
हालांकि, 23 सीटें ऐसी भी मानी जा रही हैं जहां बसपा ने अच्छे वोट लिए जिससे इंडिया गठबंधन को नुकसान हुआ, लेकिन यह वो सीटें हैं जहां पर बीएसपी हमेशा से मजबूत रही है. बीएसपी जहां अपने वोटो के बिखराव को रोकने में थोड़ा भी सफल रही वहां बीजेपी जीती है ऐसी 23 सीटें है, जैसे बुलंदशहर, मथुरा, हाथरस, शाहजहांपुर, मिश्रिख, हरदोई, उन्नाव, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, कैसरगंज, भदोही, बहराइच, डुमरियागंज, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, जहां बसपा अपना अच्छा खासा वोट बैंक बचाने में सफल रही, जिसकी वजह से बीजेपी मामूली वोटो से ही सही लेकिन वह इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ी. जबकि दूसरी तरफ बीएसपी प्रत्याशी जहां कम वोट पाए या फिर उनका बिखराव ज्यादा हुआ वह सीटें इंडिया गठबंधन को चली गई.

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माना जा रहा है कि इटावा, धौरहरा खीरी, एटा, संभल, मोहनलालगंज, हमीरपुर, जालौन, सुल्तानपुर, बांदा, फतेहपुर, लालगंज, अंबेडकर नगर, जौनपुर, मछली शहर, सलेमपुर, गाजीपुर, चंदौली और घोसी इन सीटों पर बीएसपी अपनी परंपरागत वोट नहीं बचा पाई और इनका एक बड़ा हिस्सा इंडिया गठबंधन की तरफ शिफ्ट कर गया. कहीं कांग्रेस पार्टी को तो कहीं समाजवादी पार्टी को जिसकी वजह से बीजेपी इन सीटों को हार गई.

2019 का क्या रहा हाल?
दरअसल, 2019 में जिन 42 सीटों पर बीएसपी नहीं लड़ी थी वहां दलितों ने ज्यादातर भाजपा को वोट किया था, लेकिन इस बार बीएसपी के लड़ने से बीएसपी को मिले वोटो ने बीजेपी का नुकसान कर दिया. 2019 में मुजफ्फरनगर में बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, लेकिन इस बार संजीव बालियान के खिलाफ लड़ रहे हरेंद्र मलिक को बीएसपी के दारा सिंह प्रजापति के लड़ने का फायदा मिला, बीएसपी उम्मीदवार को 1 लाख 43 हजार वोट मिला और संजीव बालियान 24 हजार वोटो से हार गए.

बदायूं में पिछली बार ज्यादातर दलित वोट बीजेपी के साथ गया था, क्योंकि बीएसपी का यहां उम्मीदवार नहीं था. लेकिन बसपा ने इस बार मुस्लिम खान को टिकट दिया. 97000 से ज्यादा वोट बसपा को मिला और बीजेपी दुर्विजय सिंह शाक्य लगभग 35 हज़ार वोट से हार गए. यह दो सीटें तो बानगी हैं, ऐसी 22 सीटों पर बीजेपी को हार मिली है, जहां पिछली बार बीएसपी के नहीं होने का फायदा बीजेपी को मिला था.

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दरअसल 2022 के चुनाव के मुकाबले लगभग तीन फ़ीसदी बसपा के वोट कम मिले और इस तीन फ़ीसदी में सबसे ज्यादा वोट इंडिया गठबंधन को शिफ्ट हुए हैं. बीएसपी के लिए अपने वोटो को रोकना आज सबसे बड़ी चुनौती है. नगीना जैसी सीट पर बीएसपी को महज साढे 13 हज़ार वोट मिले, जहां से मायावती ने अपनी सियासत की शुरुआत की थी. वहां बसपा मिट्टी में मिल चुकी है. जबकि वहीं से चंद्रशेखर आजाद रावण इस बार चमके हैं और और बसपा से 5 लाख ज्यादा वोट लेकर जीते हैं.

मुसलमान को टिकट देने का कोई फायदा नहीं मिला
हालांकि, मायावती को लगता है कि उनका अपना कोर वोटर आज भी उनके साथ है लेकिन मुसलमान को टिकट देने का उन्हें कोई फायदा नहीं मिला. उल्टे उसका नुकसान हुआ है, क्योंकि मुसलमान ने टिकट मिलने के बावजूद बसपा को वोट नहीं किया. मायावती ने नतीजे के बाद जारी किए अपने प्रेस रिलीज इस बात को लिखा है और भविष्य की ओर इशारा करते हुए कहा है कि आगे से मुसलमान को राजनीतिक भागीदारी देने में वह ज्यादा सतर्क रहेंगी.

उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती ने 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया था. बसपा को 9.39 फीसदी वोट मिले, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली. कांग्रेस के कुछ नेता आखिरी समय तक बसपा को भारत गठबंधन में लाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मायावती का कहना है कि गठबंधन में चुनाव लड़ने से बसपा को नुकसान होता है. हालांकि 2024 के लोकसभा में बसपा उत्तर प्रदेश में कोई सीट नहीं जीत पाई.

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जिन सीटों पर बसपा ने जीत के अंतर से ज़्यादा वोट हासिल किए, वे बिजनौर से लेकर मिर्जापुर तक पूरे क्षेत्र में फैली हुई हैं. ये 16 सीटें अकबरपुर, अलीगढ़, अमरोहा, बांसगांव, भदोही, बिजनौर, देवरिया, फर्रुखाबाद, फतेपुर सीकरी, हरदोई, मेरठ, मिर्जापुर, मिसरिख, फूलपुर, शाहजहांपुर और उन्नाव हैं, जहां बसपा को जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले.

बिजनौर सीट की बात करें तो यहां से बसपा उम्मीदवार विजेंद्र सिंह ने सोलह सीटों में से सबसे ज्यादा 2,18,986 वोट हासिल किए. बिजनौर में रालोद ने समाजवादी पार्टी को 37,508 वोटों से हराया. मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल ने सपा उम्मीदवार को 37,810 वोटों से हराया. बसपा के उम्मीदवार मनीष कुमार को 1,44,446 वोट मिले. शाहजहांपुर की 16 सीटों में से भाजपा उम्मीदवार अरुण कुमार सागर ने सबसे ज्यादा 55379 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, जबकि बसपा उम्मीदवार दोद राम वर्मा को 91710 वोट मिले. अरुण कुमार सागर ने ज्योत्सना गोंड को हराया. फर्रुखाबाद में भाजपा उम्मीदवार मुकेश राजपूत ने सबसे कम 2,678 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. उन्होंने सपा उम्मीदवार डॉ. नवल किशोर शाक्य को हराया. बसपा के उम्मीदवार क्रांति पांडे को 45390 वोट मिले.

BSP के वोट शेयर में 10.38 फीसदी की गिरावट
माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में मायावती का वोट बैंक धीरे-धीरे खिसक रहा है. 2014 में बीएसपी को 19.77 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2019 में 19.42 फीसदी. 2014 से 2024 तक बीएसपी के वोट प्रतिशत की तुलना करें तो इसमें 10.38 फीसदी की गिरावट आई है. 

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2024 में मायावती का जनाधार न केवल बीएसपी के मुख्य जाटव मतदाताओं में बल्कि गैर-जाटवों में भी बड़ी संख्या में खिसक गया है. नगीना लोकसभा सीट पर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) पार्टी के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद की 151473 वोटों से जीत इसका उदाहरण है. 

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने मिलकर 15 लोकसभा सीटें जीती थीं. बीएसपी ने दस सीटें जीती थीं, जबकि समाजवादी पार्टी ने पांच सीटें जीती थीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. तब से उसकी चुनावी ताकत लगातार कमजोर होती जा रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 403 में से सिर्फ 19 सीटें मिलीं.

यह 1991 के बाद से उसका सबसे खराब प्रदर्शन था, जब उसने 12 सीटें जीती थीं. 2012 के विधानसभा चुनाव में उसने 80 सीटें जीती थीं. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली. तब तक विधानसभा चुनाव में बीएसपी का वोट प्रतिशत घटकर 12.88 प्रतिशत रह गया था.

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