आकाश आनंद को बसपा ने चुनावी राज्यों की दी जिम्मेदारी, मायावती का प्लान क्या है?

चार राज्यों में चुनाव के लिए मायावती ने आकाश आनंद को प्रभारी बनाया है. आकाश आनंद को चुनावी जिम्मेदारी दिए जाने के बाद अब ये बहस भी छिड़ गई है कि क्या उनके पास इतना अनुभव, इतनी क्षमता है कि वे बसपा की पुरानी जड़ों वाले राज्यों में खिसकता जनाधार रोक पाएं?

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आकाश आनंद और मायावती (फाइल फोटो) आकाश आनंद और मायावती (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 जून 2023,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां एक्टिव मोड में आती दिख रही हैं. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस ने चुनाव को लेकर जनता के बीच पहुंचना शुरू कर दिया है. वहीं दूसरी तरफ मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी चुनावी तैयारी शुरू कर दी है.

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बसपा ने इन राज्यों के चुनाव में मायावती के भतीजे आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी है. आकाश आनंद को बसपा ने चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी है. आकाश ने चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी मिलने के बाद ट्वीट कर एक तरह से ये संकेत दे दिए हैं कि उनकी रणनीति दलित-आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को हाथी के साथ लाने की होगी.

आकाश आनंद में मायावती के राजनीतिक वारिस की छवि देखी जाती है. ऐसे में उनको चार चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी मिलना नहीं चौंकाता  लेकिन सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा जरूर शुरू हो गई है कि क्या आकाश आनंद चार ऐसे राज्यों की जिम्मेदारी के साथ न्याय कर पाएंगे जहां एक ही साथ विधानसभा चुनाव होने हैं? क्या आकाश की सांगठनिक क्षमता इतनी है? बसपा से जुड़े लोग आकाश की संगठन क्षमता और नेतृत्व पर भरोसा व्यक्त कर रहे हैं, चमत्कार की आस व्यक्त कर रहे हैं तो वहीं सियासत के जानकारों की राय कुछ और ही है.

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आकाश आनंद के सियासी सफर का जिक्र करते हुए पत्रकार अनिल विश्वकर्मा कहते हैं कि वो साल 2017 में राजनीति में आए. मायावती ने 2017 में एक बड़ी रैली कर आकाश आनंद को राजनीति में लॉन्च किया था. यूपी में आकाश की लॉन्चिंग के बाद बसपा लगातार कमजोर ही हुई है. 2017, 2019 में पार्टी को बड़ी हार मिली तो वहीं 2022 के यूपी चुनाव में तो बसपा महज एक सीट पर सिमट गई. बसपा के प्रदर्शन में आई बड़ी गिरावट के बाद ऐसे राज्यों में जहां पार्टी की जड़ें पुरानी और गहरी तो हैं लेकिन उतनी मजबूत नहीं, आकाश आनंद से किसी चमत्कार की आस बेमानी ही होगी.

आकाश को मायावती ने क्यों दी जिम्मेदारी?

मायावती ने जैसे ही भतीजे को बड़ी जिम्मेदारी दी, सियासी गलियारों में आकाश आनंद की सांगठनिक क्षमता को लेकर बहस छिड़ गई. बसपा ने अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर युवा चेहरे पर दांव क्यों लगाया. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि इसके पीछे बसपा और मायावती की रणनीति साफ है. मायावती आकाश आनंद को क्रिकेट की भाषा में कहें तो भविष्य की राजनीति के लिए प्रैक्टिस मैच देना चाहती हैं जिससे उनको चुनावी दांव-पेंच, टिकट वितरण, चुनाव प्रचार और अन्य पहलुओं का अनुभव मिल सके.

उन्होंने कहा कि यूपी बेस्ड पार्टी मानी जाने वाली बसपा के लिए इन चार राज्यों में से तीन बहुत महत्वपूर्ण हैं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, इन राज्यों में पार्टी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराती रही है. अमिताभ तिवारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते मध्य प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में बसपा मजबूत रही है. बसपा ने साल 1984 में अपनी स्थापना के बाद दूसरे लोकसभा चुनाव1991 में जब तीन सीटें जीती थीं, एक सीट मध्य प्रदेश की भी थी. उन्होंने कहा कि ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में बसपा के पास मजबूत वोट बेस रहा है.

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चार राज्यों में नई सोशल इंजीनियरिंग

चार राज्यों की चुनावी जिम्मेदारी मिलने के बाद आकाश आनंद ने ट्वीट किया. आकाश आनंद ने ट्वीट कर जिम्मेदारी देने के लिए मायावती का आभार व्यक्त किया. उन्होंने अपने ट्वीट में आगे जो लिखा, उसे बसपा की नई सोशल इंजीनियरिंग का संकेत माना जा रहा है. आकाश आनंद ने कहा कि हम दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों का हर स्तर पर हो रहे शोषण, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों पर आने वाले विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ेंगे. यूपी में अर्श से फर्श पर आ चुकी बसपा अब नए-नए दांव आजमा खिसक रहे जनाधार को रोकने को लेकर मंथन में जुटी है. चार राज्यों के चुनाव में पार्टी अब दलित-आदिवासी-ओबीसी कार्ड खेलेगी, आकाश आनंद की बातों से ये तो यही कयास लगाए जा रहे हैं.   

मध्य प्रदेश में निश्चित वोट बेस वाली तीसरी पार्टी

मध्य प्रदेश चुनाव के आंकड़े देखें तो वे भी अमिताभ तिवारी की बात की ओर ही  इशारा करते नजर आ रहे हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधे मुकाबले वाले राज्य में अगर किसी दल ने एक निश्चित वोट शेयर के साथ हर चुनाव में मौजूदगी दर्ज कराई है तो वह बसपा है. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 7.26  फीसदी वोट शेयर के साथ दो, 2008 में 8.97 फीसदी वोट शेयर के साथ सात और 2013 में 6.29 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटें जीतें में सफल रही थी. 2018 के चुनाव में बसपा का वोट शेयर और सीटें, दोनों कम हुए. बसपाको 5.1 फीसदी वोट के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी.

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छत्तीसगढ़ विधानसभा में हर बार दर्ज कराई है मौजूदगी

बहुजन समाज पार्टी ने छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद साल 2003 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2018 के चुनाव तक, छत्तीसगढ़ विधानसभा में बसपा ने हर बार अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. 2003 में बसपा को दो, 2008 में दो और 2013 में एक सीट पर जीत मिली थी. 2018 में भी बसपा को दो सीटों पर जीत मिली. छत्तीसगढ़ में 6 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ दमदारमौजूदगी दर्ज करा चुकी बसपा को 2018 में 4 फीसदी से भी कम वोट मिले थे. आकाश के सामने छत्तीसगढ़ में पार्टी के जनाधार को सहेजने, खोया आधार वापस पाने की चुनौती होगी.

राजस्थान में चुनौतियां अलग तरह की

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि आकाश के सामने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां बसपा के वोट शेयर में गिरावट पर ब्रेक लगाने, कोर वोटर को पार्टी से जोड़े रखने और पहली बार किंगमेकर बनाने की चुनौती है. वह साथ ही ये भी कहते हैं कि राजस्थान में चुनौतियां अलग हैं. अमिताभ तिवारी ने 2003 से अब तक के चुनाव परिणाम की चर्चा करते हुए कहा कि राजस्थान में बसपा जब-जब आधा दर्जन सीटों पर जीती है, विधायकों ने दगा दिया है.

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आकाश के सामने बतौर प्रभारी निष्ठावान और जिताऊ उम्मीदवारों के चयन की चुनौती होगी. साल 1990 से राजस्थान में किस्मत आजमा रही बसपा का दो सीटों पर जीत के साथ 1998 में खाता खुला और तब से अबतक, हर चुनाव में बसपा के उम्मीदवार जीतते आए हैं. बसपा ने 2003 में दो, 2008 में छह, 2013 में तीन और 2018 में छह सीटें जीती थीं. 2008 में बहुमत के आंकड़े से पांच सीट पीछे रह गई कांग्रेस ने किंगमेकर बनकर उभरी बसपा के सभी छह विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया था. 2018 में भी यही हुआ. बसपा के सभी विधायकों ने पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. ऐसे में आकाश के लिए राजस्थान के रण में चुनौती बड़ी होगी.

 

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