प्रधानमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंथा नागेश्वरन ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए नए टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए किसी बड़े संकट का कारण नहीं बनेंगे. उन्होंने स्पष्ट किया कि नौकरी जाने का खतरा मुख्य रूप से उन्हीं निर्यात-उन्मुख कंपनियों तक सीमित रहेगा जो पूरी तरह अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं.
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में नागेश्वरन ने कहा कि मजबूत घरेलू मांग, अच्छा मानसून और ग्रामीण उपभोग में वृद्धि से अमेरिकी टैरिफ के असर की भरपाई हो सकती है. यानी अगर कहीं कुछ नौकरियां जाती भी हैं तो वे बहुत बड़ी संख्या में नहीं होंगी.
उन्होंने यह भी कहा कि प्रभावित कंपनियां वैकल्पिक बाजार तलाश सकती हैं, वहीं कुछ कंपनियां इसे मध्यम और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखेंगी और अगर टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितता अस्थायी साबित होती है तो वे अपने कर्मचारियों को बनाए रखने का निर्णय भी ले सकती हैं.
ज्यादा दिनों तक नहीं चलेंगे ऊंचे टैरिफ: CEA
उन्होंने उम्मीद जताई कि यह ऊंचे टैरिफ ज्यादा दिनों तक नहीं चलेंगे, क्योंकि भारत और अमेरिका 25% दंडात्मक टैरिफ हटाने और एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत कर रहे हैं.
भारत की 2026 की पहली तिमाही (Q1) में 7.8% जीडीपी वृद्धि दर पर टिप्पणी करते हुए नागेश्वरन ने कहा कि यह मजबूती मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की तेज रफ्तार और सरकारी खर्च की वापसी की वजह से आई है. इसके साथ ही, महंगाई में थोड़ी नरमी भी आंकड़ों को बेहतर बनाने में मददगार रही.
उन्होंने कहा, “अमेरिका द्वारा लगाए गए परस्पर टैरिफ और दंडात्मक टैरिफ के बावजूद, और पहली तिमाही की ग्रोथ की मजबूती देखने के बाद हम इस वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर का अनुमान 6.3-6.8% पर बनाए हुए हैं.”
'आने वाले समय में दिख सकता है असर'
हालांकि उन्होंने आगाह किया कि आने वाली तिमाहियों में असर दिख सकता है, खासकर बाहरी क्षेत्र (एक्सटर्नल सेक्टर) में, जहां टैरिफ के चलते निर्यात वृद्धि प्रभावित हो सकती है और इसका असर घरेलू उत्पादन व पूंजी निर्माण पर भी पड़ सकता है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि दूसरी या संभवतः तीसरी तिमाही में दिखने वाली सुस्ती सीमित, अस्थायी और गुजर जाने वाली होगी, क्योंकि टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताओं के लंबे समय तक बने रहने की संभावना नहीं है.
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