पाकिस्तान के हिंदू मंदिर... जिनमें विभाजन के बाद भी जल रही आस्था की लौ

आजादी की इस वर्षगांठ पर कहानी उन मंदिरों की जो बंटवारे के बाद भले ही 'उस ओर' रह गए, लेकिन उनमें आस्था-भक्ति, विश्वास को लेकर श्रद्धालुओं में कोई कमी नहीं आई. हींगलाज भवानी का मंदिर तो विश्व प्रसिद्ध है. कटासराज मंदिर, मुल्तान का सूर्य मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, शिवाला तेजाजी मंदिर भी पाकिस्तान में बहुत प्रसिद्ध हैं.

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पाकिस्तान में बंटवारे के बाद कई प्रमुख हिंदू मंदिर भी सरहद पार हो गए थे पाकिस्तान में बंटवारे के बाद कई प्रमुख हिंदू मंदिर भी सरहद पार हो गए थे

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 6:45 AM IST

तारीख 14 अगस्त 1947... दक्षिण एशिया के सबसे बड़े मु्ल्क के भाग्य का लेखा-जोखा आधी रात को हुआ. एक कागज के टुकड़े पर कुछ आड़ी-टेढ़ी रेखाएं खींच दी गईं. इस तरह युगों से चली आ रही जंबूद्वीप, भरतखंड, आर्यावर्त और भारतवर्ष की प्राचीन परंपरा एक झटके में हिंदुस्तान और पाकिस्तान नाम से दो भागों में बंट गई. उस रात सिर्फ भारत के दो हिस्से नहीं हुए थे. जमीन के ही दो टुकड़े नहीं हुए थे, सिर्फ इधर वालों को इधर और उधर  वालों को उधर नहीं किया गया था. उस आधी रात में कट गई थी सभ्यता और संस्कृति-पूजा और पद्धति भी.

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देश अलग हुआ. इधर हिंदुस्तान, उधर पाकिस्तान हुआ. लाशें बिछीं, खून बहे और इन सबके बीच चुप हो गईं मंदिर की घंटियां, शंख-मृदंग की दिशाभेदी आवाजें और खामोश हो गए आरती के स्वर. ये सबकुछ हुआ उन मंदिरों में जो सरहद के पार रह गए. हालांकि कुछ मंदिर अपनी प्राचीनता और पौराणिकता बचाए रखने में सफल रहे, लेकिन अधिकतर का हाल ऐसा रहा कि कई साल बीतने के बाद अब उनमें बयां करने जैसा कुछ भी बाकी नहीं है.

आजादी की इस वर्षगांठ पर कहानी उन्हीं मंदिरों को जो बंटवारे के बाद भले ही 'उस ओर' रह गए, लेकिन उनमें आस्था-भक्ति, विश्वास को लेकर श्रद्धालुओं में कोई कमी नहीं आई है. हींगलाज भवानी का मंदिर तो विश्व प्रसिद्ध है. इसके अलावा कटासराज मंदिर, मुल्तान का सूर्य मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, शिवाला तेजाजी मंदिर भी पाकिस्तान में बहुत प्राचीन हैं और प्रसिद्ध भी हैं.

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हींगलाज भवानी मंदिर- हिंगोल, बलूचिस्तान
पड़ोसी मुल्क में बलूचिस्तान प्रांत का जितना जुड़ाव पाकिस्तान से है, उतना ही यह हिस्सा भारतीयों के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है. धार्मिक नजरिए से देखें तो बलूचिस्तान में ही 51 शक्तिपीठों में से एक महत्वपूर्ण शक्ति स्थल मौजूद है, जो हिंगलाज भवानी के नाम से मशहूर है. कहा जाता है हिंगोल नदी के तट पर स्थित ये शक्तिपीठ सतयुग के समय से है जिसे देवी आदिशक्ति के कई अवतारों और स्वरूपों में से एक माना जाता है.

बंटवारे से पहले तक शक्तिपीठों की तीर्थयात्रा की एक परंपरा भी थी, जिसे कनफड़ योगी जरूर निभाते थे और यह उनसे होकर सामान्य लोगों के बीच भी प्रचलित थी. हालांकि कनफड़ योगी अभी भी शक्तिपीठ यात्रा परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं और शाक्त मत के अनुयायी-श्रद्धालुओं के लिए यह स्थल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन बंटवारे के बाद हिंगलाज भवानी के तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी आई, हालांकि अभी भी कई श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.  

हींगलाज भवानी मंदिर, बलूचिस्तान

हिंगलाज देवी का जिक्र दुर्गा चालीसा में भी होता है. इसमें देवी दुर्गा का एक नाम हिंगलाज भवानी बताया गया है और कहा गया है कि उनकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है. 

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हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी

हिंगलाज शब्द, सुहाग की रक्षा करने वाली देवी के तौर पर आया होगा. हिंगुल शब्द का अर्थ सिंदूर से भी होता है. शक्तिपीठ में देवी की मौजूदगी पिंडी स्वरूप में एक शिला पर देवी का स्वरूप उभरा हुआ है, जिसके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं. नवरात्रि के दौरान तो यहां पूरे नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है. सिंध-कराची के हजारों सिंधी हिन्दू श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं. भारत से भी प्रतिवर्ष एक दल यहां दर्शन के लिए जाता है.

अंगारों पर चलने की परंपरा  

मान्यताओं के अनुसार एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चुल चलेगा उसकी हर मनोकामना पुरी होगी. चुल एक प्रकार का अंगारों का बाड़ा होता है जिसे मंदिर के बाहर 10 फिट लंबा बनाया जाता है और उसे धधकते हुए अंगारों से भरा जाता है. इन्हीं अंगारों पर चलकर मन्नतधारी मंदिर में पहुचते हैं. ये माता का चमत्कार ही है कि किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है. हालांकि पिछले कुछ सालों से इस परंपरा पर रोक लगी हुई है.

इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है. कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर ब्रह्मांड की सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं. हिंगलाज माता का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में है. यहां माता का विग्रह रूप विराजमान है. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं. मंदिर की परिक्रमा के लिए तीर्थयात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं. मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है. मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां स्नान करने आती हैं.

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जब पाकिस्तान का जन्म नहीं हुआ था. उस समय भारत की पश्चिमी सीमा अफगानिस्तान और ईरान से जुड़ती थी. उस समय से बलूचिस्तान के मुसलमान हिंगलाज देवी को मानते आ रहे हैं. यहां बलोच लोग देवी को 'नानी' कहते हैं और 'नानी पीर' कहते हुए लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती, इत्र और सिरनी चढ़ाते हैं. इस मंदिर पर आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन स्थानीय हिन्दू और बलोच लोगों ने इस मंदिर को बचाया.  

मुल्तान का आदित्य सूर्य मंदिर

भारतीय क्रिकेटर वीरेंद्र सेहवाग को 'मुल्तान का सुल्तान' कहा जाता रहा है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित मुल्तान भी कभी सनातन परंपरा का वाहक रहा है. इसी मुल्तान में प्राचीन संस्कृति के अवशेष भी दिखाई देते हैं. यहां एक प्राचीन सूर्य मंदिर मौजूद है, जो कश्मीर में मौजूद मार्तंड सू्र्य मंदिर की श्रेणी का ही है. मुल्तान का यह मंदिर किसी जमाने में आदित्य मंदिर कहलाता था. आदित्य सूर्य का ही एक नाम है, क्योंकि वह अपनी माता अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य कहलाए. मंदिर की प्रसिद्ध आदित्य मूर्ति को 10 वीं शताब्दी के अंत में मुल्तान के नए राजवंश इस्माइली शासकों द्वारा नष्ट कर दिया गया था.

मंदिर का उल्लेख मध्ययुगीन अरब के भूगोलवेत्ता अल-मुकद्दासी ने किया था. यह मंदिर इतना विशाल था कि शहर के हाथीदांत और कसेरा बाज़ारों के बीच मुल्तान के सबसे अधिक आबादी वाले हिस्से में फैला था. इस मंदिर का इतिहास पांच हजार साल पुराना है. श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को जब चरक रोग का श्राप दिया था, तब देवर्षि नारद ने उन्हें सूर्य आराधना का उपाय बताया था. तब कृष्ण पुत्र सांब ने तीर्थाटन करते हुए हर प्रमुख पड़ाव पर एक-एक सूर्य मंदिर बनवाए थे. देशभर में ऐसे मंदिरों की संख्या 12 थी. अन्य मंदिर आज भी भारत में स्थित हैं,  सिर्फ मुल्तान का मंदिर पाकिस्तान चला गया. हालांकि यह मंदिर उससे भी पहले से ही आक्रमणकारियों के निशाने पर रहा था. 

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मुल्तान का प्राचीन नाम कश्यपपुरा बताया जाता है. यह नाम सूर्य के पिता ऋषि कश्यप के नाम के आधार पर ही था. ग्रीक एडमिरल स्काईलेक्स ने 515 ईसा पूर्व सूर्य मंदिर का उल्लेख किया है. एक अभिलेख के मुताबिक, विदेशी यात्री ह्वेन सांग भी 641 ईस्वी में मंदिर पहुंचा था. ह्वेन सांग के वर्णन में बड़े लाल रूबी पत्थर से बनीं आंखों वाली शुद्ध सोने की सूर्य प्रतिमा का उल्लेख शामिल है. इसके दरवाजों, खम्भों और शिखर में सोने, चांदी और रत्नों का काफी इस्तेमाल किया गया था. हिंदू इस मंदिर में हजारों की संख्या में प्रतिदिन सूर्य उपासना के लिए पहुंचते हैं. इस मंदिर में विदेशी यात्री ने देवदासी का होना भी लिखा है. बाद के कई और विदेशी यात्रियों के वर्णन में भी अलग-अलग धर्मों की प्रतिमाएं स्थापित होना शामिल है. 

11वीं सदी का अल बरूनी का लिखी मुल्तान दौरे की रिपोर्ट कहती है कि इस सदी में मंदिर नष्ट किया गया और फिर कभी नहीं बनवाया गया. 

तेजाजी शिवाला मंदिर, सियालकोट
पाकिस्तान के पंजाब स्थित स्यालकोट में महादेव शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर है. इसे तेजाजी शिवाला के नाम से जाना जाता है. साल 1947 में जब बंटवारा हुआ तब इस मंदिर के जो कपाट बंद हुए तो कई दशकों तक बंद रहे. इसे 72 साल बाद साल 2020 में फिर से खोला गया था. यह मंदिर तकरीबन 1000 साल पुराना है. ऐतिहासिक सोर्स की ओर देखें तो इस मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में हुआ था, इसकी नक्काशी और बनावट में भारतीय स्थापत्य की छाप मिलती है.

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विभाजन के समय हिंदू समुदाय के बड़ी संख्या में पलायन कर जाने के बाद से मंदिर बहुत कम लोग आते-जाते थे. 1992 में अयोध्या में विवाद के दौरान पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया था. इस घटना के बाद से यह मंदिर पूरी तरह से बंद पड़ा था. साल 2020 में इसके खोले जाने की खबरें आई थीं. मंदिर के जो हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए चुके हैं उनका जीर्णोद्धार किया जाएगा. मंदिर में भारत से देवी-देवताओं की मूर्तियों को ले जाकर स्थापित किया जाएगा.

कटासराज मंदिर, नमक कुहिन पर्वत पंजाब प्रांत

भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने जब दक्ष यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तब उनके शव को लेकर भटकते हुए शिव अपना आपा खो बैठे थे. भगवान विष्णु ने चक्र से धीरे-धीरे काटकर सती के शव को धरती पर अलग-अलग बिखेर दिया. तब शोक में डूबे शिव जिस जगह जाकर रोए, वह स्थान कटाक्ष कहलाया. यहां शिव की आंखों से गिरे आंसू से एक जलाशय का निर्माण हुआ. इसी कटाक्ष जलाशय के आधार पर बाद में इस स्थान का नाम कटास हो गया और यहां स्थित महादेव कहलाए कटास राज.

कटास राज पाकिस्तान स्थित पंजाब के उत्तरी भाग में मौजूद है. यहां नमक कुहिन पर्वत शृंखला में हिंदुओं का यह तीर्थ बसा हुआ है. कटास राज मंदिर का निर्माण खटाना राजवंश ने करवाया था. कहते हैं कि यहां एक प्राचीन शिव मंदिर है और इसके अलावा अन्य मंदिरों की शृंखला भी है, जो दसवीं शताब्दी के बताये जाते हैं. इस स्थान को शिव नेत्र माना जाता है. कहते हैं शिव जी अपने पड़ाव में दो स्थानों पर खूब रोए थे. एक जगह तो यह कटास राज है, तो दूसरा है राजस्थान के अजमेर में पुष्कर तीर्थ. इन दोनों ही तीर्थों की बहुत मान्यता रही है, लेकिन बंटवारे के बाद कटासराज तीर्थ को श्रद्धालुओं की अनदेखी का सामना करना पड़ा.

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कटासराज शिव मंदिर पाकिस्तान

कहा जाता है कि यहां के सात मंदिरों का निर्माण पांडवों ने महाभारत काल में किया था। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान लगभग 4 साल यहां बिताए थे. पांडवों ने अपने रहने के लिए सात भवनों का निर्माण किया था। वहीं भवन अब सात मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इस स्थान को लेकर यह भी मान्यता है कि इसी कुंड के तट पर युधिष्ठिर और यक्ष का संवाद हुआ था. हालांकि यक्ष संवाद स्थल को लेकर उत्तराखंड स्थित देवरियाताल का दावा ज्यादा प्रबलता से माना जाता है. 

गोरखनाथ मंदिर, पेशावर, गोरखत्री क्षेत्र
पाकिस्तान के पेशावर सिटी में ही गोरखत्री क्षेत्र भी है. हालांकि आज इस नाम से इसे पाकिस्तान में शायद ही कोई जानता हो. यहां मौजूद है गुरु गोरखनाथ का मंदिर, जो किसी जमाने में कनफटा जोगिया सिद्धों का स्थल रहा है. इस मंदिर का निर्माण 1851 में किया गया था, लेकिन जिस वर्ष देश को आजादी मिली थी, उसी वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद से ही मंदिर को बंद कर दिया गया था. 62 साल बंद रहने के बाद यह मंदिर साल 2011 में ही दोबारा खोला गया और पाकिस्तान में बचे-खुचे हिंदुओं ने इसमें फिर से पूजा शुरू की. आज इस मंदिर में दर्शन करने श्रद्धालु पहुंचते हैं और धीरे-धीरे मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया जा रहा है.

इसके अलावा पाकिस्तान में शारदापीठ मंदिर, वरुण देव मंदिर, श्रीपंचमुखी हनुमान मंदिर और श्रीराममंदिर भी प्रसिद्ध हैं. इनमें कुछ ठीक स्थिति में है तो कुछ की हालत वक्त के साथ खस्ता हो चली है. इनके सुंदरीकरण की मांग उठती है, लेकिन इनकी मरम्मत को लेकर उनकी स्थानीय सरकार में इच्छाशक्ति नजर नहीं आती है.

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