तलाक-ए-हसन केस: दिल्ली HC ने याचिकाकर्ता को SC की सुनवाई में हिस्सा लेने की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में याचिका लंबित होने पर मामले की सुनवाई 29 अगस्त के लिए टाल दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि ये याचिका कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए कॉपी-पेस्ट करके दाखिल की गई है.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई की. दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई की.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 8:16 PM IST

मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन प्रथा मामले में गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक बार फिर सुनवाई हुई. HC ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में हिस्सा लेने की अनुमति दी है. दिल्ली हाई कोर्ट अब इस मामले में अगले साल 12 जनवरी को सुनवाई करेगी.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में याचिका लंबित होने पर मामले की सुनवाई 29 अगस्त के लिए टाल दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि ये याचिका कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए कॉपी-पेस्ट करके दाखिल की गई है. याचिका में केंद्र सरकार को पार्टी भी नहीं बनाया गया है.

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अश्वनी कुमार उपाध्याय ने  HC में कहा कि तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली बेनजीर हिना की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. दिल्ली हाई कोर्ट ने रजिया नाज की याचिका पर 22 जून को नोटिस जारी किया था. रजिया नाज का कहना था कि उसके पति शहंशाह आलम खान ने उसको तलाक ए हसन के तहत तलाक का नोटिस भेजा था.

बता दें कि 2 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फिलहाल इस मामले को देखकर लगता है कि तलाक-ए हसन अनुचित नहीं है. जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि प्रथम दृष्टया तलाक-ए हसन इतना अनुचित नहीं लगता है और इसमें महिलाओं के पास भी खुला के रूप में एक विकल्प है. उन्होंने ये भी कहा था- ये भी कहा कि मैं नहीं चाहता कि यह मुद्दा किसी और वजह से एजेंडा बने. 

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कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला से ये भी कहा कि आप ये बताएं कि सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं या नहीं. कोर्ट ने पूछा कि 'वो इस मामले को लेकर सीधा सुप्रीम कोर्ट क्यों आई हैं? पहले हाई कोर्ट गए या नहीं. क्या ऐसे और मामले भी लंबित हैं?' 
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में गाजियाबाद की महिला ने तलाक-ए हसन के खिलाफ अपील दायर की है. महिला को उसके पति ने तलाक-ए हसन के तहत नोटिस भेजे थे, जिसे उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. महिला की दलील है कि तलाए-ए हसन महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है और ये सम्मान के साथ जीवन बिताने के अधिकार के भी खिलाफ है.

क्या होता है तलाक-ए हसन? 

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट बैन लगा चुका है. यानी एक साथ तीन बार तलाक कहकर डायवोर्स की प्रैक्टिस पर बैन लगा दिया गया है. जबकि तलाक-ए हसन एक अलग प्रक्रिया है. इसमें पति अपनी पत्नी को पहली बार तलाक बोलने के बाद एक महीने तक इंतजार करता है, फिर महीना पूरा होने पर वो दूसरी बार तलाक बोलता है. एक और महीना गुजर जाने के बाद वो तीसरी बार अपनी पत्नी को तलाक बोलता है. तीन बार तलाक बोलने के दरमियान अगर पति-पत्नी में सुलह नहीं होती है तो तलाक मान लिया जाता है. पहली बार तलाक बोलने से लेकर तीसरी बार तलाक बोलने तक की अवधि में पति-पत्नी दोनों साथ ही रहते हैं.

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