देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली अर्जी पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट तैयार, केंद्र को भेजा नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत राजद्रोह से जुड़े प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि BNS की धारा 152 औपनिवेशिक दौर के प्रावधान को नए नाम से वापस लाती है. इसकी भाषा और शब्दावली अस्पष्ट है, इसमें मनमाने विवेकाधिकार की गुंजाइश हो सकती है.

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देशद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है (Photo: PTI) देशद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है (Photo: PTI)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत राजद्रोह से जुड़े प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है. अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और इस मामले को पहले से लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है.

CJI जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया  की पीठ ने यह नोटिस जारी किया. मामला उस याचिका से भी जुड़ा है, जिसमें भारतीय सेना के सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस.जी. वोम्बटकर ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह कानून को चुनौती दी थी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में IPC की धारा 124A के प्रावधान पर रोक लगा दी थी.

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याचिका में तर्क दिया गया है कि BNS की धारा 152 औपनिवेशिक दौर के प्रावधान को नए नाम से वापस लाती है. इसकी भाषा और शब्दावली अस्पष्ट है, इसमें मनमाने विवेकाधिकार की गुंजाइश हो सकती है. इसमें नए नाम से पुराने कानून को ही लागू किया गया है. हालांकि शब्द बदल दिए गए हैं, लेकिन इसकी मूल विषयवस्तु 'विध्वंसक गतिविधि' और  'अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देने' और 'भारत की एकता या अखंडता को खतरे में डालने वाले' कृत्यों जैसी अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली इस्तेमाल की गई है.

BNS की धारा 152 के अनुसार जो भी व्यक्ति जानबूझकर मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य चित्रण, इलेक्ट्रॉनिक संचार, वित्तीय साधनों या अन्य माध्यम से अलगाव, सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को भड़काता है या भड़काने का प्रयास करता है, अलगाववादी भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, वह 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और जुर्माने का पात्र होगा.

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