असम के मदरसों को स्कूलों में बदलने के बाद सुधरे हालात, CM हिमंता ने कहा- ये बड़े बदलाव आए

मदरसों को स्कूलों में कन्वर्ट किए जाने के बाद अब इन संस्थानों की स्थिति कैसी है. इस बारे में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मदरसों में प्रवेश लेने वाले 4000 से अधिक छात्रों के इस बैच ने सामान्य मोड में मैट्रिक परीक्षा दी है, जो पहली बार उत्तीर्ण हुए हैं.

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असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा (फाइल फोटो) असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • गुवाहाटी,
  • 20 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:05 AM IST

असम सरकार ने दिसंबर 2020 में सभी सरकारी संचालित मदरसों के कामकाज को बंद करने और उन्हें सामान्य शैक्षणिक संस्थानों में बदलने का फैसला किया था. तीन साल बाद मदरसों और उसके छात्रों के लिए हालत अब काफी सुधर गए हैं. जब ये फैसला लिया गया था तब हिमंता बिस्वा सरमा तत्कालीन राज्य शिक्षा मंत्री थे.

मदरसों को स्कूलों में कन्वर्ट किए जाने के बाद अब इन संस्थानों की स्थिति कैसी है. इस बारे में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मदरसों में प्रवेश लेने वाले 4000 से अधिक छात्रों के इस बैच ने सामान्य मोड में मैट्रिक परीक्षा दी है, जो पहली बार उत्तीर्ण हुए हैं. दूसरा बैच परीक्षा देने वाला है. यह असम के लिए अच्छी बात है.

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डोटियालबारी हाई स्कूल को पहले डोटियालबारी सीनियर मदरसा के नाम से जाना जाता था. ये असम में मोरीगांव जिले के मोइराबारी शहर में स्थित है. स्कूल में वर्तमान में 500 से अधिक छात्र हैं. पिछली मैट्रिक परीक्षा में, 35 स्टूडेंट परीक्षा में शामिल हुए और 100 प्रतिशत पास हुए. 6 स्टूडेंट फर्स्ट डिवीजन पास हुए थे.

दतियालबोरी हाईस्कूल के सहायक शिक्षक हन्नम फारूक ने आजतक को बताया कि अगर मैं बदलावों के बारे में बात करता हूं, तो मदरसों में स्पोर्ट्स वीक पहले से ही था, लेकिन अगर संगीत, गायन या नृत्य के बारे में बात करें तो एक बदलाव देखा गया है. चूंकि यह संस्थान पहले एक धार्मिक संस्थान था, इसलिए इसके कुछ नियम-कायदे भी थे, लेकिन हाईस्कूल में परिवर्तित होने के बाद कुछ राहत देखी जा सकती है.

फारूक ने कहा कि पहले हमारे पास अरबी विषय था. अब अरबी विषय नहीं है और इस विषय के जो चार शिक्षक थे वे भी चले गए. वर्तमान में हम सामान्य गणित, सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, असमिया, हिंदी जैसे विषय पढ़ा रहे हैं. सरकार ने जो नीति अपनाई है, उससे अब छात्रों को काफी सहूलियत हो गई है. मदरसे से स्कूल बने इस स्कूल के छात्रों के पास अब डॉक्टर बनने और कॉलेजों में काम करने का मौका है.

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यह पूछे जाने पर कि क्या मदरसे से स्कूल बने छात्रों को सामान्य स्कूलों की तुलना में सामान्य शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस पर फारूक ने कहा कि मैं इस अवधारणा को स्वीकार नहीं करता कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों में अन्य स्कूलों के छात्रों की तुलना में कमी है.

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(रिपोर्ट- सारस्वत कश्यप)

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