भोपाल से जुड़े 'शत्रु संपत्ति' विवाद ने एक बार फिर सैफ अली खान के परिवार को सुर्खियों में ला दिया है. इस विवाद का केंद्र है भारत सरकार का 2015 में आबिदा सुल्तान को भोपाल नवाब का दर्जा देना, जिसने भोपाल, इछावर, और सीहोर के कई गांवों को शत्रु संपत्ति की श्रेणी में ला खड़ा किया था.
1947 के वक्त नवाब हबीबुल्लाह और बीपी मेनन के गद्दी उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, बड़े पुत्र या पुत्री को उत्तराधिकारी घोषित किया जाना था. हालांकि, नवाब हबीबुल्लाह की मृत्यु के बाद उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान, जो पाकिस्तान की नागरिक थीं, विस्मृत कर दी गईं और उनकी जगह साजिदा सुल्तान को 1962 में भोपाल नवाब घोषित कर दिया गया.
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ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साजिदा सुल्तान के पति इफ्तिखार अली खान से अच्छे संबंध थे, जिसके चलते यह निर्णय लिया गया. आजतक से बात करते हुए घर बचाओ संघर्ष समिति के उपसंयोजक और शत्रु संपत्ति के जानकर जगदीश छावानी ने बताया कि खुफिया विभाग की और शत्रु संपत्ति कार्यालय के अधिकारी ने मुझसे संपर्क किया. एक हफ्ते से यह भोपाल में थे.
नवाब के निधन के वक्त, बड़ी बेटी पाकिस्तान की नागरिक थी!
वकील ने दावा किया कि जनता के मानें तो में 1962 में साजिदा सुल्तान को भोपाल नवाब का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय गलत था. अपने आप में भारत सरकार का अवैध निर्णय मानने की तैयारी की जा रही है. वकील ने बताया कि 4 फरवरी 1960 को नवाब हमीदुल्लाह खान का भोपाल में निधन हुआ तो उनकी बड़ी बेटी पाकिस्तान की नागरिक थी. भोपाल की गद्दी उत्तराधिकार नियम के मुताबिक बड़ी बेटी को नवाब घोषित होना चाहिए था, लेकिन इसलिए नहीं की गई क्योंकि वह पाकिस्तान की नागरिक थी. उसी समय यह बात भी उठी थी कि भारत रक्षा अधिनियम के मुताबिक, जब कोई दुश्मन देश पाकिस्तान का नागरिक बन गया था तो उनकी सारी संपत्ति शत्रु संपत्ति हो जाती है, इसलिए उसे बचाने के लिए आबिदा सुल्तान को नागरिक नहीं बनाया.
क्या गद्दी नियम के मुताबिक चुनाव गया था नवाब?
मसलन, जमीन से जुड़ा ये विवाद तब भी उठा था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे. ये बात रिकॉर्ड में भी है कि नेहरू तक ये बात पहुंची थी तो 2 साल के जद्दोजहद के बाद रास्ता निकाला गया, वो ये कि साजिदा सुल्तान को भारत का नागरिक मानते हुए उन्हें भोपाल नवाब का उत्तराधिकारी घोषित किया जाए. 1962 में 10 और 11 जनवरी को इस अधिसूचना में कहीं नहीं लिखा है कि उन्हें भोपाल का नवाब उत्तराधिकारी भोपाल गद्दी अधिनियम के तहत नियुक्त किया गया है. उन्हें सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 366 के तहत अंतर्गत जारी किया. बस यही लिखा है कि उन्हें भोपाल का नवाब मान्य किया जाए.
अधिसूचना जारी करने की बात छुपाई गई?
वकील जगदीश छावानी ने कहा कि नवाब भोपाल की अगर आबिदा सुल्तान होती तो उनके उत्तराधिकार लड़ते घूमते कि हमें भी हिस्सा दे दो. 1960 में शहीद बच्चों को अनदेखा करके अधिसूचना जारी करने की बात को लोगों को छुपाया गया. 2010-11 के आसपास पत्र के द्वारा शत्रु संपत्ति कार्यालय को यह सूचना मिली की भोपाल नवाब की सारी संपत्तियां शत्रु संपत्ति हो जाती है, लेकिन उसको मिली भगत के द्वारा प्राइवेट प्रॉपर्टी के रूप में इंटरटेन किया जा रहा है. उसके संबंध में बहुत सारे कोर्ट केस हैं, जिसमें बहुत गलत जानकारी देकर दबाने की कोशिश की जा रही है.
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इसके बाद शत्रु संपत्ति कार्यालय ने एक्सरसाइज शुरू की तब उन्हें सर्वे और जांच से पता चला कि सही है कि नवाब हबीबुल्लाह खान की डेथ हुई थी तब आबिदा सुल्तान पाकिस्तान की नागरिक थी. वह तब जीवित थीं. अगर उनकी मृत्यु हो जाती तो जरूर साजिदा सुल्तान बड़ी पुत्री होने कर नाते भोपाल की नवाब घोषित हो जातीं, लेकिन जानबूझकर साजिदा सुल्तान को भोपाल का नवाब घोषित किया गया था.
2007 में एमपी शासन की तरफ से भोपाल में नवाब की प्रॉपर्टी को लेकर एक मर्जर एग्रीमेंट का विवाद हुआ था. उसका निपटारा 2018 में जाकर शासन की तरफ से हुआ कि हम सारी प्रॉपर्टीज को नवाब की प्रॉपर्टी मान लेते हैं. जिन में भोपाल के आठ गांव है. मुख्य रूप से बोरबन बाहेटा लाऊखेड़ी हलालपुरा यह कर तो बुक है, जिसमें डेढ़ से 2 लाख पब्लिक रहती है और उनकी प्रॉपर्टी है. सबसे खास बात यह है हलालपुरा वाली जो प्रॉपर्टी है उसमे बहुत सारी आबिदा सुल्तान की प्रॉपर्टी थी, जिसे निष्करन्त प्रॉपर्टी घोषित किया था तब.
रवीश पाल सिंह