Amazon की ईस्ट इंडिया से तुलना पर पांचजन्य की सफाई, 'तथ्यों के आधार पर है लेख, दें जवाब'

पांचजन्य के इस अंक में अमेजॉन पर सवाल उठाते हुए लिखा गया है कि कंपनी ने अनुकूल सरकारी नीतियों के लिए रिश्वत के तौर पर करोड़ों रुपये का भुगतान किया है.  ये पत्रिका 3 अक्टूबर को बाजार में आएगी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

हिमांशु मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:24 PM IST
  • अमेजॉन की नीतियों की तीखी आलोचना
  • इंफोसिस के बाद अमेजॉन पर लेख
  • पांचजन्य ने रखा अपना पक्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी साप्ताहिक पत्रिका 'पांचजन्य' के नए संस्करण पर भी विवाद हो रहा है. इस संस्करण में अमेरिका की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन (Panchjanya Amazon) की तुलना उस ईस्ट इंडिया कंपनी से की गई है जिसकी बदौलत अंग्रेजों ने भारत को अपना उपनिवेश बनाया और 200 सालों तक शासन किया. पांचजन्य ने इस संस्करण में अमेजॉन की नीतियों की तीखी आलोचना की है और इस कंपनी को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 बताया है. 

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बता दें कि इससे पहले पांचजन्य ने अपने एक अंक में भारत की मेगा सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस पर सरकार और देश के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया था और उस कंपनी को एंटी नेशनल बताया था. 

पांचजन्य ने रखा अपना पक्ष

अब पांचजन्य पत्रिका के संपादक हितेश शंकर ने दोनों ही आरोपों पर सफाई दी है. हितेश शंकर ने आजतक से बातचीत में कहा है कि पांचजन्य में अमेजॉन पर जो लेख लिखा गया है वो सभी तथ्यों को ध्यान में रख कर लिखा गया है. उन्होंने कहा कि लेख में जो सवाल उठाए गए हैं अमेजॉन को उन सब के जवाब देने चाहिए. 

हितेश शंकर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर अमेजॉन के खिलाफ ट्रेंड चलता रहता है. इस लेख में हमने आम जनता और छोटे व्यापारियों से जुड़े सवाल भी उठाए हैं. 

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अमेजॉन के खिलाफ क्या है ताजा अंक में

बता दें कि पांचजन्य ने अपने इस अंक में अमेजॉन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कंपनी ने अनुकूल सरकारी नीतियों के लिए रिश्वत के तौर पर करोड़ों रुपये का भुगतान किया है. ये पत्रिका 3 अक्टूबर को बाजार में आएगी. इसमें कहा गया है, "18वीं सदी में भारत पर कब्जा करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने जो कुछ किया, वही आज अमेजन की गतिविधियों में दिखाई देता है.'

पत्रिका में दावा किया गया है कि, "अमेजॉन भारतीय बाजार में अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहती है और ऐसा करने के लिए अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनी ने भारतीय नागरिकों की आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर नियंत्रण करने की पहल शुरू कर दी है. 

इंफोसिस को लेकर भी सफाई
 
पांचजन्य की ओर से हितेश शंकर ने इंफोसिस से जुड़े अंक पर भी सफाई दी. उन्होंने कहा कि इंफोसिस पर जो लेख आया था वो आम जनता की परेशानियों पर था. क्योंकि इंफोसिस को GST और  इनकम टैक्स के पोर्टल के लिए जो पैसा दिया जाता है वो टैक्सपेयर की गाढ़ी कमाई से दिया जाता है. जब भी सरकार ये कहती है कि आयकर रिटर्न भरने की तारीख को बढ़ाया जा रहा है तो ऐसा इंफोसिस की कमी के कारण किया जाता है. 
 

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