ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने गुरुवार को देश की विभिन्न अदालतों में मस्जिदों और दरगाहों पर किए गए दावों पर चिंता व्यक्त की है. बोर्ड ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से ऐसे मामलों पर स्वत: संज्ञान लेकर निचली अदालतों इन मामलों में दखल देने से रोकने की अपील की है, क्योंकि ये मामले देश के सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि इस तरह के दावे कानून और संविधान का मजाक हैं, खासकर पूजा स्थल अधिनियम के मामले में. संसद द्वारा अधिनियमित कानून में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है कि 15 अगस्त, 1947 तक किसी भी पूजा स्थल की स्थिति अपरिवर्तित रहेगी और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसका उद्देश्य बाबरी मस्जिद मामले के बाद मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों को विवाद से बचाना था.
AIMPLB ने जताई चिंता
बयान में कहा गया है कि एआईएमपीएलबी ने देश भर की विभिन्न अदालतों में मस्जिदों और दरगाहों पर हाल के दावों पर गहरी चिंता और पीड़ा व्यक्त की है.
इलियास ने कहा कि संभल की जामा मस्जिद के अनसुलझे मुद्दे के बाद एक नया दावा सामने आया है, जिसमें दावा किया गया है कि विश्व प्रसिद्ध अजमेर दरगाह संकट मोचन महादेव मंदिर है. दुर्भाग्य से अजमेर में पश्चिम सिविल कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और नोटिस जारी किया है.
उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता ने दरगाह समिति, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को प्रतिवादी के रूप में नामित किया है. अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को शिव मंदिर घोषित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं. इससे पहले संभल की शाही जामा मस्जिद के संबंध में भी ऐसे दावे सामने आए थे, जिसके बाद हिंसा की घटनाएं हुईं.
'शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है'
इलियास ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह, मध्य प्रदेश में भोजशाला मस्जिद, लखनऊ में टीले वाली मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद पर दावे के बाद ऐतिहासिक अजमेर दरगाह पर एक दावा किया गया है.
उनका कहना है, "कानून के बावजूद अदालत ने विष्णु गुप्ता की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और पक्षों को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता का आरोप है कि दरगाह की भूमि मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है, जहां पूजा और जलाभिषेक जैसे अनुष्ठान किए जाते थे."
इलियास ने बताया कि बाबरी मस्जिद मामले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए साफ किया था कि इस अधिनियम के बाद किसी भी नए दावे पर विचार नहीं किया जा सकता. फिर भी निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद पर दावा स्वीकार कर लिया तो मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि पूजा स्थल अधिनियम को देखते हुए इस तरह के दावे पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, अदालत ने अपना रुख नरम किया और अनुमति दी सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसने 1991 के कानून का उल्लंघन नहीं किया है."
'स्वत: संज्ञान लें CJI'
इलियास ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में तत्काल स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने और निचली अदालतों को आगे किसी भी विवाद के लिए दरवाजे खोलने से परहेज करने का निर्देश देने की अपील की. इसके अलावा संसद द्वारा पारित इस कानून को सख्ती से लागू करना केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की जिम्मेदारी है. ऐसा नहीं करने पर देश भर में विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाएगा."
उन्होंने कहा कि दरगाह, जिसे उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बताया, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आती है और एएसआई का इससे कोई लेना-देना नहीं है.
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