लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. राजनीतिक दल धीरे-धीरे अपने उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं. हाल ही में बीजेपी ने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची जारी की जिसमें कई चौंकाने वाले नाम थे. ताजा विवाद पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट पर खड़ा हो गया है जिसने प्लासी के युद्ध और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को सुर्खियों में ला दिया है. आइए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है.
क्या है ताजा विवाद?
हाल ही में बीजेपी ने उम्मीदवारों की अपनी पांचवीं लिस्ट जारी की थी. पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से राजमाता अमृता रॉय को टिकट दिया गया है. उनके सामने मैदान में टीएमसी की महुआ मोइत्रा हैं. टीएमसी आरोप लगा रही है कि बीजेपी ने जिन अमृता रॉय को टिकट दिया है उनके परिवार ने अंग्रेजों का साथ दिया था. टीएमसी नेता कुणाल घोष ने कहा कि जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए थे, तब कृष्णानगर के राजा कृष्णचंद्र रॉय ने ब्रिटिश सेनाओं की मदद की थी. ऐसे में यह जानना बेहद अहम है कि 1757 की उस लड़ाई में कौन किस तरफ था.
रानी अमृता रॉय को जानें
कृष्णानगर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार रानी अमृता रॉय 'राजबाड़ी' की राजमाता हैं. 18वीं सदी में कृष्णानगर में महाराजा कृष्णचंद्र रॉय का राज हुआ करता था जो अमृता रॉय के पूर्वज थे. वह अपने दूरदर्शी शासन के लिए जाने जाते थे. प्रशासनिक सुधारों, कला को बढ़ावा देने और बंगाली संस्कृति में गौरवशीलता की वजह से उनकी विरासत आज भी बंगाल में संजोकर रखी गई है, जो उनके शासन की खासियत थी.
टीएमसी के आरोपों के जवाब में अमृता रॉय ने कहा कि मुझे लगता है कि हर बंगाली और भारतीय टीएमसी के आरोपों से असहमत होगा. आरोप लगाया जा रहा है कि महाराजा कृष्णचंद्र रॉय ने अंग्रेजों का साथ दिया लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया? दरअसल उन्होंने ऐसा सिराजुद्दौला की प्रताड़ना की वजह से किया. उन्होंने कहा कि अगर वह ऐसा नहीं करते तो क्या हिंदू धर्म बच पाता? नहीं. अगर ऐसा है तो हम ये क्यों नहीं कह सकते कि महाराजा ने हमें सांप्रदायिकता विरोधी हमले से बचाया.
कौन थे राजा कृष्णचंद्र रॉय?
1710 में जन्मे राजा कृष्णचंद्र जमींदार और राजा थे. वह नादिया राज परिवार और शाक्त हिंदू परंपरा से थे. उन्हें बंगाल के हिंदू समाज में उस काल का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता था. प्लासी के युद्ध के दौरान कृष्णचंद्र उस समूह का हिस्सा थे जिसमें जगत सेठ, मीर जाफर, ओमिचंद, राय दुर्लभ और अन्य लोग शामिल थे. इस समूह ने लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया था जिससे जंग में नवाब की हार हुई और भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव पड़ी.
हालांकि कृष्णचंद्र या समूह के अन्य सदस्य भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित करने के उद्देश्य के बजाय अपने स्वयं के राजनीतिक भविष्य में रुचि रखते थे. कृष्णचन्द्र और अंग्रेज सैन्य अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध थे. 1760 के दशक में जब बंगाल के नवाब मीर कासिम ने कृष्णचन्द्र को फांसी देने का आदेश दिया तब यह रिश्ता उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ. क्लाइव ने न सिर्फ इस आदेश को रद्द कर दिया बल्कि कृष्णचन्द्र को पांच तोपें, 'महाराजा' की उपाधि और कृष्णानगर क्षेत्र के जमींदार के रूप में शासन भी उपहार में दिया.
प्लासी के युद्ध का इतिहास
प्लासी का युद्ध 266 साल पहले 23 जून 1757 को हुआ था. यह जंग अंग्रेजों और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच लड़ी गई थी. लड़ाई में नातजुर्बेकार नवाब सिराजुद्दौला शातिर अंग्रेज जनरल क्लाइव से हार गया था. अंग्रेजों ने युद्ध के मैदान में उतरने से पहले नवाब के वफादारों को अपनी तरफ मिला लिया था जिससे आधी जंग सिराजुद्दौला पहले ही हार गया था. कहा जाता है कि सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर की बगावत उनके पतन का कारण थी. प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला के हारने की वजह से ही भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज पुख्ता हो गया.
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