गोलियां बरसा रहे आतंकी कसाब का कामा अस्पताल में किया था सामना, अब वही अफसर NIA चीफ... सदानंद दाते की कहानी

एनआईए ही 26/11 के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा के खिलाफ जांच की अगुवाई कर रही है. लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के बाद केंद्रीय एजेंसी तहव्वुर राणा का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण कराने में सफल रही और उसे 10 अप्रैल, 2024 को लेकर दिल्ली पहुंची.

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आईपीएस सदानंद दाते 26/11 मुंबई हमले के वक्त मुंबई सेंट्रल रीजन के एसीपी थे. (PTI Photo) आईपीएस सदानंद दाते 26/11 मुंबई हमले के वक्त मुंबई सेंट्रल रीजन के एसीपी थे. (PTI Photo)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST

मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकी हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की टीम अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत लाई है. मुंबई को दहलाने वाली 26 नवंबर, 2008 की व​ह रात, पुलिस अधिकारी सदानंद दाते के जीवन को परिभाषित करने वाली रात बन गई, जो अब राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के प्रमुख हैं. जब 26/11 के 10 हमलावरों में से दो- अजमल कसाब और अबू इस्माइल, मुंबई के कामा अस्पताल में घुसे, तो सदानंद दाते कुछ पुलिसकर्मियों के साथ उनका सामना करने के लिए वहां पहुंचे थे.

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सदानंद दाते के साथ कामा अस्पताल पहुंचे अन्य पुलिस कर्मी आतंकियों से लोहा लेते हुए घायल हो गए थे. इस बहादुर पुलिस अधिकारी ने अकेले ही 40 मिनट तक अजमल कसाब और अबू इस्माइल का मुकाबला किया. आतंकियों ने दाते पर ग्रेनेड से हमला किया, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए. युद्ध जैसी स्थिति में सदानंद दाते की बहादुरी और सूझबूझ के कारण ही कामा अस्पताल से बंधकों को सुरक्षित बाहर निकलने में मदद मिली. समय का चक्र देखिए, 26/11 का यह नायक एनआईए प्रमुख के रूप में आतंकी हमले के पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है.

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राणा को भारत लेकर आई एनआईए

बता दें कि एनआईए ही 26/11 के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा के खिलाफ जांच की अगुवाई कर रही है. लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के बाद केंद्रीय एजेंसी तहव्वुर राणा का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण कराने में सफल रही और उसे 10 अप्रैल, 2024 को लेकर दिल्ली पहुंची. उसके साथ एनआईए समेत कई एजेंसियों के अधिकारी भी थे. 26/11 आतंकी हमले के साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली के प्रमुख सहयोगी राणा को एनआईए कार्यालय ले जाया गया, जहां एजेंसी ने उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया और रात को ही कोर्ट में पेश किया. अदालत ने एनआईए को राणा की 18 दिन की हिरासत दी है.

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एनआईए भारत की प्रमुख एजेंसी है जो आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करती है. इसकी स्थापना दिसंबर 2008 में 26/11 मुंबई अटैक के बाद की गई थी, जिसमें पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. 1990 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी सदानंद दाते ने मार्च 2024 में एनआईए प्रमुख का पदभार संभाला. वह 31 दिसंबर, 2026 को अपनी सेवानिवृत्ति तक या अगले आदेश तक इस पद पर बने रहेंगे. एनआईए प्रमुख बनने से पहले, दाते महाराष्ट्र में आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) के प्रमुख के रूप में कार्यरत थे.

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सदानंद दाते और 26/11 मुंबई अटैक

सदानंद दाते की वीरता की कहानी मुंबई पुलिस की अनुकरणीय बहादुरी का उदाहरण है, जब उन्होंने मुंबई पर हमला करने वाले लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के 10 आतंकवादियों में से दो का मुकाबला किया था. इस आतंकी हमले के वक्त वह मुंबई सेंट्रल रीजन के एसीपी थे. उन्हें सबसे पहले दक्षिण मुंबई में गोलीबारी के बारे में पता चला और वह बिना देर किए क्राइम सीन पर पहुंच गए. उन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थी और कार्बाइन से लैस थे.

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सदानंद दाते छह पुलिसकर्मियों के साथ कामा और अल्बेस अस्पताल पहुंचे. उन्हें कामा अस्पताल के एंट्री गेट पर ही दो शव मिले. उन्होंने अस्पताल में आतंकवादियों अजमल कसाब और अबू इस्माइल द्वारा बंधक बनाए गए एक लिफ्ट ऑपरेटर को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कसाब और इस्माइल छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर कत्लेआम मचाने के बाद दक्षिण मुंबई स्थित इस सरकारी अस्पताल में दाखिल हुए थे, जहां दाते और मुंबई पुलिस कर्मियों की एक छोटी टीम ने उन्हें घेर लिया.

सदानंद दाते ने 2023 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में 26/11 मुंबई अटैक को याद करते हुए बताया था, 'कामा अस्पताल की छठी मंजिल से छत पर जाने से पहले, हमने यह जांचने के लिए एक मेटल ऑब्जेक्ट फेंका कि क्या गेट पर कोई हमलावर मौजूद है. हमारी तकनीक काम कर गई, क्योंकि जैसे ही हमने मेटल ऑब्जेक्ट फेंका, आतंकवादी ने गोलियों की बौछार कर दी. यह वह समय था जब हमें पहली बार पता चला कि हमलावर मॉडर्न और ऑटोमेटिक हथियारों से लैस हैं.'

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सदानंद दाते ने बंधकों को कैसे बचाया?

भारी गोलीबारी और ग्रेनेड हमलों का सामना करने के बावजूद, दाते और उनकी टीम ने लिफ्ट ऑपरेटर चंद्रकांत टिकके को अजमल कसाब और अबू इस्माइल की गिरफ्त से सफलतापूर्वक बचा लिया. ये दोनों टिकके का इस्तेमाल ह्यूल शील्ड के रूप में कर रहे थे. मुठभेड़ के दौरान रात 11:55 बजे एक ग्रेनेड सदानंद दाते के पास आकर गिरा और फट गया, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बावजूद उन्होंने हरकत महसूस की और अपनी रिवॉल्वर से गोली चलाई. दोनों आतंकवादियों ने उनकी गोली के जवाब में फिर से ग्रेनेड फेंका और बंधकों को छोड़कर भाग गए.

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ग्रेनेड विस्फोट के कारण दाते की आंखों के सामने अंधेरा छा गया, वह कसाब और इस्माइल को देख नहीं सके और दोनों मौके से भाग निकलने में कामयाब रहे. दाते को कई चोटें आईं- उनकी आंखों, गले, छाती और दाहिने घुटने पर और बाएं टखने पर गहरे घाव थे. ऑपरेशन के दौरान उनकी टीम के दो सदस्य मारे गए. अस्पताल से भागने के मात्र 15 मिनट बाद कसाब और इस्माइल ने पास की गली में एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और एसीपी अशोक कामटे पर घात लगाकर हमला कर दिया. बाद में जांच से पुष्टि हुई कि दाते की गोली अबू इस्माइल को लगी थी. उनकी इस कार्रवाई ने आतंकवादियों को कामा अस्पताल से भागने के लिए मजबूर किया. उन्होंने बंधकों को बचाने में मदद की.

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सदानंद दाते के नेतृत्व में एनआईए 26/11 मुंबई अटैक की जांच का नेतृत्व कर रही है. आखिरकार एनआईए 17 साल बाद पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक और मुंबई हमलों के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित करके भारत लाने में सफल रही. 2008 मुंबई हमलों के बाद से एकत्र किए गए साक्ष्यों के आधार पर, एनआईए अधिकारियों और फोरेंसिक साइकोलॉजिस्ट की एक विशेष टीम राणा से पूछताछ करेगी. एनआईए ने पहली बार 2011 में अपने आरोपपत्र में राणा का उल्लेख किया था. तहव्वुर राणा पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत हत्या, आतंकवादी साजिश और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप हैं. कहा जाता है कि उसने डेविड कोलमैन हेडली और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) को लॉजिस्टिक्स और वित्तीस सहायता प्रदान की थी. 

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